बाॅयकाॅट” – ऋतु अग्रवाल

 दीवाली का त्यौहार आने में कुछ ही दिन बाकी थे। आसपास के सभी घरों में सफाई अभियान छिड़ा हुआ था। सब अपने घर की सफाई के बाद निकले हुए कबाड़ को कबाड़ वाले के पास ले जाकर बेच रहे थे। शुभा भी अपने घर के सामने से निकलते हुए कबाड़ वाले को रोकते हुए बोली,” भैया, रुको! मैं भी कबाड़ ला रही हूँ, बेचने के लिए।”

         कबाड़ वाले को कबाड़ बेचते समय शुभा ने नोटिस किया कि ठेले पर अधिकांशतः चॉकलेट्स के खाली डिब्बों की पैकिंग पड़ी है। इतने सारे खाली डिब्बे देखकर शुभा सोच में पड़ गई। वह कबाड़ वाले से पूछ बैठी,” भैया, क्या बात है? चॉकलेट्स के इतने सारे खाली डब्बे!”

      “वह क्या है बहन जी, आजकल लोग मिठाई की जगह चॉकलेट्स ज्यादा खरीदते हैं। महीनों तक रख कर खा सकते हैं या फिर अदल बदल कर दूसरों को गिफ्ट कर सकते हैं इसलिए आजकल चॉकलेट ज्यादा बिकती है और यह सब वही खाली हुए डिब्बे हैं।” कबाड़ वाले भैया बोले।

       शुभा आश्चर्यचकित थी कि अगर एक कबाड़ वाले भैया के पास इतने खाली डब्कबे बिकने के लिए आते हैं तो त्योहारों पर पूरे भारत में कितने डब्बे बिकते होंगे? हमारे बच्चे मॉडर्निटी के नाम पर इतनी चॉकलेट्स खा जाते हैं और इनसे अर्जित आय ज्यादातर बड़ी कंपनियों या विदेशों में चली जाती है।

        शुभा पूरे दिन इसी सोच में डूबी रही। उसके दिमाग में पूरे दिन एक आईडिया कुलबुलाता रहा। खैर शाम हुई, वह डिनर की तैयारी कर इवनिंग वॉक के लिए निकल गई। शुभा वॉक करने अपनी तीन चार सहेलियों के साथ जाती थी। वाॅक के बाद जब सब सहेलियाँ सुस्ताने बैठे तो बातों ही बातों में दीवाली के लिए गिफ्ट्स का जिक्र छिड़ा तो शुभा ने कहा,” मैं आप सब से अपना एक विचार साझा करना चाहती हूँ।”

    नीरा ने कहा,” हाँ,हाँ,शुभा बोलो।”

        “देखो हम सभी दीवाली पर गिफ्ट्स के साथ मिठाइयाँ भी खरीदते हैं लेकिन आजकल मिठाइयों की जगह चॉकलेट्स का ट्रेंड शुरू हो गया है। ताजी मिठाइयों की जगह हमारे परिवार प्रिजर्वड चॉकलेट्स खाते हैं और कई बार उनको हम अपने ही परिचितों, मित्रों को गिफ्ट कर देते हैं जिन्हें हम छः सात महीने बाद भी खाते रहते हैं। इसके साथ ही हमारे स्थानीय दुकानदारों की जगह बड़ी और विदेशी कंपनियां मुनाफा कमाती हैं।”

         “बात तो तुम्हारी सही है पर हम क्या कर सकते हैं?” अनुभा ने सहमति जताई।

       “कर सकते हैं, सबसे पहले हम सब को यह निश्चित करना होगा कि हम सब स्थानीय हलवाई से ही मिठाई खरीदे और पैकिंग वाले पदार्थों का बाॅयकाॅट करें।” शुभा ने सुझाव दिया।

     “तुम सही कह रही हो।” शुभा की सहेलियों ने उसकी बात से सहमति जताई।

     आरती ने तभी एक व्हाट्सएप ग्रुप क्रिएट किया “मिशन बॉयकॉट” और उसने उसमें पाँचों सहेलियों के परिचितों का नंबर एड कर दिया और प्रिजर्वड फूड के विरोध में एक मैसेज तैयार कर प्रेषित कर दिया।

       सभी सहेलियां मन ही मन देशी दीवाली मनाने का संकल्प लेकर अपने अपने घरों की ओर मुड़ गई। 

 

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ 

 

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