एक ही बेटी – कंचन श्रीवास्तव

पराया धन कह कर पता नहीं बेटियों की उपेक्षा की जाती है या उन्हें सम्मान दिया जाता है नहीं मालूम पर आज सरल पर जो कुछ बीत रही उसका व किसी से जिक्र भी नहीं कर सकती।

किससे करें ससुराल में करें तो सब ताना मारेंगे और मायके में पहले जैसा कुछ रहा नहीं।

सब कुछ उलट पलट हो गया।

गए दिनों कुछ संदेहों ने लोगों के बीच ऐसी दूरियां ला दी की वो चाहकर भी नहीं हट रही ।

हटे भी कैसे ये जो वैचारिक मतभेद हैं वो दूर होने ही नहीं दे रहा।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि कोई मिल बैठकर सुलझाना नहीं चाहता।

फिर भला कैसे गलतफहमियां दूर हो। वक्त अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा है जवान बूढ़े हो रहे और बच्चे जवान इन सबके बीच जिन बड़े बूढ़ों को समझाना था वो चप टप काल के गाल में जाने कब के समान गए ,पता ही न चला।

ऐसे में हाथ मल कर रह जा रही पर कुछ कर नहीं पा रही।

आज साल पुजने को आया जिस भाई के बिना उसका एक दिन भी नहीं बीतता था उनसे बात तक नहीं की देखना तो दूर की बात है।

आज उसे बड़ों का न रहना बहुत खल रहा।कि अगर वो होते तो ये नौबत ना आती  कोई पूछता से कि तुम्हारे मायके में सब कैसे हैं तो फीकी मुस्कान सजाकर होंठों पर सीने में दर्द समेटे कह देती है सब अच्छा है।


पर इस अच्छे के पीछे का दर्द उसे भीतर तक हिला देता है और वो कई दिनों तक जार जार रोती है।

पर ये क्या अचानक उसके आंसू सूख कैसे गए आज जब रमा भाभी ने उससे पूछा कैसे हैं सब लोग तो हंस कर बोली सब अच्छे हैं।

अब तो मां पापा भी नहीं रहे भतीजी भतीजा भी बड़े हो गए।

इस पर उन्होंने पूछा अब तो शादी होने वाली होगी। तुम पर तो बहुत खर्च पड़ेगा

तो इसने कहां हां । वो तो है ।

पर कैसे कहती की मां बाप के मरने में भी खबर नहीं मिली थी।और अपने से गई तो बेज्जत करके निकाल दिया।

फिर भला शादी में कौन पूछेगा।और अगर पूछ भी ले तो कौन जाएगा।

जब मां बाप ही नहीं रहे तो इन सबसे क्या रिश्ता ।ये तो माने के मान है।

आज उसे अहसास हुआ कि वक्त के साथ यदि उसे प्रेम और मोहब्बत से सींचा न जाए तो मजबूत से मजबूत रिश्ते कमजोर पड़ जाते हैं।

जैसे उसके आंखों से आसूं सूख गए मन के सारे उत्साह ठंडे पड़ गए।

आज उसे ऐसा लगा कि लोग क्यों बेटियों को पराया धन कहते हैं कितना भी बुरा हो पर बेटा ,बेटा होता है तमाम गलतियों के बाद भी उसी घर में राज करता है जहां जन्म लेता है।


और बेटी यदि शक के घेरे में भी आ जाए तो लोग हमेशा के लिए उससे रिश्ता तोड़ देते हैं।

क्योंकि ब्याह के बाद उस घर से उसका कोई रिश्ता नहीं रह जाता।

यहां तक कि मेहमान दारी भी तभी तक रह जाती है जब तक हर कोई चाहता है।

सोचते हुए पास खड़ी बेटी को सीने से लगा लिया।

और बुदबुदाई अच्छा है मेरे एक ही बेटी है ।

 

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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