डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -36)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

— हिमांशु

भले ही अनमने मन से लेकिन जया ने हामी भर दी थी।

अक्सर पुराने कागजों की पड़ताल में पड़े हुए  नैना के कार्ड पर नजर पड़ जाया करती है।

वहां उसके शहर से उसे छोड़ कर आने के पहले वह कार्ड उसे वापस कर देना चाहता था। लेकिन कर नहीं पाया था।

वह नादान थी। मेरी यही एक जरा सी गलती बड़ी भूल साबित हो सकती थी।

उससे जुड़ी याददाश्त अब भी अनमिट है। यों कि बात पुरानी हो गई। उसकी हैंडराइटिंग से उसके चेहरे को याद करना जरा  मुश्किल होता है।

हिमांशु ऊहापोह में पड़ा सोच रहा है,

” अब वो  किशोरी नैना नहीं रही है।

वरन् दिल्ली के स्थापित प्राइवेट दफ्तर  में कामकाजी युवती जो आंशिक रूप से रंगमंच से भी जुड़ी हुई है।

” क्या ये मुलाकात जरूरी है भी या नहीं ? “

तब तक फोन बज उठा।

मैं जानता हूं यह नैना थी।  झट से फोन उठा लिया सहसा उधर से कोई आवाज नहीं थी।

फिर छाई हुई कुछ क्षण की चुप्पी के उपरांत,

” हिमांशु !  मैं आपसे अपने विगत दिनों के बिषय में कुछ भी नहीं कहूंगी और ना कुछ पूछूंगी  महज ,

अपनी खोज को बस पूर्ण होते हुए देखना चाहती हूं”

यह वाक्य उसके पहले के वाक्य पर लादी हुई सी लगी।

नैना की स्मृति के साथ उसकी आवाज के गांभीर्य ने मुझे हैरत में डाल दिया।

” कहां  ? “

उधर गांभीर्य का चोला उतर चुका था ,

” वहीं !  जहां कोई आता- जाता नहीं  ” मैं खिसिया सा गया था

अगले दिन ,

तयशुदा जगह और तय समय से पहले पहुंच गया था। अब समय से पहले पहुंच जाना सही था या इंतजार के समय काटना यह तय नहीं कर पा रहा हूं।

अंतरिक्ष भवन के बाहर जाने वाली सीढ़ियों पर बैठा था।  अक्टूबर का यह दिन इतना खुशनुमा लग रहा है। कि जैसे हमारी इस मुलाकात के लिए ही बना है।

वहां बैठे और चहलकदमी करते हुए मेरे  ही जैसे और  भी कितने मुझे अपनी परछाई लग रहे थे।

इधर से बांए मुड़ कर थोड़ा आगे चलते ही कैफे। काॅफी  डे है।

ठीक सामने एक  रेंटल कार आ कर रुकी।

उसके रुकने और दरवाजा खुलने का जो समय था। उसके बीच में खिड़की पर एक हसीन युवती मुस्कुराती हुई दिखी।

मैं अचकचा गया। कसम से , एकबारगी लगा नैना ही है।

यह जरूर है कि हमारा मिलना तय हुआ था। 

पर इतने बर्षों के बाद उस किशोरी को जवान युवती के रूप में पहली बार देखने  ,

और फिर अपने बीच के सारे रिश्ते एक झटके तोड़ कर  उसकी नजर में साबित एक भगोड़े के रूप में मैं उसे पहली बार मिल कर उसका अभिवादन कैसे करूंगा,  निगाहें कैसे मिलाउंगा ?

यह तो सोचा ही नहीं था।

नैना ही थी।

मेरे सामने खड़ी थी। मैं गले ना लगाता तो और क्या करता ?

लेकिन नहीं,गले नहीं लगा पाया , सिर्फ बैठा रहा। मुस्कुराया। पहले वह भी मुस्कुराई फिर किंचित शर्मा गई।

उसने कहा ,

” चलें ? “

मैंने उठते हुए भी एहतियातन उसकी तरफ हाथ नहीं बढ़ाया।

आगे …

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