अब टिकेट कैंसिल नहीं कराऊंगा – मीनाक्षी सिंह

बिन्दू मैने टिकेट करा ली हैँ ,अब कोई भी काम आ जायें ,मैं जाकर रहूँगा ,अबकी बार कैंसिल नहीं कराऊंगा ! 65 वर्षीय राकेशजी पूरे जोश में बोले ! तुम सुन रही हो कि नहीं बिन्दू ,छोड़ों ये कपड़े तह करना !

हाँ हाँ ,सुन रही हूँ ! बहरी नहीं हूँ ! कहाँ की टिकेट करा आयें  बुढ़ऊँ ! इस उम्र में घूमने जाओगे अकेले तो नानी याद आ जायेगी ! जब उम्र थी घूमने कि तब  तो गए नहीं ! कितने अरमान थे  मेरे मैं भी अपनी बाकी सहेलियों की तरह अपने पति की बाहों में वो फिल्मों वाला काला चस्मा लगाकर शिमला ,नैनिताल में फोटो खिंचाऊँ ! पर तुम कभी ये हसरत पूरी ना कर पायें ! 62 वर्षीय बिन्दू जी अपने बुढऊँ पर गुस्सा दिखाते हुए बोली !

मैं अकेले थोड़े नहीं जा रहा ,अपनी जोहर को लेकर जा रहा हूँ ! वो भी गोवा ! क्या करता बिन्दू ,तू तो सब जानती हैँ ! पांच बहनों में एकलौता बेटा था ! किसी तरह पोस्ट ऑफिस में छोटी सी नौकरी मिल गयी ! तंख्वाह थी 60 रूपये ! क्या क्या करता ! पिता जी को भी लकवा  मार गया थोड़ा बहुत जो पिताजी दीवानी से कमा लाते वो भी बंद हो गया ! सारी ज़िम्मेदारी मेरे कांधो पर आ गयी ,पांच बहनों की शादी ,पिताजी का ईलाज ! माँ भी पिताजी की सेवा करते करते जल्दी हो जीवन से हार गयी ! इस  लोक से विदा हो गयी !

तुमसे विवाह हुआ तो पता चला मेरी बिन्दू शहर की पढ़ी लिखी लड़की हैँ ! तुम्हारे बहुत अरमान थे नौकरी करने के ! आत्मनिर्भर बनने के पर मेरी छोटी छोटी बहनें तुम्हारे आगे पीछे बच्चों की तरह घूमती ! तुममें अपनी माँ का अक्श देखती ! तुमने भी उनकी परवरिश की खातिर अपना सपना अधूरा छोड़ दिया ! तुम बहुत ही खुले विचारों की ,घूमने की शौकिन थी ,पर मैं कभी तुम्हारे अरमान पूरे नहीं कर पाया ! इस बात का मुझे बहुत अफसोस रहा ! तुमने अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाया ! मेरी सारी बहनें अपनी विदाई बेला पर तुमसे लिपटकर ऐसे फफ़क फफ़ककर रोयी कि पूरा गांव देखता रहा कि कोई ननद भाभी को इतना प्यार कर सकती हैँ ! सच में मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जीवनसंगिनी  के रुप में मिली जिसने इतनी सम्पन्न घराने से होने के बाद भी मेरी हर तंगी में साथ दिया ! कहते कहते राकेशजी की आँखों से आंसू लुढ़क गए !

बिन्दूजी – तुम भी कौन सी बातें लेकर बैठ गए ! पति पत्नी एक गाड़ी के दो पहिये होते हैँ ! एक दूसरे का साथ ही उन्हे मजबूत बनाता हैँ ! जानते हो जी मुझे कभी माँ बनने की कमी महसूस ही नहीं हुई ! मुझे लगता था ननदों के रुप में पांच बेटियां तो हैँ मेरे पास ! पर तुम चाहते थे समाज मुझे बाँझ का नाम ना दे दे इसलिये ब्याह के दस साल बाद तुम्हारे कहने पर विभू को जन्म दिया ! सच में विभू के आने से ऐसा लगा अब तुम्हारा दायां हाथ आ गया हैँ ! बहुत ही जल्दी छोटी सी उम्र में ज़िम्मेदारियों का बोझ पड़ने से वो भी बहुत समझदार हो गया था ! याद हैँ कैसे 8 साल का था ! तुम बाहर गए थे ,मैं बहुत बिमार थी ! रमा दीदी (ननद ) का फ़ोन आया – रोती हुई बोली ,मुझे बहुत मारता हैँ ये आदमी भाभी ,मैं मर जाऊंगी ! कैसे गुस्से में आकर छोटा सा विभू बारिश में सरकारी बस में बैठ अपनी बुआ को घर ले आया और एलान कर दिया कि अब उसकी बुआ उस घर में नहीं जायेंगी !




राकेशजी – सही कह रही हो बिन्दू ,हमारा विभू सच में बहुत समझदार हैँ ! अब मुझ में सामर्थ्य नहीं रही तो खुद जाकर बुआ और बच्चों को ले आता हैँ !

बिन्दू – सही बोले जी,अच्छा ये बातें छोड़ों ,मेरी बात मानों तो अबकी बार भी टिकेट कैंसिल करवा दो ! तुम्हे तो पता ही हैँ विभू के कोलेज के 25 हजार रूपये ज़मा करने हैँ ! तुम भूल गए क्या??

राकेशजी – हाँ ये तो तुम सही बोली ,बुढ़ापे में य़ाददाश्त भी कमज़ोर हो गयी हैँ मेरी ! कैफे वाले को फ़ोन कर देता हूँ कैंसिल कर देता हूँ टिकेट ! विभू को दे दूँगा आज ही पैसे ! ये काम ज्यादा ज़रूरी हैँ ! घूम तो कभी और लेंगे !

फ़ोन लगा ही रहे थे राकेशजी कि तभी विभू ने आकर उनका फ़ोन ले लिया ! तू कब आया कोलेज से !

विभू – बहुत देर का पापा ,अबकी कोई टिकेट कैंसिल नहीं होगी ! पूरी उम्र तो गुजर गयी ज़िम्मेदारियों में आप लोगों की ! अब भी नहीं घुमेंगे तो कब घुमेंगे ! माँ जाने की तैयारी कीजिये ,बैग लगाईये ! ये लिजिये ,फिल्मों वाला काला चस्मा आप दोनों के लिए !




राकेशजी – तेरी फीस ज्यादा ज़रूरी हैँ विभू ,वो तो ऐसे ही करा दी थी टिकेट ,वैसे ही बुढ़ापे में क्या ही अच्छे लगेंगे हम घुमते !

विभू – मेरी फीस ज़मा हो गयी हैँ ,मैं शाम को दो घंटे कोचिंग पढ़ाता हूँ ,अब आपको मेरी पढ़ाई की चिंता करने की ज़रूरत नहीं ! जाईये गोवा घुमाकर लाईये माँ को !

बिन्दूजी – तू तो बहुत बड़ा हो गया है रे ! बड़ी समझदारी की बातें करने लगा हैँ ! बिन्दूजी ने विभू को गले लगा लिया !

राकेशजी ,देखना बिन्दू मैं कैसा लग रहा हूँ चस्में में !

पापा जम रहे हो ,गोवा में माँ ध्यान रखना पापा का ! कोई गोरी मैम ना उड़ा ले जायें इन्हे !

रुक जा बताता हूँ तुझे ,बाप की टांग खींचता हैँ !

सब लोग ठहाके मारकर हंसने लगे  !

राकेशजी और बिन्दू जी गोवा में अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जीवन का आनन्द ले रहे हैं !

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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