बहू मेरा अक्स – ऋतु अग्रवाल

“सुनो! आज मैं बच्चों के पास ही सोऊँगी। राध्या को बहुत तेज बुखार है। सारा बदन तप रहा है उसका। रात को कुछ परेशानी हुई तो किससे कहेगी वह? रोमिल तो अभी बहुत छोटा है।” सुगंधा ने अश्विन की चिरौरी करते हुए कहा।           “मुझे कुछ नहीं पता। दवाई दे दी है न उसे। रात में … Read more

बहु हो तो ऐसी ” – कविता भड़ाना

“दुल्हन आ गई, दुल्हन आ गई” का शौर करते हुए बच्चे घर के अंदर भागते हुए आए, तो सुमित्रा जी ने जल्दी से पूजा की थाली तैयार करी और द्वार पर बहु का स्वागत करने आ गई, रीति रिवाजों से सारी रस्में निभाई गई और  इस तरह सुमित्रा जी भी आज बहु वाली हो गई … Read more

मां का अंधविश्वास या भेदभाव – शुभ्रा बैनर्जी 

भेदभाव एक सर्वव्यापी सामाजिक बुराई है,जिसका सूत्रपात परिवार से होता है और सूत्रधार होतीं हैं औरतें।पुरुष का योगदान नगण्य है।रजनी के परिवार में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिला,ननद के प्रथम प्रसव के समय।रजनी ने चार महीने पहले ही एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया था सामान्य प्रसव द्वारा।अब नव ब्याहता ननद आई थी प्रसव के लिए।रजनी … Read more

सर्वगुण संपन्न – शुभ्रा बैनर्जी 

शरीर पर लगे चोट के निशान दिख भी जातें हैं और मरहम-पट्टी करने पर ठीक भी हो सकते हैं,पर जब मन घायल होता है, तब उसके ना तो निशान दिखाई देतें हैं और ना ही कोई मरहम लग पाता है। दर्द की टीस मौन रोती रहती है,आजन्म रिसती रहती है। सर्वगुण संपन्न थी सुदेशना।दिखने में … Read more

“रिश्तों की तुरपाई” – शुभ्रा बैनर्जी

मालिनी की बेटी  बचपन मेंअक्सर सिलाई मशीन देखकर उससे पूछती” मां,दादी को इतनी अच्छी सिलाई आती है,पर तुमसे क्यों नहीं बनता कुछ?दादी ने कभी सिखाया नहीं तुमको?”मालिनी हंसकर ज़वाब देती”मैंने पहले ही बता दिया था तेरी दादी को,कि मुझे सिलाई करने का बिल्कुल भी शौक नहीं।” बोलने को तो उसने बोल दिया था पर उसे … Read more

अपेक्षा नहीं तो कैसी उपेक्षा – शुभ्रा बैनर्जी

जीवन के बारे में बड़े-बूढ़ों का तजुर्बा कभी ग़लत नहीं होता। उम्र के आखिरी पड़ाव में चेहरे पर झुर्रियां,भूत वर्तमान और भविष्य की लहरों की तरह समय के परिवर्तन शील होने का प्रमाण देतीं हैं।आंखों की रोशनी कम तो हो जाती है,पर अनुभव का उजाला टिमटिमाते रहता है,बूढ़ी आंखों में।”बचपन”परीकथा की तरह सुखद होता है। … Read more

मां की इज्जत – शुभ्रा बैनर्जी

निर्मला आज पूरे कॉलोनी में लड्डू लेकर अपने कैंटीन के उद्घाटन का न्योता दे रही थी।समय के साथ जैसे हर दिन एक नई निर्मला अवतरित होती जा रही थी।वही जोश,वही उमंग,वही हंसी।बहुत कुछ बदला था उसकी ज़िंदगी में,पर नहीं बदली तो उसकी हिम्मत।पिछले बीस सालों से जानती थी मैं उसे। हमारी सोसायटी के बाहर एक … Read more

“कैसी इज्जत” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

“नालायक कहीं का!” मेरी इज्जत का जरा भी परवाह नहीं है इस लड़के को! इंजीनियरिंग की डिग्री क्या मिल गई अपने आप को ज्यादा काबिल समझने लगा है। बाप का सिर झुकाने पर लगा है।मेरा सारा इज्जत प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला देगा यह लड़का! “ पिताजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया था। वह … Read more

एक गलत फैसला – गीता वाधवानी

आज मैं आपको एक कहानी सुनाती हूं। शायद यह कहानी सुनकर कोई और लड़की मेरी गलती से सबक ले सकें। जी क्या कहा आपने, मैं कौन हूं? आप मुझे नहीं जानते।  हां सही कहा आपने, कैसे जानेंगे मुझे। मैं कोई मशहूर हस्ती या सेलिब्रिटी तो हूं नहीं। मैं हूं एक आम लड़की, नाम टीशा।  एक … Read more

बहू भी औलाद है – शुभ्रा बैनर्जी 

बचपन में एक कहावत सुनी थी कि एक आंगन से उखाड़ कर दूसरे आंगन में लगाया गया पेड़ कभी जीवित नहीं बचता।मेरा मन कभी नहीं स्वीकारा इस सत्य को।कितने ही पेड़ पड़ोस के घर से मांगकर लाती रही और लगाती रही थी मैं। सकारात्मक सोच की धूप और प्रेम के पानी से सभी आज जिंदा … Read more

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