डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -37)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

‘ चलें! ‘

उसके इस एक शब्द ने मुझे मेरे अतीत से निकाल कर वर्तमान में ला दिया है।

जहां आज मैं उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में  जो शायद कभी नैना की इच्छा थी उसे दोहरा कर अच्छा महसूस कर रहा हूं।

हम दोनों चुप थे। शायद बात शुरू करने का सिरा ढ़ूंढ़ रहे हैं

इस वक्त मेरे उठते हुए पांव समय के दो अलग-अलग हिस्सों में पड़ रहे थे ।

एक अतीत में जिसमें मैं गुनहगार था। दूसरा उस अतीत के मोह वाले इस वर्तमान में जहां उसके साथ और संसर्ग की कामना मन में उपज रही थी।

लिफ्ट में पच्चीसवीं  मंजिल का बटन दबाते हुए एक जरा सी मुश्किल आई थी। हम दोनों चुप और निपट अकेले थे।

नैना ने उस अकेलेपन को पाटने की कोशिश में ही पूछा ,

” और ? “

हम दोनों हंस पड़े। उसने शायद बातों का सिरा पकड़ने के लिए ही पूछा था।

चारो तरफ आइने में हमारी हंसी रंगीन रोशनी की  तरह बिखर चुकी थी।

उसने फिर तनिक जोर दे कर कहा ,

” और , बताओ “

लेकिन तब तक हमारी मंजिल आ गई।

अब मैंने उसे ध्यान से देखा था।

दुबली – पतली नैना ने हल्का वजन गेन किया था। जो उसपर फब रहा था।

और उसके चेहरे को एक नया लुक दे रहा था।

मैं सही से रइकऔल नहीं कर पा रहा था कि शुरुआती दिनों में वह कैसी दिखती थी।

उसका आकर्षण, उसकी चंचलता सब याद है ।

आधा आकर्षण तो उसकी चंचलता में थी।

किसी भी जिद को पूरी करने के लिए वह किस प्रकार से बेताल हो जाता करती थी।

इस समय वह हल्के हरे या कह लें धानी रंग की  प्लेन सोनाझुरी कांथा साड़ी जिसपर राम सीता स्वयंवर की कथा चित्रित थी पहन रखी है।

उसके लंबे करीने से कटे बाल ब्लाउज के कौलर पर उड़ रहे थे।

कुल मिलाकर इस समय वह  अपने सर्वांग रूप में दिल्ली की  बेहतरीन अदाओं की अदाकारा लग रही थी।

बचपन की अधखिली कली पूर्ण प्रस्फुटित महके हुए पीले गुलाब की तरह।

मेरे इस तरह उसे घूर कर देखने को नैना देख रही थी। मैंने झट उसपर से निगाह हटा कर

एक बार फिर से मेरे सामने अतीत मौन बन कर पसर गया।

और उस भारी-भरकम मौन को नैना ने ही तोड़ा,

” तुम तो गायब ही हो गए थे ? और बताओ कुछ ? कैसा रहा जीवन ?  “

उसने अपने उसी पहले वाले भीने अंदाज़ में कहा तो मैं चौंक उठा ,

” क्या नैना अब भी मुझमें वहीं पुराने वाले हिमांशु सर को ढूंढ रही है ?

उसे यह विश्वास था कि हम जीवन में फिर दुबारा मिलेंगे  ? “

विश्वास तो मुझे भी था। जब मैं  आपराधिक तौर पर उसे छोड़कर अलग हो रहा था।

प्रिय पाठकों!

आपराधिक इस लिए कहूंगा कि बाद में बहुत दिनों तक उसे दिग्भ्रमित अवस्था  में छोड़ कर चले आने के अपराध बोध से ग्रस्त रहा था।

क्यों कि जहां तक मैं उसे जानता था।

नैना मेरी एक पुकार पर हाजिर रहती थी।

एक सन्देश  एक फोन और एक मेल पर अपनी सारा गुस्सा, सारा प्यार ,मेरा सारा स्वार्थ और नैना हाजिर।

नैना हर लिहाज से मेरे लिए प्रेम बन कर आई थी। मैं उसके प्रति प्रेमवत था।  पर मेरी मजबूरी यह थी।

”  कि मर्यादा के अनुसार,  उस पर अपना प्रेम जाहिर नहीं कर सकता था “

अधिकतर प्रेम संबंधों में परिचय , रिश्तों , उम्मीदों और मर्यादाओं का इतना अधिक बोझ रहता है कि वे सारे संबंध प्रेम की बजाए कुछ और ही बन जाते हैं।

खैर ,

अभी फिलहाल हम दोनों उस पुराने ख्याल  से भी बचने की कोशिश करते हुए रेस्तरां में बैठ कर मीनू कार्ड हाथ में ले लिया।

हम जिस जगह बैठे थे वहां से अधिक प्लेस का भीतरी हिस्सा नजर आ रहा था।

उसने मीनू कार्ड से नजर हटाई और  मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए कुछ बोलती उसके पहले ही मैं और जब्त  न कर सका।

उसके हाथों पर अपने हाथ रखता हुआ ,

”  तुम यहां ?

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