तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -13)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा कि होटल के रूम में अपनी बचपन की दोस्त स्नेहा को देखकर शेखर नफरत से भर  जाता है लेकिन स्नेहा जब अपनी वहाँ आने की वजह बतातीं है तो वह हैरान हो जाता है।अब आगे-

“मेरे इस फैसले के पीछे मेरे अपनों की जिंदगी है।बस इतना समझ लो मेरे परिवार के अस्तित्व के लिए मुझे यह कदम उठाना पड़ा।” स्नेहा ने आँखों में उतर आए पानी को साफ कर कहा।

“आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो तुम किसी डॉक्टर के पास नहीं जाकर यहाँ इस होटल में गैर मर्द के साथ… समझो स्नेहा यह पाप है!” शेखर तड़प कर बोला।

“यह पहली बार नहीं हो रहा है कि कोई औरत किसी गैर मर्द का बीज अपनी कोख में लेकर अपनी परिवार को वारिस देगी।क्या तुम्हें महाभारत काल की कथा नहीं पता!शेखर यदि तुम इसके लिए तैयार नहीं तो मैं अब तुम्हें फोर्स नहीं करूंगी।” इतना कहकर स्नेहा ने अपने पर्स से नोटों की गड्डी निकाल कर बेड पर डाल दी और खुद खड़ी हो गई।

“यह क्या कर रही हो तुम!इसे उठाओ यहाँ से।” शेखर ने झुंझला कर कहा।

“मुझे नहीं पता कि कौन से शौक तुम्हें इस राह पर ले आए लेकिन मैं तुम्हारी दोस्त हूँ इसलिए चाहती हूँ कि इस दलदल से निकल जाओ।नौकरी नहीं है तो मैं मदद कर सकती हूँ।चलती हूँ।”

“रूको…मैं तुम्हारी मदद करूंगा… लेकिन एक शर्त है।” शेखर ने स्नेहा का हाथ पकड़कर उसे रोका।

“मंजूर है।” इतना कहकर स्नेहा बेड पर लेट गई।

“मैं अपनी आँखें बंद रखूंगी शेखर।समझ लूंगी कि यह एक बुरा ख्वाब है।”

“पहले शर्त तो सुन लो।” शेखर ने कहा।

“क्या फर्क पडेगा सुनकर! मैं जानती हूँ अब भी तुम्हारे अंदर शेखर जिंदा है।”

शेखर कुछ नहीं कह सका।वह स्नेहा के चेहरे को देखने लगा।दोनों का बचपन एक झटके में आँखों के सामने खड़ा हो गया।शेखर के हाथ कांपने लगे।स्नेहा के जिस्म को छूने भर के ख्याल से शेखर शर्मिंदगी के भंवर में डूबने लगा था।खुद पर काबू कर वह स्नेहा के करीब लेट गया।बंद कमरे में दो जिस्म अपनी मजबूरी के तार से बंधे एक हो चुके थे।शेखर के चेहरे पर मातम था और स्नेहा के चेहरे पर उम्मीद।

वक्त थमकर रूक गया।

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स्नेहा जा चुकी थी।खुद को घसीटता शेखर शहर से दूर सड़क पर चलता जा रहा था।आसमान में उमड़ते बादल बीच बीच में चमक उठते।

अंधेरे में चलते शेखर के कदम  पुल पर आकर ठिठक गए।

नीचे झांककर गहराई नापता शेखर अचानक जोर से हँस पड़ा और पुल की रेलिंग के दूसरी ओर उतर गया।तभी किसी के हाथों ने उसे जोर से खींचा।

वह हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोलता है।सामने तृप्ति खड़ी थी।

“पागलों की तरह नींद में क्यों चिल्ला रहे थे?” तृप्ति ने कहा।

शेखर अपने चारों ओर देखता है।

“ऐसे क्या देख रहे हो?” तृप्ति आँखें मलते हुए बोली।

शेखर ने घड़ी की ओर नजर उठाई तो देखा दस बज चुके थे।वह बिना कुछ कहे बाथरूम की ओर बढ़ गया।

