डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -32)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

जया ने नैना को भरी निगाहों से देखा है।

वह कितनी सयानी और समझदार दीख रही है।

आजकल उसके अपने दिमाग में कुछ नहीं चलता है। मातृत्व का सुखद अहसासों वाले पक्के रंग से जो सराबोर है। 

दिन- रात आंखों के सामने सिर्फ शुभ्रा की बचपने और भोली बातें चलती रहती हैं।

उसके अलावा उसके मन के व्यायाम के लिए और कुछ बचा ही नहीं है

खैर ,

 शोभित ने आज नैना को कौल करके अपने घर बुलाया है। जहां से उन दोनों को शोभित के ही किसी मित्र  की बहन के यहां घर देखने‌  के लिए जाना है।

नैना वहां जल्दी ही पहुंच गई है। 

दरवाजे की घंटी पर हाथ रखा।

दरवाजा खुला था। नैना धड़ल्ले से अंदर आ गई,

” आ गई तुम ? कहते हुए शोभित की आंखें चमक उठी थी।

मैं चाय बनाता हूं। पी कर फिर निकलेंगे ।

” तुम बैठो मैं बनाती हूं और साथ में खाने के लिए भी कुछ तैयार करती हूं “

शोभित अकेले ही रहता है। उसके घर में खाने-पीने की कुछ खास व्यवस्था नहीं रहती।

”  ठीक है ” फिर मैं रेडी होता हूं “

बोलता हुआ, शोभित  बाथरूम में घुस गया।  नैना चहलकदमी करती हुई उसके बुकशेल्फ के पास। अभी पहली बुक उठाई ही थी कि उसके बीच से एक प्यारी सी पुरानी फोटो फिसल कर नीचे गिर पड़ी।

नैना ने झुककर उस फोटो को उठा लिया और ध्यान से फोटो को देखने लगी।

” ये तो माएरा है “

प्रिय पाठकों, ये ‘माएरा’ कौन है ?  याद है आपको ? आपको शायद ना याद हो ?

पर नैना को अच्छी तरह याद है।

उसे भला कैसे भूल सकती है ?

वही तो है जिससे ब्रेकअप के बाद शोभित  नैना से मिला था। और नैना के जिद करने के बाद उसने अपनी बीती प्रेम कहानी कह सुनाई थी।

वह कहानी कुछ यूं थी।

—  वकौल शोभित

पहली बार जब वो मिली थी। किसी जन्मदिन की पार्टी में आसमानी रंग की स्कर्ट को दोनों हाथों से दबाती घुटनों के बल पर बैठी माएरा स्टेज पर कोरिओके पर एक सुंदर प्रेमगीत गा रही थी।

‘ रहें ना रहें हम महका करेंगे बन के सवां, बन के कली बागे वफ़ा में “

वह तस्वीर जो आंखों में बसी थी। वह आज भी हुबहू वैसी ही है।

मैं हर घड़ी उसके इर्द-गिर्द ही घूम रहा था। और जब उसे साइकिल पर बिठा कर उसके घर तक छोड़ आने का मौका मिला तो ना वो कुछ बोली थी ना मैं बोल पाया।

जानती हो !

अब तक के जीवन में जिन- जिन के जरिए मैंने प्रेम तलाशने की कोशिश की वो मुझे याद नहीं आते। हां माएरा की याद जरूर आती है।

लेकिन उसकी याद किसी ग्लानि से या अपराध बोध से लदी हुई नहीं आती है।

इतना जरूर याद है। माएरा मेरे साथ खूब खुश होती थी और खुश हो कर मुझसे लिपट जाया करती थी। अब सोचता हूं तो लगता है।

पहले- पहले तो प्रेम में गुम हो कर , फिर कभी मुझको खो देने के भय के कारण ।

पर उन दिनों मुझे यह नौटंकी लगती थी।

एक बार तो मैंने इसके लिए उसे खासी डांट भी

लगाई थी।  अब कहां पर यह जगह तो ठीक- ठीक नहीं याद है।

लेकिन उसके बाद से वह जब कभी खुश होती सिर्फ अपने कंधे से मेरा कंधा छू लेती।

उस वक्त मुझे उसकी वह हरकत भी नागवार गुजरती।

उसके माएरा नाम को मैंने छोटा सा नाम दे दिया था ‘ मिसी ‘ वह खूब खुश हुई थी।

उन दिनों दिल्ली में लो फ्लोर वाली बसें नयी- नयी आई थी।

हम अक्सर उसपर बिना किसी मकसद के बैठ कर खूब घूमा करते।

” कितनी दफा मुलाकातों के सिलसिले में,

सामने वाले पर अपनी बेचैनी और व्यग्रता जाहिर करना उस पर अपनी इच्छा थोपने जैसी होती है।

किन्तु कभी- कभी ऐसा भी होता है।  अगर उसकी इच्छा है तो आप पीछे नहीं हट सकते “

ठीक यही हाल इस वक्त नैना और शोभित की हो रखी है “

क्यों ?  आइए इसे जानते हैं इस तरह।

नैना अपनी सुध- बुध खोई हुई सी चेयर पर बैठी हुई है।  हाथ में माएरा की फोटो पंखे की हवा में फरफरा रही है।

शोभित बाथरूम से निकल कर सामने आ खड़ा हुआ ,

” ओ मैडम जी , चाय बनेगी ?  नैना हड़बड़ा  उठी ,

” नहीं , अभी नहीं पहले मुझे माएरा की पूरी कहानी सुननी है। उसके बाद ही चाय या फिर कुछ और‌ “

” अच्छा , और वह घर ढ़ूंढ़ने का प्रोजेक्ट ? “

” वह भी अभी नहीं “

” ठीक है , फिर सुनो वो मेरा अतीत है ” शोभित आराम से कुर्सी पर पैर पसार कर बैठ गया है।

उसे कोई जल्दी नहीं है।

“शादी के प्रस्ताव से पहले की मुलाकातों में हम दोनों एक दूसरे से यों मिलते जैसे दुबारा फिर कभी नहीं मिलेंगे।

कोई वाएदा नहीं , कोई दिलासा नहीं। लेकिन प्रकृति प्रदत्त शरीर अपना जादू चला रहा था।

उसके साथ की कई कामनाएं मुझे आज भी याद है। “

” माएरा भी तो यही चाहती थी।

लेकिन शादी के प्रस्ताव के बाद उसमें एक बदलाव आने लगा था।

उसका प्रेम पारदर्शी था और साथ में रहना महज उसकी कल्पना थी। इसलिए हमेशा वह अपने नये- नये दोस्तों से मुझको मिलवाती।

और उसके वे दोस्त जो बातें मेरे बारे में उससे जो बातें करते उन्हें आ कर मुझे बताया करती “

उसके यह सब मुझे बताने के पीछे उद्देश्य रहता,

” कि सब हमारे रिश्ते को पसंद करते हैं “

जब कि दूसरी तरफ मैं माएरा को अपने हर किसी जानने वालों से दूर रखता।

उसे अपने दोस्तों या जानने वाले मित्रों से मिलवाना तो दूर उनकी बातें करना भी पसंद नहीं करता “

शायद हमारे एजेंडे में फर्क था इसलिए हमारे रवैये में भी।

बाद के दिनों में यह होता , और कितना खराब होता था कि हम साथ में कुछ ही समय बिताते।

साथ घूमना, खरीददारी, घर जाना, दोस्तों से मिलना कुछ भी नहीं भाता।

सिवाये उसे छू कर महसूस करने में और वह इस बात को समझ गई थी।

आगे …

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