कॉलेज की सुहानी यादें –   वीणा 

बात तब की है जब लोगों की जुबां पर ‘जीता था जिसके लिए ‘ गीत के बोल चढ़े हुए थे । युवक -युवतियों के बीच प्यार का आलम परवान पर था।

सलमान खान ,शाहरुख खान ,अजय देवगन आदि  अभिनेता युवकों के आदर्श बने हुए थे।

                     ऐसे ही समय में मेरे कॉलेज में कौशर नाम की एक मुस्लिम लड़की ने प्रवेश लिया ,नाम के अनुरूप ही गुण । पढ़ने लिखने में होशियार , मासूमियत से भरी उस लड़की ने कुछ ही दिनों में सभी सहपाठियों का दिल जीत लिया । मेरे क्लास में वैसे भी लड़के पढ़ते थे ,जिन्हें पढ़ाई लिखाई से कोई सरोकार न था ,उन्हीं में एक था निखिल । दिन भर आवारागर्दी करना उसका प्रिय शगल था ,सिगरेट होठों में दबाये बस इधर से उधर घूमते रहना और लड़कियों पर फब्तियाँ कसना ।

           पर कौशर के चेहरे ने उस पर भी जादू कर दिया था , कौशर को देखने के लिए अब वह पूरे समय कक्षा में उपस्थित रहने लगा , प्रोफेसरों को उल्टे सीधे जवाब देकर वह कौशर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में लगा रहता ।

             एक दिन हम सभी सहेलियों ने कौशर को कहा – तुम्हारे चेहरे का जादू हम तभी मानेंगे ,जब निखिल की रूचि पढ़ाई लिखाई में जग जाए। कौशर बहुत ना-नुकुर करने के बाद इस बात के लिए तैयार हो गई। अगले दिन से जब भी वह निखिल को देखती ,एक स्मित मुस्कान अपने अधरों पर ले आती । धीरे – धीरे उसने निखिल की बगल वाली बेंच पर बैठना शुरू किया । गाहे बगाहे वह निखिल से कहती – फलां कॉपी देना ,कल सर ने जो लिखवाया था ,वह मैं लिख नहीं पाई । पहली बार तो निखिल बगलें झाँकने लगा ,पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अब प्रोफेसरों के लिखाये नोट्स को ध्यान से लिखता । कभी – कभी कौशर उससे कह बैठती – निखिल ,सर के समझाये इस आर्टिकल की व्याख्या कर दो न , मेरे तो बिल्कुल भी पल्ले नहीं पड़ा ।


और कहते हैं न ,प्यार की भावना और सच्चे दिल से की गई कामना बेकार नहीं जाती । धीरे धीरे निखिल के अन्दर पढ़ने लिखने की इच्छा जागृत हो गई ,दोस्तों के साथ की आवारागर्दी बंद हो गई । पर इस अनजाने में हुई नजदीकियाँ , उनदोनों को बेहद करीब ले आई । दोनों एक दूसरे के शरीकेहयात् बनने के सपने देखने लगे , लेकिन धर्म का आड़े आना सबसे बड़ी समस्या थी , यह वह दौर था जब लोग इज्जत के नाम पर कुछ भी कर गुजर जाने को तैयार थे । कौशर और निखिल दोनों ने वक्त की नजाकत को समझा और ताउम्र दोस्ती निभाने का वादा कर अपनी दिशायें बदल ली । आज कौशर और निखिल दोनों ही उच्च पद पर आसीन हैं । आज भी हम सब दोस्त होली ,दीवाली ,ईद आदि मौकों  पर इकट्ठा होते हैं बुजुर्गीयत को ताक पर रख मस्ती की हदों को पार कर जाते हैं । शायद इसी लिए कहा गया है…

            यारा तेरी यारी को मैंने तो खुदा माना

            याद करेगी दुनिया , तेरा मेरा अफसाना…

                                       वीणा की कलम से

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