अपनी शर्ट निकाल शॉवर के नीचे खुद को भीगोने लगा।जाने कितनी देर यूँ ही खड़ा शेखर स्नेहा के चेहरे को खुद से दूर करना चाह रहा था लेकिन चाह कर भी वह इस भंवर से निकल नहीं पा रहा था।वह अपना सिर दीवार पर पटकने लगा।तभी शीशे में अपनी बाँह पर गुझिया के नाखून के निशान देख वह रूक गया और अपनी हथेलियों से इन निशानों को सहलाने लगा।

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“खाना बना कर रख दिया है।खा लेना।मगरू खिला जायेगा तुझे।मुझे आने में देर हो सकती है।” अपने चेहरे पर पाउडर लगाती गुझिया बिस्तर पर लेटे जगदेव से बोली।

“हु…” इतना ही बोल सका जगदेव।

अधरंग से अपाहिज हुआ जगदेव अपनी सौतेली बेटी के रहमोकरम पर था।

सात साल से लगातार सेवा कर जगदेव को इस लायक बना दिया था गुझिया ने कि वह खड़ा होकर अपने दैनिक काम कर पा रहा था।

सात साल से बिस्तर पर हगता मूतता जगदेव अपने गुनाहों को याद कर बस रोता रहता।

“चल मैं चलती हूँ।खाना जरूर खा लेना।तुझे मेरे लिए जल्दी ठीक होना है।” अपने दुपट्टे को सीने पर कसती गुझिया खोली से निकल गली में चली आई।उसके कदमों में एक लय थी और कमर में लोच।काले घने बालों से घिरा गुझिया के चेहरे पर सजी आँखें जैसे काजल की डिबिया में डूब कर आई थी।अभी कुछ दूर ही चली थी कि एक बाइक उसके करीब आकर रूकी,

“कहाँ चल दी मेरी जान!” मुर्शिद बोला।

“तेरी ससुराल… चल मुए रस्ता न रोकाकर …।”

गुझिया चिढ़ते हुए बोली।

“क्यों सौ सौ रुपये के लिए सड़क पर खड़ी होती है मेरे साथ चल फाइव स्टार होटल में काम दिलवा दूंगा।”

“मुझे जरूरत नहीं।जाकर अपनी अम्मा को दिलवादे काम।” गुझिया ने मुर्शिद की ओर जलती निगाह से देखा और आगे बढ़ गई।

“देख लूंगा तुझे….आयेगी मेरे पास ही।” मुर्शिद चिल्लाकर बोला।

गुझिया ने पलटकर देखा और पीच से उसकी ओर थूक दिया।

अभी वह मोड़ तक पहुंची ही थी कि शेखर को सामने देख सकपका गई।अपनी नजरों को चुराकर वह उसके बगल से निकल गई।

शेखर उसके पीछे चलने लगा।

लगभग पाँच सौ मीटर चलने के बाद गुझिया रूक गई और शेखर की ओर पलटी,

“क्या है हीरो!मेरा पीछा क्यों कर रहा है!”

“तुम्हारा नाम क्या है?” शेखर ने बिना लागलपेट के पूछा।

“मेरे नाम से तेरेको क्या लेना देना!” गुझिया बोली।

“बस तुम्हारा नाम जानना चाहता हूँ।” शेखर बोला।

“पुलिसवाला है जो मेरा नाम पूछ रहा है।चल निकल टाइम खोटी न कर।चले आते हैं सुबह सुबह जाने कहाँ से।” इतना कहकर गुझिया ऑटो में बैठ जाती है।

शेखर उसे जाते देखता रहता है।

तभी मुर्शिद उसके नजदीक आता है और कहता है,

“क्यों साहब!पसंद आ गई क्या छोकरी… मालपानी है तो निकाल।मैं दिलवा दूंगा तुझे।”

“इसका नाम क्या है?शेखर ने मुर्शिद को घूरते हुए कहा।

शेखर की आँखों को देख मुर्शिद जाने क्यों घबरा गया और बिना कोई जवाब दिए वहां से चला गया।

अगला भाग

तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -14)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

दिव्या शर्मा

(आखिर क्या गुनाह किया था जगदेव ने?मुर्शिद कौन था यह सब जानेंगे अगले एपिसोड में।

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