“कैसी इज्जत” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

“नालायक कहीं का!”

मेरी इज्जत का जरा भी परवाह नहीं है इस लड़के को! इंजीनियरिंग की डिग्री क्या मिल गई अपने आप को ज्यादा काबिल समझने लगा है। बाप का सिर झुकाने पर लगा है।मेरा सारा इज्जत प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला देगा यह लड़का! “

पिताजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया था। वह भैया को कोस रहे थे।  हम सभी भैया के लिए लड़की पसंद करने गये थे। सब कुछ अच्छा था। लड़की भी अच्छी थी। लड़की के पिता जी ने भैया से पूछा कि क्या उन्हें लड़की पसंद है। भैया ने हाँ में सिर हिलाकर हामी भरी थी। शायद किसी ने ध्यान नहीं दिया था लेकिन पिताजी तभी से लाल पीले हो रहे थे। भैया तो उधर से ही अपने ऑफिस चले गए। उन्हें कुछ पता नहीं चला पर जैसे ही हमारी गाड़ी घर पहुंची पिताजी गाड़ी से उतरते ही शुरू हो गए थे।

माँ  अनजान बनते हुए बोलीं –

“आखिर हुआ क्या है? जो आप बेटे पर इतने नाराज हो रहे हैं?”

पिताजी झल्लाते हुए बोले- “होगा क्या ? देखा नहीं लाडले को कैसे देवदास बना हुआ था। बिना कुछ सोचे समझे “बसहा”(बैल) की तरह मुंडी हिला रहा था।”

अरे! उस लड़की वाले का औकात है जो हमसे रिश्ता जोड़ लेता ।दस बार मेरे जुते पर नाक रगड़ता तब पर भी मैं तैयार नहीं होता। जैसे -तैसे दो बेड रूम का  मकान  बना लिया है और बेटी को चार अक्षर पढ़ा क्या लिया है चला आया मूंह उठा कर मेरे खानदान में रिश्ता जोड़ने…हूंह.. कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली! मुझे थोड़ा भी नहीं लगा कि लड़की वाले हमारी बराबरी के हैं।




माँ ने कहा-” तो क्या हुआ धन- दौलत में बराबरी नहीं है लेकिन उससे हमें क्या लेना देना। हम तो उनकी लड़की देखने गये थे न!  लड़की बहुत ही सुंदर और संस्कारों वाली लगी हमें।”

“तुम भी तो बेटे की माँ हो न! तरफदारी तो करोगी ही उसकी। लेकिन कान खोलकर सुन लो तुम….और अपने बेटे को भी समझा देना मुझे उन फटेहाल के कारण मेरे इज्जत में बट्टा नहीं लगाना है ।”

इतना बोलकर पिताजी घर से बाहर चले गए। समय बीता। माँ समझ चुकी थीं कि पिताजी को लड़की नहीं उसके रुतबे पसंद हैं। उन्होंने चाचाजी पर शादी की सारी जिम्मेदारी डाल दी। चाचाजी पिताजी की कडवे स्वभाव से भली -भांति परिचित थे। इसीलिए हर सम्भव प्रयास कर रहे थे कि शादी में किसी भी तरह का कोई लोचा ना हो। लड़की वाले की तैयारियों का जायजा लेने के लिए हमेशा उनके साथ फोन से जुड़े रहते थे।

शादी की तारीख नजदीक आ पहुंची। सारे मेहमान आ चुके थे। घर में शहनाई गूंज उठी। माँ घर की महिलाओं के साथ मिलकर मेहंदी हल्दी की तैयारियों में जुट गई। मेहमानों में कई रसूखदार लोग भी आये थे जो पिताजी के दोस्त थे। उनके लिये चाचाजी ने स्पेशल इंतजाम करवाये थे। रहने से लेकर खाने तक में सबके पसंद का ध्यान रखा गया था। देसी विदेशी सब तरह के ड्रिंक्स का इंतजाम था।




  तिलक  वाले दिन पिताजी ने चाचाजी को एक तरफ ले जाकर पूछा -” छोटे ,जितना डिमांड था वह सब दे दिया है न लड़की वालों ने। जग हँसाई नहीं होनी चाहिए।”

“हाँ भैय्या उनलोगों ने वादे के अनुसार सब-कुछ पूरा कर दिया है। थोड़े बहुत की बात है तो वह शादी के बाद दे देंगे। “

“क्या कहा?

