डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -29)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

जया की तबियत नैना के आ जाने से  सुधरने लगी थी।  वह नैना और सपना  को एक साथ खुश और बतियाती देख कर संतुष्ट थी।

पहले थोड़ी चिंतित थी।

सपना न जाने कैसे रिएक्ट करे लेकिन उन दो सहेलियों में आपसी सामंजस्य बैठ जाने से वह इस ओर से निश्चिंत हो गई थी।

इधर जया की सासु मां का भी अचानक से हृदय परिवर्तन हो गया था।

वह बहुत फिक्रमंद हो गयी थीं।

हालांकि जया यह समझती है। कि यह खुशी उसके लिए नहीं है जो इस घर को खुशी देने वाली थी बल्कि उसके लिए थी जो खुशी वह घर को देनें वाली थी। वे अपनी जान को मुठ्ठी में लिए बैठी थीं।

” इस बार बस बच्चा एक बार मेरी गोद में आ जाए , मैं उसके रोआं भी नहीं दुखने दूंगी “

फिर उन्होंने पूरे नौ महीने जया को पलकों पर बिठा कर रखने की ठान ली ।

उसे स्कूल से लीव ले लेने का फरमान जारी हो गया था।  जया को मजबूरी वश ऐसा करना पड़ा था।   इस बीच सपना और नैना ने भागदौड़ करके अपने ऐडमिशन दिल्ली के एक कौलेज में करवा लिया है।

उस कालेज में नैना की तीन महीने पूरे भी हो चुके हैं।

पहले दिन जब नैना  अपने ढ़ीले सलवार-कमीज  में  सुबह नौ बजे के करीब काॅलेज- पहुंचने को तैयार हो रही थी उसे उपर से नीचे तक देखा कर सपना हंसी थी  और नैना ने मन ही मन  में सोचा था ,

” ठीक है मैं बदलूंगी पर धीरे-धीरे अपने अनुसार “

क्लास में नैना ने अपने चारो तरफ नजर घुमाई।

देश के अलग-अलग कोनों से आये लड़के- लड़कियां वहां पहुंचे हुए हैं एवं सभी निश्चिंत भाव से भरे हैं।  एक सिर्फ उस पर ही बेचैनी छाई है।

तभी क्लास में ,

” काॅलेज- के प्रथम दिन आपका स्वागत है “

की आवाज के साथ सबने उधर देखा।मैडम सुमेधा के जैसा व्यक्तित्व उसने पहली बार देखा था।

” अभी तक आपने अपने स्कूल की पढ़ाई की है और अपनी मेहनत के बल पर यहां तक आ पहुंचे हैं।

हो सकता है शुरू में यहां आपको कठिन और  यहां का  वातावरण थोड़ा खुला- खुला लगे।

पर आपको अपने मन और दिमाग  की  एक- एक नस और कोने को इस वातावरण के तरंगों से जज्ब कर लेनी चाहिए “

नैना ने इसे ‘सूत्रवाक्य’ मानकर अपनी लाइफ स्टाइल बना ली।

सुबह छह बजे उठ जाती। उसके साथ ही सपना भी उठ जाती है।

दोनों मिल कर फिर जया की साज संभार कर लाइब्रेरी के लिए निकल जाती।  नयी दिल्ली से कितने ही अख़बार  और पत्रिकाएं निकलते।

जिन्हें नैना अब तक जानती नहीं थी। वो सब उसने पहली बार देखे हैं।

काॅलेज- कैम्पस में उसे बहुत अच्छा लगता है।

चमकते हुए फर्श  और  गलियारे। खूब बड़े और खूब खुले , बड़े कमरे।

अंदर लौन में फूलों की क्यारियां और शर्म मुलायम घास  के मैदान।

बीच- बीच में  बड़े- बड़े पेड़ से ढ़ंके ,लंबे रास्ते।

पूरे – अधूरे माॅडलो वाला एक्सपेरिमेंट लैब।

नैना  कितनी दफा यों ही काॅलेज- के चक्कर लगा लिया करती।

साथ में सपना रहती है।  एक दिन दोपहर में सपना ने अलसाते हुए कहा ,

” नैना,  कल दोपहर में  हौल में पिक्चर देखने चले ंं ? “

” मैं जरा अपनी जेब चेक कर लूं ?

नैना चाय के घूंट भर्ती बोली। नैना को अक्सर अपनी जेब टटोलनी पड़ती है। उसे मात्र बारह सौ रुपये स्काॅलरशिप मिलती थी। 

जिसमें काॅलेज की फीस खुद की मेंटेनेंस और बस भाड़े को हटा कर सिर्फ तीन सौ रुपये ही बचते।

घर से पिता एक पैसे भी नहीं भेजते थे।

अगला भाग

डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -30)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!