आत्मदाह – मुकुन्द लाल 

 रात-भर अनिमेष बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, लेकिन नींद उससे नाता तोड़कर दूर चली गई थी। चतुर्दिक सन्नाटा छाया हुआ था, जिसको रह-रहकर कुत्तों की आवाजें भंग कर रही थी। जब भी आंँखें लगती उसके जेहन में उसकी पत्नी मिनाक्षी के बाॅस का चेहरा उभरने लगता और वह बेचैन हो जाता। उसके दिल में उसका प्रतिबिंब नश्तर की तरह चुभने लगता। वह बिन जल की मछली की तरह छटपटाने लगता। 

  बगल में चारपाई पर उसके दोनों बच्चे, उदित और रुचि बेखबर सोये हुए थे। उसने एक नजर दोनों के चेहरे पर डाली, उनके मासूम चेहरे को देखकर उसके दिल में उनके प्रति प्यार उमड़ने लगा। उसकी आंँखें गीली हो आई। 

  अनिमेष की पत्नी मिनाक्षी सरकारी दफ्तर में काम करती थी। अक्सर वह ड्यूटी करने के बाद घर लौटती तो अपने बाॅस की प्रशंसा किये बिना नहीं रहती थी। उसके द्वारा दिए गए गिफ्टों को आलमारी में सजाकर रखती थी। उसे श्रेष्ठ पुरुष की उपाधि देने से भी बाज नहीं आती थी। अपने पति को कोई कीमत ही नहीं देती थी। उसे हीन दृष्टि से देखती थी। होटलों, पार्टियों और पर्यटन में प्रायः वह उसके साथ रहती थी। जब लौटती तो कीमती उपहार, कभी साड़ी कभी गहने, कभी सौंदर्य प्रशाधन की वस्तुएं लेकर आती थी। चिड़ियों की तरह चहकती थी ऐसे गिफ्टों को पाकर। उसके उमंग-उत्साह और उसकी खुशियों का पारावार नहीं होता था। 




  ऐसे ही मौके पर उस दिन जब अपने बाॅस के गुणों का बखान कर रही थी तो अनिमेष मौन होकर उसकी बातों को सुनता रहा किन्तु जब जरूरत से ज्यादा बड़ाई करने लगी तब  क्षुब्ध होकर  उसने कहा कि प्रशंसा से ही पेट भर जाएगा। किचन और घर का सारा सामान बिखरा हुआ है, बच्चों को स्कूल जाना है। मुझे अपनी दुकान जानी है। खाना वगैरह बनेगा कि आदमी हवा पीकर रहेगा। 

  तब मिनाक्षी ने तल्ख आवाज में कहा, “अच्छे और सभ्य आदमी के बारे में दो शब्द बोलना भी आजकल गुनाह है।” 

  “तुम्हारा बाॅस अच्छा आदमी है तो क्या करें बोलो?… उसका तलवा सहलावें, आरती उतारें।… कान खोलकर सुन लो अपना घर-द्वार छोड़कर दूसरों का पिछलग्गू बनना, गुणगान करना तुमको शोभा नहीं देता है 

  इस तरह के कलहपूर्ण विवाद उसके घर की दिनचर्या में शामिल हो गया था। 

  मिनाक्षी और उसके बाॅस के बीच दिनों-दिन नजदीकियांँ बढ़ती ही जा रही थी। रोमांस का पारा ऊपर चढ़ता जा रहा था। 

  अनिमेष राशन की छोटी सी दुकान चलाता था। उसको मिनाक्षी घास-पात समझती थी। बहुत भटकने के बाद भी जब जाॅब नहीं मिला तो उसने दुकानदारी शुरू कर दी थी क्योंकि मिनाक्षी से उसकी शादी हो चुकी थी। उस समय तक एक बच्चे भी हो चुके थे। 

  उस दिन वह दुकान का सामान थोक-विक्रेताओं के यहाँ से लाने के लिए किराना-मंडी गया हुआ था। जब वह ई-रिक्शा से लौट रहा था तो उसने देखा कि मिनाक्षी और उसका बाॅस एक साथ एक रेस्तरां से निकले, मिनाक्षी के गले में सोने का जड़ाऊ हार चमक रहा था। उसने तो देख लिया लेकिन वे दोनों तुरंत कार में सवार होकर आगे बढ़ गये। इसलिए वे लोग उसको नहीं देख सके। 