दे देंगे…लड़की वाले ने कहा दे देंगे और तुमनें मान लिया की वो दे देंगे। दिमाग खराब है तुम्हारा!  शादी के बाद वो कुछ नहीं देंगे। यह एक चाल है उनका …..फ़सा लिया न अपने झांसे में। मैंने कहा था न कि वे सब चिरकुट हैं और समाज में उनलोगों का कोई इज्जत नहीं है। अब जाओ दोनों चाचा भतीजा मिलकर  बैंड  बाजा बारात लेकर उछालो मेरी इज्जत। “

“ओह्ह भैय्या  आप क्यों परेशान हो रहे हैं सब ठीक हो जाएगा। आप चिंता मत कीजिए जाकर अपने मेहमानों को देखिये। लड़की वाले आपके बराबर नहीं हैं पर वे लोग इज्जतदार जरूर हैं। “

“इज्जतदार हैं तो उनको खबर कर दो कि पहले लेन- देन पूरी करें उसके बाद ही उनके दरवाजे पर बारात जाएगी ।”

माँ पिताजी की बातों से क्षुब्ध हो गई। लाख मनाया पर जब पिताजी नहीं माने तो लड़की के पिता को बुलाया गया।

बेचारे दौड़े आये, हाथ जोड़ कर बोले -” मुझे माफ कर दीजिये समधी साहेब जितनी क्षमता थी मैंने देने की कोशिश की है जो बाकी है वह शादी के बाद दे दिया जाएगा।”

“नहीं -नहीं ऐसा नहीं हो सकता है आप पहले कमिटमेंट पूरी करिए उसके बाद ही बारात आपके दरवाजे पर जाएगा।”

इतना सुनते ही लड़की के पिता के आँखों से झड़- झड़ आंसु झरने लगे। कहने लगे समधी जी  ऐसे मत कहिये मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी।”




  चाचाजी को देखा नहीं गया उठकर गये और लड़की के पिता के जुड़े हुए हाथों को थाम लिया और बोले -” आप चिंता मत कीजिए बारात आपके दरवाजे पर अवश्य जायेगी। आप जाकर तैयारी कीजिये मैं भैय्या को मना लूँगा।”

चाचाजी ने  बहुत कोशिशों के बाद पिताजी को मनाया। बारात जाने का दिन भी आ गया। पूरा घर और घर वाले खुशी से झूम रहे थे। भैया शादी के जोड़े में शहजादा लग रहे थे। रंग -बिरंगी फूलों और झालरों से दूल्हे की गाड़ी को सजाया गया था। अंग्रेजी बैंड की धुन पर बाराती नाच रहे थे। बारात  लड़की वाले के दरवाजे पर पहुंचीं। पटाखों की आवाज से आसमान गूंज उठा। लड़की के पिता और भाई सभी बारातियों के गले में फूलों की माला पहनाकर स्वागत करने लगे। लड़की वालों ने चाचाजी को मिलकर कंधे पर उठा लिया। पिताजी को लगा जैसे उनलोगों ने उनका अपमान किया है। गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया।

लड़की के भाइयों ने दूल्हा बने भैया को  गाड़ी से नीचे उतार कर वरमाला के लिए ले जाने के लिए आगे बढ़े त्योही पिताजी ने टोका-” देखिए लड़का अभी गाड़ी से नीचे नहीं उतारेगा। “

अचानक से वहां उपस्थित मेहमान और घर के लोग विचलित हो गए। सब पिताजी की तरफ देखने लगे।

क्या हुआ -क्या हुआ के शब्द सबके कानों में गुंज उठे। पिताजी कड़क कर बोले-” ऐसा है कि हम आपके चालबाजी में नहीं आ सकते। पहले सारा डीमांड पूरा कीजिये तभी लड़का गाड़ी से बाहर उतरेगा समझे की नहीं ।”

सबने पिताजी को समझाने की कोशिश की पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। एक ही रट लगाए हुए थे ।

अंत में लड़की के पिता ने अपनी पगड़ी उतार कर पिताजी के पैर पर रख दिया। पिताजी ने तैश में आकर जैसे ही पगड़ी को हवा में उछाला भैया ने झट गाड़ी से उतरकर उसे थाम लिया।

पिताजी कुछ बोलते इसके पहले भैया ने कहा-” पिताजी इज्जत उछालने से नहीं देने से मिलता है।” फिर लड़की के पिता के तरफ मुड़ कर बोले -” चलिए मैं वरमाला के लिए तैयार हूँ। “




स्वरचित एंव मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर ,बिहार

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