सर्वगुण संपन्न – शुभ्रा बैनर्जी 

शरीर पर लगे चोट के निशान दिख भी जातें हैं और मरहम-पट्टी करने पर ठीक भी हो सकते हैं,पर जब मन घायल होता है, तब उसके ना तो निशान दिखाई देतें हैं और ना ही कोई मरहम लग पाता है। दर्द की टीस मौन रोती रहती है,आजन्म रिसती रहती है।

सर्वगुण संपन्न थी सुदेशना।दिखने में सुंदर, व्यवहार कुशल,पढ़ाई में अव्वल,घर के काम में निपुण।जो भी एक बार मिलता, तारीफ ही करता था उसकी।पिता की असामयिक मौत ने कच्ची उम्र में ही सुदेशना को घर का मुखिया बना दिया था।पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी सुदेशना स्कूल में नौकरी करके,ट्यूशन पढ़ाकर खुद कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी।यौवन का बसंत द्वार में ही आकर रुक गया था। समझदारी और जिम्मेदारी ने सुदेशना को परिपक्व  तो बना दिया था,पर उसके अंदर की खुशमिजाज गुड़िया कभी मर ही ना पाई थी।साफ दिल की होने के कारण वह सभी पर विश्वास कर लेती थी।इस भरोसे ने कभी उसका भरोसा टूटने नहीं दिया था। सम्मान के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी वह।बसंत पंचमी की पूजा हो या नवदुर्गा का पंडाल, सुदेशना को देखकर अच्छे घरों की मांएं रिश्ते की बात करतीं थीं।सुदेशना की मां कम उम्र है कहकर टाल ही देतीं थीं प्रत्येक प्रस्ताव।सजातीय सुशील युवकों ने सामने से आकर मांगा था उसका हांथ कई बार,पर सुदेशना के लिए अपने भविष्य के बारे में अभी सोचना मुश्किल था।अपने रूप के माधुर्य को सख़्त मिज़ाज के आवरण में ढांककर सुदेशना परिवार चला रही थी।बिना पिता के बेटियों का परिवार वैसे भी बिना छत के मकान की तरह होता है,उस पर से सुंदरता अपने आप में एक अभिशाप।सुदेशना अपने सम्मान के प्रति सदा ही सजग रही और ईश्वर ने भी हर मुश्किल में साथ दिया था उसका।भाई -बहनों को अनुशासन में रखने के लिए सुदेशना ने भी स्वयं पर अंकुश लगाकर रखा था।सुंदरता का अनुचित प्रदर्शन कभी नहीं किया उसने,जिसके कारण समाज में उसकी इज्जत थी।मंझली बहन कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी थी,अपने छोटे-छोटे शौक को मारना उसे अच्छा नहीं लगता था,पर दीदी के डर से प्रत्यक्ष कभी कहती नहीं थी।




सुदेशना ने पांच साल स्कूल में नौकरी करते हुए ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया ,वो भी अच्छे नंबरों से। तेईसवें साल में कदम रखते ही बुआ जो कि विशेष स्नेह करती थीं उससे,रिश्ता लेकर आ गईं।लड़के की सरकारी नौकरी थी,घरवालों की तरफ से दहेज की कोई मांग नहीं थी।भतीजी परिवार के बोझ में दबकर कहीं आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ना ले,यही सोचकर बुआ जी ने बात पक्की कर दी।सुदेशना को अपने से कम पढ़े लिखे और साधारण से दिखने वाले लड़के को मना करने का कोई आधार न मिला।होने वाले पति से पहली मुलाकात पर ही उसने साफ़ कर दिया था कि उसके भाई-बहनों की जिम्मेदारी के कारण नौकरी करेगी वह।पति को कोई परेशानी नहीं थी,यहां तक कि सास ने भी नौकरी करने की स्वीकृति आसानी से दे दी,जो सामान्यतः इस खानदान में कभी होता नहीं था।सास के इस उदारवादी सहयोग के लिए जीवन भर के लिए उनकी ऋणी है गई थी सुदेशना।एक प्रतिष्ठित विद्यालय में नौकरी मिल गई उसे,साथ ही साथ ट्यूशन की भी व्यवस्था हो गई थी।सास घर के कामों में हमेशा हांथ बंटाती थी।बेटे के जन्म के बाद से दादी ने ही पाला और संभाला था।दो साल के बाद जब फिर से एक बेटी की मां बनी,तब घर पर एक मेड की जरूरत महसूस होने लगी सुदेशना को सासू मां का हांथ बंटाने।दो बच्चों को संभालना इतना आसान भी नहीं होता।बेटी बचपन से ही बड़ी मौसी की लाड़ली थी,तो उसे ही बुलवा लिया था सुदेशना ने।महीनों वह रही साथ में,बेटी की पूरी जिम्मेदारी उठा लेती थी वह।बचपन से छोटे-छोटे शौक को पूरा ना कर पाने का मलाल था उसे।यहां रहकर वह भी खुश ही थी।रसोई का सारा भार उसी पर दे रखा था सुदेशना ने। धीरे-धीरे सुदेशना को अपनी ज़िंदगी,नौकरी,बच्चे उस के बिना अधूरे लगने लगे।अपने जीजा की भी लाड़ली थी,उसकी सारी बात मानते थे पति।शायद उसके द्वारा किए गए अहसानों के बोझ तले दबे हुएं हैं।

बहन की अनाधिकृत आकांक्षाओं को देख पा रहीं थीं सासू मां। बात-बात पर सुदेशना से अपनी रसोई और पति को किसी और के सहारे देना उन्हें उचित नहीं लगता था।दिन बीतने के साथ-साथ सुदेशना के पति में काफी बदलाव आने लगा ।बहन की जैसे हर बात मानते । धीरे-धीरे यह समस्या बढ़ती ही जा रही थी।सुदेशना को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर नहीं चूकते थे वो।हर नए व्यंजन की अतिशयोक्तिपूर्ण तारीफ़।सास को ये सभी बातें खटकने लगीं थीं।बहाने से उदाहरणों के द्वारा उन्होने‌ पति को वश में करने की ढेरों कहानियां सुना दी। विश्वास से लबरेज़ सुदेशना का मन कभी गंवारा नहीं करता पति और बहन के खिलाफ कुछ ग़लत सोचने का। परिस्थितियां दिन प्रतिदिन गंभीर होतीं जा रही थीं।सास ने कभी खुलकर नहीं कहा उससे,पर अपने बेटे से साली की निकटता उनसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी।बस यही कहती थी सुदेशना से कि तादाद से ज्यादा किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।खासकर मर्दों पर।




कई महीनों के बाद दशहरे की छुट्टियों में बहन और बच्चों को लेकर मायके गई सुदेशना।किसी पार्टी में जाने के लिए तैयार मंझली बहन की खाली कलाई देखकर ,अपनी टाइटन की रिस्ट वॉच देकर बोली ,”इसे तू रख।मैं मंगवा लूंगी ,जीजाजी से”।तभी सबसे छोटी बहन ने रहस्योद्घाटन किया कि जीजाजी हूबहू ऐसी ही घड़ी दे चुकें हैं ।सुनकर मां और बहन की मिलीभगत समझ रही थी सुदेशना।बहन की अनुपस्थिति में आलमारी जमाने पर पतिदेव के द्वारा दिए गए मंहगे उपहार उसे मुंह चिढ़ा रहे थे।मां से जब इस विषय पर बात की तो उन्होंने उल्टा उसे ही छोटी सोच का बता दिया।

ससुराल लौटकर जब सास से इस बारे में बात की तो उन्होंने खुलकर बहुत कुछ ऐसा कहा जिसकी कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी वह दोनों से।अपने गुणों का प्रदर्शन अच्छी तरह किया था बहन ने।सास काफी भला बुरा बोल रहीं थीं बहन को,तब सुदेशना ने एक ही बात कही “तुम्हारे बेटे ने क्या ठीक किया मां?मैंने ईमानदारी से संजोकर रखा हुआ प्रेम सौंपा था उन्हें,और उन्हें मेरी बहन ज्यादा अच्छी लगने लगी कैसे?”सासू मां रोते हुए बोली”दोष दोनों का बराबर है।तुम्हारे भरोसे के साथ खेला है इन दोनों ने।ईश्वर इन।हैं कभी माफ नहीं करेगा।”

तुम जो भी फैसला लो,अपने साथ ही रखना मुझे।सुदेशना ने पति से कोई सफाई नहीं मांगी,और पति भी निर्विकार ही रहे।




इन सब के पीछे दो मासूम हैरान हो रहे थे।बेटी के जी में थी,पूछने लगी”मां हम लोग कहीं और चले जाएंगे क्या?पापा नहीं रहेंगे हमारे साथ?”सुदेशना के अवचेतन मन में मानो किसी ने हथौड़े से मार दिया है।इन बच्चों का क्या दोष है?पति एक समर्पित पिता हैं।उनसे बच्चों को दूर करना मतलब उनकी मृत्यु।वह यह पाप कैसे कर सकती है।सास  और ननदें तो उसके साथ ही थीं।अदालत में घसीटने की सलाह भी परिवार के लोग थे रहे थे।सुदेशना अपने स्त्रीत्व पर लगी चोट तो सह सकती है पर बच्चों के सुरक्षित भविष्य के साथ कैसे समझौता कर लेती।किसके भरोसे जाएगी बच्चों को लेकर मायके?और कहीं और अकेले रहना सुरक्षित नहीं होगा। उसने तो कोई अपराध नहीं किया ,फिर सज़ा उसे और बच्चों को क्यों मिले?

सुबह पता नहीं कहां से इतनी हिम्मत आ गई कि पति से आमने -सामने बैठकर पूछ ही लिया”आपके पास दो रास्ते हैं।या तो अपनी ग़लती स्वीकार करके भविष्य में ना दोहराने की शपथ लीजिए बेटी के नाम की,या खुद जाकर बहन के साथ मेरे मायके में ही रहिए।मैं यहीं रहूंगी अपने “घर “में।आपके ऑफिस में मैनेजर को मैंने खबर कर दिया है शाम को आने के लिए।आप त्यागपत्र दे सकतें हैं या अपनी जगह मुझे काम दिलवाइये।फिर आप स्वतंत्र हैं।मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिए।आपके मां-बाप की देखभाल में कर लूंगी।”सुदेशना के इस गंभीर निर्णय की अपेक्षा नहीं की थी पतिदेव ने।एकदम से सकते में आ गए। सास-ससुर भी सामने ही दृढ़ होकर बैठे थे।सुदेशना की आंख से एक बूंद भी आंसू नहीं निकला।पत्थर सा हो गया चेहरा देखकर पति रोने लगे।अपनी ग़लती पर पछताने लगे यह बोलकर कि वह क्षणिक आकर्षण था,इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं हुआ दोनों के बीच।सुदेशना ने तब पहली बार अपनी सुंदरता की पैरवी करते हुए कहा,”जिसके पास मेरे जैसी सर्वगुण संपन्न पत्नी हो और फिर भी उसका आकर्षण किसी और के प्रति हो सकता है तो,आज के बाद फिर कभी पति का अधिकार नहीं जताएंगे आप।”

सुदेशना के इस नए रूप को देखकर सभी ताज्जुब थे।आज सुदेशना को अपने सर्वगुण संपन्न होने पर गर्व हो रहा था पहली बार।एक परिवार टूटने से बच गया।बच्चों को अपने पिता से अलग नहीं होना पड़ा।अदालत में दो परिवारों पर कीचड़ भी उछलने से बच गया।बहन की शादी हो गई थी।सुदेशना ने पति को माफ करके अनोखी सजा दी थी।

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल मेरी हम सफर

शुभ्रा बैनर्जी

(v)

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