डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -31)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

हाए री किस्मत!

” मुबारक हो बेटी हुई है “

सरकारी अस्पताल में डाॅक्टर  के ये शब्द सुनकर जहां जया के कानों में मिश्री घुली थी।

वहीं सासु मां पर कहर बन कर टूटी।

वो अपनी पोती को देखने तक नहीं गयी। घर में मिठाई भी नहीं बंटे।

उसे कुलदेवता की पूजा तक नहीं करने दी गई। क्यों कि उनके घर में मात्र बेटे की पैदाइश पर ही कुलदेवता पूजने का रिवाज था।

जया मन मसोस कर रह गई थी।

सासु मां का यह दुख इसलिए और बढ़ गया था। कि इसके पहले जया का जो बच्चा हुआ था वह लड़का था।

लेकिन जया के कदम जमीन पर नहीं थे।

उसने अपने रवैए से सबको जता दिया है।

कि उसके लिए उसकी बेटी ही इस दुनिया में सबसे कीमती है।

जिसे वह बेटा नहीं होने के ग़म में नहीं गंवाएगी।  उसने अपनी बिटिया का नाम बहुत प्यार  से  ‘ शुभ्रा ‘ रखा है।

वो बहुत ही प्यारी बच्ची निकल रही है।

बहरहाल,

धूप- छांव साथ- साथ झेलते हुए कुछ बर्ष गुजरने को है। 

नैना को हैरानी है। नयी दिल्ली में इतने साल गुजारने के बाद भी जया में बदलाव के नाम पर कुछ खास नहीं है।

नैना का जीवन दिल्ली शहर में बाकायदा एक कामकाजी युवती का है। वह एक प्राईवेट फर्म में ग्रेड बी में ग्यारह सौ से अठ्ठारह सौ रुपये के वेतनमान पर‌ काम कर रही कर्मचारी के रूप में पदस्थापित है।

साथ ही शोभित के कहने पर या उसकी आवश्यकता पड़ने पर उसकी नाटक कंपनी में साइड हिरोइन की भूमिका भी कर लेती है जिससे भी उसे अच्छे पैसे और नाम – पहचान मिलती जा रही है।

अब उसके एजेंडे में सबसे पहले अपने खुद के लिए अलग रहने की व्यवस्था करने की थी। उसके साथ ज्वाइन की हुई सभी लड़कियां कहीं ना कहीं अलग घर ,मकान  या कमरे ले कर रह रही हैं।

एक सिर्फ वही है जिसे दीदी के घर में रहना टाइट सिचुएशन में रहना पड़ रहा है। साथ ही पैसे घर भी भेजने पड़ते हैं।

उसे जब भी अपने औफिस और नाटकों के रिहर्सल से समय मिलता है।

वह अलग- अलग पेपरों में ‘ किराए के लिए घर’

वाले कालम देखती है। फिर उन्हें फोन करती है। और अगर बात पटती सी लगे तो घर देखने के लिए निकल पड़ती है। इस काम में उसके साथ सपना भी शामिल रहतीं है एक दिन वो भी घबड़ा कर ,

” ये क्या है नैना ,  तुझे सच में घर चाहिए भी या नहीं  ? तुझे दूर भी नहीं जाना है, बहुत नजदीक भी नहीं रहना, घर में पूरी सुरक्षा चाहिए तो दूसरी तरफ अपने जीवन में किसी बाहरी का हस्तक्षेप भी नहीं चाहिए , औफिस के लिए एक से अधिक बस भी नहीं बदलनी है “

” कोई तेरी ज्यादा खोज-खबर ले यह भी तुझे नहीं पसंद , रेंट ज्यादा के नाम पर तू मायूस हो जाती है, कि घर पर पैसे भी भेजने हैं  , आसपास शांति बनी रहनी चाहिए,  हद है यार तेरी बातें तू ही संभाल “

बोलती हुई सपना को हंसी आ गई थी।

इस तरह कितनी ही बार हो गये हैं। बात कहीं बन रही है ।

नैना ना पुरानी दिल्ली जाना चाह रही है और ना जमुना पार।

नैना मुंह बना कर ,

” ठीक है यार , तू भी हंस लें मुझपर सारा औफिस तो माखौल उड़ा ही रहा है “

इस तरह भटकते हुए जब उसे दस दिन निकल गये। तब उसने सुशोभित से मदद लेनें की सोची है।

नैना जया को देख कर उसके हाल पर बेचैन है। जिसे बेटे ना होने की सजा जाने -अंजाने में भुगतनी पड़ रही है।

” तुम्हारे साथ ज्यादती हो रही है‌ ” एक दिन नैना ने कहा था।

”  हां! पर ज्यादा दिन नहीं हो पाएगी । एक नौकरी छूट गई तो क्या मैं दूसरी देख रही हूं  “

” दीदी , मालूम है शोभित भी यहां ही रह रहा है। अपने कुछ मित्रों के साथ  मैं उसके साथ अपने लिए कल एक घर देखने जा रही हूं “

जया चुप रही।

नैना अपने पैरों पर खड़ी है एवं अपना भला- बुरा अच्छे से समझती है। 

अगला भाग

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