  शाम में ड्यूटी से उसके लौटने  के बाद इस संबंध में चर्चा की तो उसने छूटते हुए कहा,  उस  शरीफ आदमी पर आप खामखा उंगली  उठाते हैं, क्या एक दफ्तर में काम करने वाले लोग कभी एक साथ दोस्त होने के नाते घूम नहीं सकते हैं?… चाय-पानी नहीं पी सकते हैं?… उनके बारे में गलत बातें बोलना आपके दिमाग के पिछड़ेपन की निशानी है। “

  उसके जवाब से उसका मुंँह बन्द हो गया था। 

  इस तरह की बातें अक्सर होने लगी और घर में रोज दोनों के बीच झगड़े होने लगे। इस लड़ाई-झगड़े को देखकर बच्चे फूट-फूटकर रोने लगते। अनिमेष को बच्चों से बहुत प्यार था। इसलिए वह खुद चुप हो जाता था लङाई शान्त करने के लिए। वह मांँ के पद की औपचारिकता मात्र निभा रही थी। किन्तु पिता और बच्चों के स्नेहिल संबंध के डोर बहुत मजबूत थे। 

  एक दिन उसका लड़का उदित बीमार पड़ गया। उसका ज्वर बहुत तेजी से बढ़ने लगा। इस दौरान वह ऊटपटांग बातें बोलने लगा। उसका मोबाइल भी कई दिनों से खराब था। इस लिए वह इसकी खबर और अच्छे डाॅक्टर से दिखाने की नीयत से वह उसके दफ्तर में पहुंँच गया। 

  दफ्तर में अनिमेष को देखकर वहांँ के कर्मचारी व्यंगात्मक लहजे में मुस्कुराने लगे। 

  एक-दो कर्मचारियों ने उपहास उड़ाते हुए पूछा, “कधर आना हुआ है साहेब!” 




  “एक आवश्यक काम से आना पड़ा भाई।” 

  “ओह!”… उसने चुचकारते हुए कहा, “ऐसी क्या बात है?… आपको तकलीफ करने की क्या जरूरत थी, फोन कर देते मैम को।” 

  “मोबाइल खराब हो गया है बन्धु।” 

  “अच्छा!… तो मिनाक्षी मैम से मिलने आये हैं” मजाकिया लहजे में इस प्रकार बोला कि वह खिसिया गया। 

  उसने तल्ख आवाज में कहा, “तुम लोग सवाल पर सवाल दागे जा रहे हो बन्दूक से निकली गोली की तरह… यह भी बताओगे कि मिनाक्षी कहांँ है? “

  कर्मचारियों का दल आपस में खुसुर-पुसुर करने लगा। उनमें से एक ने कहा,” ‘गोद में बालक नगर में ढिंढोरा’ इसी को कहा गया है।… अरे भैया!… मिनाक्षी मैम, साहब के चैम्बर में दो घंटों से अति आवश्यक कार्य निपटाने में लगी हुई है। “

 ” बुलवा दीजिए, इमरजेंसी है”अनिमेष ने कहा। “भाई बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा?… उनको बुलवाकर कौन साहब का कोपभाजन बनेगा? “

 ” अच्छा ठहरिए!… आपके लिए कुछ खतरा मोल लेना ही पड़ेगा।… आखिर आप भी तो मिनाक्षी मैम के हसबेंड हैं ” एक क्लर्क ने कहा।

  फिर वह बाॅस के चैम्बर की तरफ चला। उसके पीछे-पीछे अनिमेष भी चला। 

  वहांँ पर पहुंँचते ही उसने दरवाजे पर बहुत ही हल्की दस्तक दी। 

  अंदर से धीमी आवाजें आने लगी,” छोड़िये!… छोड़िये!… कोई आया है। “




  ये आवाजें अनिमेष के कानों में भी गई। 

  दो चार मिनटों के बाद दरवाजा खुल गया। एक फाइल लेकर वह निकली। उसके बाल कुछ बेतरतीब हो गये थे। कपड़ों पर पड़ी सिलवटें कुछ दूसरी ही कहानी कह रही थी। उसने कलर्क को दहकती निगाहों से देखा लेकिन उसके पीछे खड़े अनिमेष पर जैसे ही उसकी नजर पड़ी, उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया। उसके चेहरे पर शर्मिंदगी की कालिमा छा गई वह उससे नजरें नहीं मिला पा रही थी। फिर भी औपचारिकता निभाते हुए उसने कहा, 

