डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -25)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

वक्त पंख लगा कर उड़ गया … 5 बर्ष आगे निकल गये  … जिंदगी पटरी  बदलती आगे दौड़ती जा रही है।

अब जया भरपूर स्त्री दिखती है।

उसकी जिंदगी अनिश्चय एवं भावनात्मक अस्थिरता के बीच सागर के ज्वार- भाटे में डूबती-उतराती रही है।

— जया ,

विवाह के शुरुआती दिनों में रोहन मेरे चारों तरफ गोल- गोल चक्कर लगाते रहते।

यह सोच कर मैं खुश थी ,

”  कि चलो ,  जिंदगी के पहले इग्जाम में पास हो गई  “

रोहन से बड़ी दो दीदियों की शादी हो गई थी। बस एक छोटी बहन ‘ सपना’ दिन भर कमरे में घुसी रहती और एक्सरे की तरह मेरी हर चीज की खोजबीन किया करती थी।

उसे देख कर मुझे बरबस नैना की याद आ जाती है।

दुरागमन के समय वापस लौटने समय वह कातर दृष्टि से मेरी ओर देख रही थी।

मानों कहना चाह रही हो ,

” दी मुझे तुमसे कितनी आस थी “

उस समय मैं भी क्या कर सकती थी ?

नयी शादी घर में नये- नये लोगों से मिलने – जुलने और परखने में ही महीने भर से उपर  लग गये।

मुझे एक बात जो अखरती थी। वह यह कि ,

” कि मैं जो कुछ भी रोहन को कहती , वो उनके मां के कान में पहले पहुंच जाती “

खैर …

मैं चुपचाप मन को समझा कर रह जाती कुछ बोल नहीं पाती थी।

वो तो मैं … शादी से पहले बी.  एड कर चुकी थी।

लेकिन वो कहावत सुनी है ना ?

” सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ”  रोहन  की मां का सबसे बड़ा दर्द यही था। 

घर की बहू! बाहर निकल कर नौकरी करेगी ? घरवालों की कटी नाक लहराएगी ?

पर मैं भी स्वाभाव से जीवट थी। जब सोच लिया कि नौकरी करनी है, तो करनी थी।

कोई मानें या ना मानें।

कुछ दिनों पहले ही रोहन से अतिरिक्त लाड़ के समय उनसे अपनी  घर के बाहर जा कर नौकरी करने के सिलसिले में कमिटमेंट करवा लिया था।

फिर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी।

घर से बाहर नौकरी पर जाने के लिए मैं अकेली नहीं थी बल्कि परिवार का वारिस मेरे साथ था।

मतलब जया पेट से थी !

अब मैं खुद दो जीवों पर होनेवाले खर्च का वहन कर रही थी तो रोहन के लिए भी कुछ आसान हो गया था।

नौकरी के तीन महीने बीत चुके थे।

जिसमें साथ देने के नाम पर सिवाए रोहन के और कोई नहीं था।

फिर भी कुल मिलाकर सब ठीक-ठाक ही चल रहा था। लेकिन फिर

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