डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -21)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

— नैना

जया दी के ससुराल चले जाने के बाद मैं पढ़ाई में जुट गई थी।

आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाने का निर्णय ले चुकी थी।

घर में मुझे ले कर मां और पिताजी में अक्सर कहा सुनी हो जाया करती।

जया दी और मैं ने घर के कामकाज आधे- आधे बांट रखे थे। अब उनके जाने और मेरे दिन रात पढ़ाई में जुटे रहने के कारण मां पर ही काम का सारा बोझ आ गया था। उनका मुंह दिन- रात फूला रहता था।

पिता इसे विधि की विडंबना कहते।

तभी जया दी के द्वोरागमन पर वापस आने की खबर आई।

ससुराल में प्यार और सम्मान पाने वाली बहू के सौभाग्य से दप- दप करती दीदी पहली बार माएके आई थीं।

मैं ने सोच रखा था।  उनसे ही आगे अपने दिल्ली  में ऐडमिशन की बात करूंगी।

पर वे तो पति के प्यार में पूरी तरह से पगी बात- बात पर खिलखिला कर ‘ नारी के जीवन में ससुराल की महत्ता ‘ पर व्याख्यान देती सी दिखीं।

चेहरे पर हल्की ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मुस्कान लिए सामने कुर्सी पर बैठी मैं ने पाया कि शादी से पहले इस घर में जया दी जिस कड़वाहट के साथ रह रही थीं। उसकी जरा सी भी खरोंच उनके मन पर नहीं थी ,

” मां बिचारी दिन भर खटती रहती है और मैं ने सुना है तू बस अपने में ही जुटी रहती है ,

और पिताजी भी कितने कमजोर हो गये हैं “

जिसे सुनकर

मुझे एक ओर तो उनके हृदय की विशालता पर हैरानी और अपनी एक भी बात न भूलने वाले स्वाभाव पर गुस्सा आ रहा था।

जब मैं उनके इस हृदय परिवर्तन को किसी भी प्रकार आत्मसात नहीं कर पाई तो फाइनली पूछ ही बैठी ,

दीदी तुम्हें  ‘विकास भाई’ की याद नहीं आती है ? “

” मुझे याद करने की फुर्सत ही कहां मिलती है ? 

और फिर हाथ से अपने पेट को थपथपाते हुए,

” अब तो इसके आने के इंतजार में ही रात- दिन कटने वाले हैं “

फिर एक ठंडी सांस लेती हुई ,

” नैना , विनोद भाई तेरी कारगुजारियों से तंग आ कर तेरे लिए भी लड़का ढूंढ़ रहे हैं “

यह सुन कर मेरे कान सनसना गये।

” वो तेरे हिमांशु सर! सुना है उनका ट्रांसफर  दिल्ली ही हो गया है  “

दी ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया।

” और तुमने शोभित के घर का फेरा लगाना बंद किया कि नहीं ? “

मैं ताज्जुब में डूब गयी।

मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि  अब परिवार में सबकी चिंता और चर्चा की एकमात्र बिषय मैं ही बची रह गई हूं।

मुझे उनके चेहरे पर पहले वाली जया दी के अक्श को ढूंढने की कोशिश में निराशा हाथ लग थी। मै चुपचाप अपने कमरे में आई और पढ़ाई में जुट गई।

विदाई वाले दिन वे सबसे गले मिल कर रोई और मुझसे बोली,

” नैना , मां पिताजी की बात मान कर अपना जीवन संवार ले “

उनके यह कहने का साफ अर्थ था।  मां- पिताजी ने इनकी चाबी भी भर दी है।

मैं अब और चुप नहीं रह सकी ,

” दी! वहीं करने की कोशिश तो कर रही हूं”

आगे …

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