डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -30)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

— सपना

” पास ही के सिनेमा घर में लगी है। घूमते हुए चलेंगे ” सपना बोली।

नैना को ऐसी ऐक्टिविटी बहुत एक्साइटेड कर देती हैं।

दो लड़कियां अकेली घूम रही हैं। कोई मेल मेंबर साथ में नहीं है।

पिक्चर देखने जाएंगी। काॅफी हाउस के सामने खुले स्पेस में समोसे और काॅफी पाएंगी।

अंदर हौल में उसने अपने खुद के लिए कोने वाली सीट चुनी सपना को मिली बीच की उसे  किसी अंजान पुरुष के बगल में बैठने में संकोच नहीं होती।

नैना कहती हैं ,

” तुम मुझसे पहले से  महानगर में रह रही हो ना इसलिए ? “

सपना मुस्कुरा कर ,

” अच्छा बाबा ठीक है मैं ही बैठ जाऊंगी “

आज नैना ने पहली बार जींस और शर्ट पहनी है। उसे लग रहा है सारी दुनिया उसे ही घूर- घूर कर देख रही है।

हौल की टिकट वाली खिड़की पर मनपसंद सीट देख कर टिकट लेने, काॅफी हाउस की सीट पर पर बैठ कर काॅफी का आर्डर देने और पालिका बाजार में कमीज की कीमत के बारगेनिंग करने तक की सारी जिम्मेदारी  सपना ही निभाती है।

नैना ने एकसाथ बार कोशिश भी की है पर इस तरह बोलने से उसके तलवों में झुनझुनी भर जाती है।

फिल्म के इन्टरवल में नैना को भूख लग गई थी।

सपना ,

” जाओ एक पौपकोर्न खरीद कर ले आओ”

” उंहू मुझे शर्म आती है “

” हद है ! ” कह कर सपना ही उठी थी।

इधर , जया के गर्भ में उसका बच्चा आकार ले रहा है।  पेट पर चौबीस घंटे भार लिए घूमती , नाम सोचती …

अगर लड़का हुआ तो ये नाम रखूंगी और लड़की हुई तो ये ।

लड़की होगी तो उसे पायल पहनाऊंगी।

वह टूट गई थी … पिछली बार अपने सपनों को, उम्मीदों को, आशाओं को , तमन्नाओं और ख्वाहिशें के बिखर जाने से।

चाहती तो वह भी थी कि उसका एक बच्चा हो , अब वह ठहरना चाहती है।

लेकिन रोहन की मां की पोते की जिद पूरी करने के लिए नहीं। 

आम औरतों की उसे यह  बिल्कुल मंजूर नहीं कि बेटे की शक्ल देखने के लिए बेटियों की कतार लगा ली जाए।

उसके जीवन का उद्देश्य मात्र बच्चे पैदा करना ही नहीं है।

इन दिनों वह स्कूल से छुट्टी लेकर घर पर ही रह रही है या यों कहें उसे रहना पड़ रहा है।

इस समय उसके मन में यही ख्याल चलता रहता है —-

एक औरत होने के नाते मेरा वजूद क्या है ?

मां- बाप के घर से सपनों की जिस पोटली को बांध कर मैं यहां आई उसे खोलकर देखने की कोशिश भी क्या किसी ने की  ?

रोहन जिसके सात वचनों पर सवार हो कर मैं यहां चली आई थी।

वे भी मां के समक्ष चुप हो जाते हैं कुछ बोलते क्यों नहीं हैं ?

तो क्या पोते की  लालसा सिर्फ मां जी की इच्छा है या इसमें रोहन की भी सहमति है ?

खैर …

जया संभल गई और अपने आंसू जो आंखों से बह निकलने को तैयार थे उन्हें अपने अंदर ही पी कर ,

” मैं कमजोर नहीं हूं । मैं कमजोर हो भी नहीं सकती। मैं मोम की तरह पिघल नहीं सकती। मेरा अस्तित्व बहुत बड़ा है “

जया अपने पहले मिले वेतन से सासु मां के लिए साड़ी खरीद कर लाई थी। जिसे उन्होंने यह कहते हुए अलमारी में रख दी थी ,

” जब पोते का मुंह दिखलाओगी, उस दिन पहनूंगी।

इन तमाम तरह की चिंताओं से जूझती जया की आंखों से टप-टप आंसू बहने लगे थे।फिर रोती हुई ही उसे नींद आ गई थी।

जो नैना और सपना के आने  के बाद खुली थी।

नैना ने उसे देखा ,

” दीदी कितनी सुन्दर लग रही हो  ! सुन कर जया को स्मरण हो आया,

मां कहती थी ,

” प्रसव काल में सुंदर लगने से लड़की होती है “

उसके चेहरे पर सहज मुस्कुराहट आ गई। उसने नैना को अपने पास खींच लिया।

इन सब बातों में दिन पंख लगा कर उड़े जा रहे हैं।  

आगे …

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