डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -33)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

कुछ समय इसी तरह बीता था।

देवेन्द्र माएरा का छोटा भाई। एक दिन उसका फ़ोन आया था ,

” आप मेरी दीदी के साथ ठीक नहीं कर रहे हो , वह मर जाएगी , वो आपका आदर करती है , मैं पुलिस के पास जाउंगा… ब्ला… ब्ला … ब्ला “

मुझे समझ में नहीं आया आखिर माजरा क्या है ?

यह तो बाद में पता चला था।

माएरा को किसी काम के सिलसिले में शहर के बाहर जाना था। और उसने घर वालों को यह कह कर मना लिया था  कि,

” वह मेरे साथ जाना चाहती है ” 

जबकि वो अपने दोस्तों के साथ ट्रेन से टिकट कटा कर उनके साथ सैर- सपाटे पर निकल गई थी ।

बस बात इतनी सी थी।

जिसे चाहता तो मैं अकेला ही हैंडिल कर लेता। पर  इच्छा नहीं हुई। माएरा के भाई के बीच में आ जाने की वजह से मामला सारा गड़बड़ हो गया।

वो लम्हा  गुजर चुका था , जिसके गुजरने का खौफ मुझे पहले से था।

वह चली गई थी।

और मैं वहां से पलायन कर तुम्हारे शहर जा पहुंचा।

” अब बताओ , आगे और भी कुछ सुनने की इच्छा है या चलें  निकले ? “

” पहले चाय ! “

” नहीं , अब घर में चाय पीने का मूड नहीं है। चलो बाहर ही खाना खाएंगे “

शाम को वे दोनों करोल बाग पहुंचे थे। ईस्टर्न लो एरिया की गली थी। जो एक ओर शाहजहां रोड को छूती और दूसरी ओर पूसा रोड को।

बीच में यह तीन मंजिला मकान।

नीचे मिस्टर अरोड़ा अपनी फैमिली के साथ रहते थे। पहली मंजिल पर उनकी बेटी अपनी बेटे के साथ रहती थी।

उनके कमरे के बाईं ओर से उपर जाने की सीढ़ियां खुलती थी।

जिससे जा कर नैना ने बरसाती देखी थी।

खूब बड़ा सा कमरा जिसके दोनों ओर एक- एक खिड़की एक ईस्ट की ओर एक वेस्ट की ओर खुल रही थी।

शीशे का दरवाजा जिसके पार एक और जाली का दरवाजा था। पंखा  लगा हुआ था।  बिजली की दूसरी फिटिंग्स भी लगी हुई थी।

बगल में छोटा सा किचन , बड़ा सा बाथरूम जिसमें गीजर लगा हुआ था। और छोटी सी बैडमिंटन के कोर्ट जैसी छत। आसपास शांति बनी हुई है।

जब वे नीचे उतरे तो मिसेज अरोड़ा ने पूछा ,

जगह कैसी लगी ?” 

नैना अपनी खुशी छिपा नहीं पाई ,

” बहुत अच्छी “

” तीन साल से खाली पड़ा है। घर खराब होने के डर से किसी को रखते हुए घबड़ाती हूं “

” हां, मेरी बेटी कभी-कभी जा कर साफ- सफाई कर दिया करती है। “

” तो अभी भी आ जाया करेगी , मेरी दोस्त की तरह “

” आपका औफिस तो बाराखंबा रोड में है तो  आप यहां से सिर्फ  यहां से आप सीधे  स्टोरेज पर पहुंच जाओगी  “

मिस अरोड़ा ने कहा । वह नैना के व्यक्तित्व से इम्प्रेश लग रही थी।

बातचीत लंबी हो चली थी सो शोभित बीच में बोल उठा ,

” किराए को लेकर क्या हुकुम है ? “

” बेटे अब तुम्हारा दोस्त मेरा रिश्तेदार ही है। तो यह घर की बात हुई ना  ,

चलो पांच सौ रुपये दे देना “

शोभित के कहने पर नैना ने अपने बैग में से रुपये निकाल और गिन कर मिसेज अरोड़ा को दे दिए।

वापसी में नैना ने कहा था ,

” मेरा जीवन सफल हो गया  “

” बहुत जल्दी तुम्हारा जीवन सफल हो जाता है”  शोभित हंसा था।

नैना का मन खुश था। उसने कहा बहुत जोरों से भूख लग आई है शोभित  चलो किसी रेस्तरां में बैठते हैं।

शोभित ने अपनी बाइक  काॅफी हाउस के पास रोकी थी वहां उन्होंने जम कर डोसा-सांभर-बड़ा खाए और गर्म- गर्म आइरिश काफी पी थी।

शोभित उसे डोसे पर इस तरह ताबड़तोड़ हो कर टूटते देख कर ,

” तुम उपर से इतनी चुप और अंदर से इतनी रंगारंग हो कि तुम्हें सही- सही मापना बहुत ही मुश्किल है “

जबकि नैना सोच रही है,

” नहीं , हूं नहीं पर तुम्हारी आत्मीयता से ऐसा परिवर्तन और निखार आ जाता है “

” दीदी, मुझे रहने को बरसाती मिल गई “

रात नौ के लगभग नैना ने घर में प्रवेश किया था।

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