— नैना
मई महीने के उत्तरार्ध में मेरे परीक्षा का रिजल्ट निकल गया था। खूब अच्छे नम्बर आए थे और जिसके साथ ही याद आए थे।
‘हिमांशु सर’ उनकी बड़ी भावपूर्ण आंखें और गहरी आवाज़… सर ,
” तुम न जाने किस जहां में खो गये … अब तो अच्छे नम्बर भी ले आई “
पर मेरी दबी- घुटी हुई सी आवाज वहां पसरे अनंत में खो गई थी।
वही किंतु और परंतु ? क्या होगा ?
पिता की नजरों में मेरी बाहर जाने और पढ़ाई जारी रखने की नादान सी जिद एवं मां की अस्वस्थता यह दो ऐसे तत्व थे।
जिस पर उन्हें भाई के साथ मिलकर शिखर- सम्मेलन में भावी रणनीति तैयार करने की आवश्यकता आन पड़ी थी।
एक बेकार सी भाएं- भाएं- करती गर्मी की दोपहर में,
जिसे एक बेकार से उपन्यास के सहारे काटने की कोशिश कर रही थी। रोहन कुमार के फोन ने घर में सरगर्मी बढ़ा दी थी ,
” प्रणाम बाऊजी !
जया को मानसिक और शारीरिक आराम की बेहद जरूरत है ।
डाक्टर ने उन्हें खुश रहने की सलाह दी है। वो नैना को शिद्दत से याद कर रही है।
वह यहां आ जाती तो … ? “
मेरे लिए तो यह जीवनदान था।
हां मां की बीमारी की टाइमिंग ऐज़ यूज्जव्ल थोड़ी ऊंची – नीचे झूले की जैसी होने लगी। चूंकि जया ने उन्हें नहीं याद किया था तो मेरा जाना लगभग तय था।
मैं ने मन ही मन में ईश्वर को धन्यवाद दिया।
महीने के अंतिम सप्ताह में मेरे गिने- चुने कपड़ों के साथ तैयारी पूरी हो गई।
मेरे पास सुशोभित के दिए हुए दो- चार फोन नम्बर थे। सो घर से निकलते वक्त मैंने सहेली निभा के फोन से उसे अपने दिल्ली पहुंचने की जानकारी दे दी थी।
जून के प्रथम सप्ताह में हाथ में सूटकेस लिए नैना दिल्ली पहुंच गयी थीं।
स्टेशन पर शोभित आया था उसे लेने। नैना को उसे देखते ही बहुत जोरों की रुलाई फूट पड़ने को हुई थी।
उसकी पहली प्रतिक्रिया उसके गले लग जाने की हुई ।
पर स्टेशन की भीड़-भाड़ को देखते हुए खुद को जब्त कर लिया और सिर्फ हाथ थाम कर रह गई।
” हैलो , तुम्हें अकेले आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई ? “
नैना चौंकी फिर इंकार में सिर हिलाया।
दिल्ली की भीड़-भाड़ देख कर वह आतंकित हो गई।
उसने सोचा ,
” मैं कहां हूं? यह कौन सी दुनिया है ? “
बदन में एक सिहरन भरी पुलक उठी और बांहों के रोम खड़े हो गए।
” यह देश की राजधानी है ” शोभित ने उसे जया के घर तक पहुंचने में सहायता की।
जया सो रही थी , जब सुबह नौ साढ़े नौ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और नैना ने सूटकेस लिए घर में प्रवेश किया
उसके मन में धुकधुकी हो रही थी । न जाने उसका किस तरह से स्वागत हो ?
घंटी पर हाथ रखा । दरवाजा खुला पर कोई दिखाई नहीं दिया। तभी चप्पलों की आहट हुई और एक उसकी उम्र की ही युवती बाहर आई ।
रोहन कुमार की छोटी बहन थी। सपना चहक उठी,
” भाभी , नैना आ गई “
हल्की मुस्कान से नैना ने उसकी तरफ देखा उसकी सांसें खिल गई। हिचकते हुए ,
” तुम सपना हो ना ? ” वह हंसी थी।
” आओ ना अंदर। तुम कड़ी धूप में बारिश के जैसी खुशनुमा हो।
सपना उसके हाथ का सूटकेस ले कर अंदर गयी थी। उसे गये अभी कुछ ही पल हुए थे कि भीतर कहीं दरवाजा खुला और जया अपने बाथरोब में आई – पोटली – जैसे अपने भीगे बालों को कसे हुए ।
और आते ही उसे बांहों में भर कर उसके कपोल चूम लिए ,
” बहुत निखर आई हो “
घरवालों द्वारा उसे अकेले छोड़ दिए जाने की उदासी के बाद सपना और जया की ऐसी आत्मीयता नैना को बहुत मधुर लगी थी।
यह जया की गृहस्थी थी। दिल्ली के अत्यंत व्यस्ततम इलाके नारायणा में एक से डेढ़ बेडरूम और बालकनी वाली।
जिसमें नैना को अलग से रहने के लिए कमरा मिलना बिल्कुल असंभव था।
तो तय यह हुआ कि फिलहाल नैना के ऐडमिशन होने और कुछ व्यवस्था होने तक रोहन बालकनी में सो जाया करेगें।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -29)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi