रिश्तों में बंधा स्वार्थ या स्वार्थ में बंधा रिश्ता – शुभ्रा बैनर्जी

आज संध्या को मां की बात रह -रह कर याद आ रही थी।कैसे वह भी अनुज के आगे-पीछे दौड़ती रहती है,उसके काम पर जाने से पहले और काम से आने के बाद।बचपन में मां का पापा के आगे-पीछे घूमना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था।कभी चैन से बैठे नहीं देखा उन्हें।टोकने पर हंसकर हमेशा यही कहती”संधू,पति … Read more

भंडारे का आधुनिकीकरण – शुभ्रा बैनर्जी

आज मोहल्ले की महिलाएं सुबह से ही किसी गंभीर विषय पर यंत्रणा में लगी हुईं थीं।थोड़ा पास जाने पर पता चला कि,कल शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में हमारे ही मोहल्ले के मनीष जी ने भंडारे का आयोजन किया है।महिलाओं में उत्साह अस्वाभाविक नहीं था।एक दिन दोपहर के खाना बनाने से मुक्ति जो मिलेगी।शीतल जी … Read more

माफी तो मुझे मांगनी चाहिए बहू – मीनाक्षी सिंह

सुन रही हैँ हेमा ,देख मीनू ने फिर पेशाब कर दिया ! साफ कर दें आकर ! पूरे नौ महीने की गर्भवती हेमा किचेन में बर्तन धोते हुए छोड़ ,हांफ़ती हुई हाथ में पोंछा लिए आयी ! डॉक्टर ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि अभी शरीर कमज़ोर हैँ ,जल्दी दूसरा बच्चा मत करना ! … Read more

पुत्र ऋण – आरती झा आद्या

फिर से उस घर में शहनाइयां गूंज रही थी और पांच साल का सन्नी उस गहमागहमी को टुकुर टुकुर देख रहा था। उसे तो बस इतना ही पता था कि उसकी मां जो उसे एक साल पहले छोड़कर भगवान के पास चली गई थी, वो दूसरा रूप लेकर फिर से उसके पास आ रही है … Read more

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष  – शुभ्रा बैनर्जी

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष अपने भाई के श्राद्ध में जैसे ही दोनों विवाहित बहनों ने सुधा के हांथों कुछ रुपए रखे,सुधा को लगा मानो उसके पति के मुंह पर थप्पड़ मार दिया है उन्होंने।बच्चों ने भी पहले ही बोल कर रखा था कि किसी से पैसों की मदद नहीं लेना मां।सुधा आस पास के … Read more

अब टिकेट कैंसिल नहीं कराऊंगा – मीनाक्षी सिंह

बिन्दू मैने टिकेट करा ली हैँ ,अब कोई भी काम आ जायें ,मैं जाकर रहूँगा ,अबकी बार कैंसिल नहीं कराऊंगा ! 65 वर्षीय राकेशजी पूरे जोश में बोले ! तुम सुन रही हो कि नहीं बिन्दू ,छोड़ों ये कपड़े तह करना ! हाँ हाँ ,सुन रही हूँ ! बहरी नहीं हूँ ! कहाँ की टिकेट … Read more

मैं हूँ ना –  विभा गुप्ता

 ” भईया, रुनझुन की शादी कैसे होगी?लड़के वालों की डिमांड तो कुछ भी नहीं है, फिर भी खाली हाथ बेटी को कैसे विदा कर दूॅं।जेठ जी ने तो पल्ला झाड़ लिया है।रुनझुन के पापा रहते तो मुझे कोई चिंता ही नहीं रहती लेकिन….।” कहते हुए देवकी रोने लगी तो नारायण बाबू बहन के कंधों पर … Read more

कोरा कागज़ – अमित किशोर

इंदु ने जब पहली बार अहान को अपनी गोद में लिया तो ऐसा लगा जैसे प्रसव की सारी पीड़ा एक पल में ही छू मंतर हो गई हो। पहली संतान के रूप में बेटी पाने की हसरत तो थी पर बेटे के प्रथम स्पर्श ने इंदु को मातृत्व की वो मिश्री दे दी जिसके मिठास … Read more

बहू का प्रमाण पत्र – शुभ्रा बैनर्जी

सौम्या की बेटी की शादी की बातचीत चल रही थी।बेटी पढ़ी-लिखी और समझदार थी ।मां से उसका भावनात्मक लगाव कुछ ज्यादा ही था।बचपन से उसने सौम्या को संघर्ष करते ही देखा था।बड़ी होने पर अक्सर बोलती “मैं शादी नहीं करूंगी कभी।तुम्हारे जैसी अच्छी बहू ना मैं बनना चाहती हूं और ना ही बन पाऊंगी।सारा जीवन … Read more

बच्चों ने दी संस्कारों की सीख – शुभ्रा बैनर्जी

आज संगीता जी के यहां किटी पार्टी का आयोजन था।वह ख़ुद बहुत अच्छा खाना पका लेतीं थीं। मेहमानों को खुश करने के चक्कर में,आज उन्हें अपने हांथ के खाने के स्वाद में त्रुटि दिखने लगी।सामने मेज पर विभिन्न पकवान सलीके से सजाकर रखे हुए थे। स्टार्टर,मेन कोर्स और डेज़र्ट्स पंक्ति बद्ध रखें गए थे,जो मेजबान … Read more

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