“क्या बात है?… मैंने आपको मना कर दिया था कि आपको दफ्तर नहीं आना है, यहांँ अति आवश्यक कार्यक्रम चलते रहते हैं , मोबाइल से भी तो बातें कर सकते थे…” 

  “मोबाइल खराब हो गया है।… अभी बहस करने का समय नहीं है, उदित की तबीयत बहुत खराब हो गई है…” 

  “तो हौस्पीटल भी तो लेकर जा सकते थे जो यहाँ टपक पड़े… चलिये! “तल्खी के साथ उसने कहा। 

  फिर वह अनिमेष के साथ चल पड़ी घर की तरफ, इलाज करवाने की नीयत से। 

  इस घटना के बाद अनिमेष को समझ में आ गया कि उसकी पत्नी का अपने बाॅस के साथ नाजायज संबंध है। पहले उसे शंका थी परन्तु उस दिन उसे पक्का विश्वास हो गया। 

  वह कभी-कभी सोचता कि वह अपनी पत्नी का त्याग कर देगा, सङे हुए पान को कतरकर अलग कर देना ही ठीक होगा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। वह दोनों बच्चों को दिल की गहराइयों से प्यार करता था। 

  पति-पत्नी में संवादहीनता कायम हो गई थी। दफ्तर में तो उसके अवैध संबंध से सभी लोग पहले से ही परिचित थे। एक-दो बार उसने इज्जत और मान-मर्यादा का वास्ता देकर गंभीरतापूर्वक समझाने का प्रयास किया था तो मिनाक्षी ने भड़कते हुए कहा था कि तुम तराजू से सामान  तौलकर बेचो, उससे आगे सोचने की कोशिश मत करो। 

  इस भयानक, अपमानजनक और आपत्तिजनक परिस्थितियों में उसके दिल के अन्दर विध्वंसकारी सोच पनपने लगी। उसने सोचा कि अगर वह जिंदा रहेगा तो जिन्दगी-भर उसके अवैध संबंध की आग में जलता रहेगा। इस नाजायज रिलेशन के कारण वह आजीवन व्यथाओं व वेदनाओं से त्रस्त रहेगा। रोज-रोज मरने से अच्छा है एक ही बार अपने को मिटा देना। लोगों के बीच मेरी इज्जत ही क्या रह गई है? 




                             उस रात अनिमेष बेचैन था। अपनी जिंदगी से उसे नफरत हो गई थी। मिनाक्षी से उसका कुछ लेना-देना नहीं रह गया था। नाम-मात्र के लिए पति-पत्नी रह गए थे। फिर वह घर में भी नहीं थी, वह दफ्तर के काम से अपने बाॅस के साथ हेड-ऑफिस गई हुई थी, जो दूसरे शहर में था। 

   उसने अपने सोये हुए बच्चों को प्यार से उसके बालों को सहलाया, उनको चूमा, फिर अपने मन में स्वतः कहा, “हे ईश्वर!… मुझे माफ कर देना … मेरे सामने आत्मदाह करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है।” 

  उसने हाथ जोड़कर भगवान का स्मरण किया। फिर किचन से माचिस ढूंढ़कर ले आया।

  वह कमरे से बाहर  आंगन में आ गया। उसने माचिस से एक कांटी निकाल कर उसे जलाया फिर वह पहने हुए अपने कपड़े में लगाया किन्तु वह बुझ गई, दूसरी काटी भी उसी प्रकार बुझ गई किन्तु तीसरी कांटी सावधानीपूर्वक जलाकर वह अपने पहने हुए कपड़े के पास ले गया तो कपड़ों ने आग पकड़ ली। उसके शरीर के कपड़े जलने लगे। उसकी देह आग की लपटों से घर गई । 

  पड़ोस के लोग गहरी नींद में सोये हुए थे। 

   सुबह धुंँआ देखकर लोग घर के अंदर गए। उसका पूरा शरीर जल गया था। फिर भी पास-पड़ोस के लोग उसे हौस्पीटल ले गये, जहाँ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 

  दोनों बच्चों के हृदयविदारक रुदन-क्रंदन और चीत्कार से वहाँ का वातावरण कंपित हो रहा था। 

    # 5वां जन्मोत्सव 

  # बेटियां जन्मोत्सव कहानी प्रतियोगिता 

        चतुर्थ कहानी 

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                  मुकुन्द लाल 

                  हजारीबाग(झारखंड)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!