डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -22)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

दीदी को दिल्ली वापस गये हुए हफ्ते से उपर होने को आए हैं। लेकिन घर का सूनापन बरकरार है।

दी के साथ ‘ रोहन कुमार ‘ भी थे। घर में खासी चहल- पहल थी।

उनकी वाकपटुता खूब भाती थी।

मैं उन्हें ‘ रोहन कुमार ‘ कह कर बुलाती थी ।

इसपर घर में बाकी सबको बहुत ऐतराज था पर

खुद उन्हें मेरा उनको नाम ले कर बुलाना बहुत पसंद था। अतः फिर किसी और के ऐतराज पर मैंने ध्यान नहीं दिया।

खैर … उन लोगों के वापस जाने के बाद

मैं अपना ध्यान एक बार फिर से पढ़ाई पर केन्द्रित करने के प्रयास में जुटी थी।

कि  एक दिन विनोद भाई मेरे कमरे में आए थे और सामने बिस्तर पर बैठ कर सामान्य स्वर में,

” तुम पर यह बाहर जा कर पढ़ाई करने का शौक  ? “

” यों ही “

” यों ही? मतलब आखिर किसी ने तो तुम्हारी चाभी भरी होगी “

मैं समझ गई उनका  इशारा साफतौर  पर शोभित की तरफ  था।

मेरे अंदर की आग जो कुछ देर के लिए शांत हो गई थी फिर से धधक उठी।

भाई ने गौर से मेरा मुंह देखा।

” नैना , शहर में दस तरह की बातें हों रही हैं “

” पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है। जिसकी आंच मेरे परिवार पर आए।

और बाहर जा कर पढ़ाई कर के अपना कैरियर बनाना अधिक आवश्यक है। बहुत सी लड़कियां ऐसा सोच रही हैं। “

” हां अगर आप सब का साथ नहीं मिला ना तो मैं दूसरा और कोई रास्ता अवश्य देख सकती हूं,

फिर आप पर कोई उंगली उठाएगा तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं ”  

मैंने ढृढ़ स्वर में कहा।

उनके जबड़े सख्त हुए ,

” लेकिन हमें इसी शहर में रहना है। यह शोभित कौन है  ?

मन में धधकती आग को जबरन दबाते हुए,

” कदाचित बेहतरीन दोस्त मुझे उसका साथ अच्छा लगता है “

इस बार मैंने उनसे सीधी नजर मिलाई।

” यह क्या है नैना ? हम तुम्हारी शादी की सोच रहे हैं “

” लेकिन भैया, मुझे शादी उतनी महत्वपूर्ण नहीं लगती है जितना कि अपने पैरों पर खड़े होना जरूरी लगता है “

” लेकिन पढ़ाई तो तुम विवाह के बाद भी जारी रख सकती हो “

” ऐसा नहीं हो पाता है भाई “

“यह तुम कैसी उटपटांग बातें कर रही हो ? “

” हो सकता है मेरी बातों को मेरा विद्रोह करना माना जाएगा।  लेकिन ऐसा करना मेरी मजबूरी है “

मैंने हिम्मत करके स्पष्टीकरण दे दिया।

नैना को तसल्ली हुई कि उसने नग्न सच्चाई रख कर घर में अपने बारे में चल रही तमाम अटकलों को शांत  कर दिया।

इस बार भाई ने मुझे ध्यान से देख कर गहरी सांस ली।

” हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं ,

जया की ही तरह तुम्हें सुखी देख कर हम भी ख़ुश होंगे “

” लेकिन भाई आपके और और मेरे सुख- दुख की परिभाषा अलग है “

मैं नजर नीची कर बुदबुदाई थी।

अगले दिन सुबह – सुबह ही मैं सुशोभित के घर जा पहुंची।

मेरा चेहरा शायद बहुत उतरा हुआ लग रहा होगा।

” क्या हुआ नैना, कुछ परेशानी है ? “

अगला भाग

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