तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -12)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा कि तृप्ति की चालाकियों से हार कर शेखर उसकी बात मान लेता है।इसी दौरान शेखर अपने क्लाइंट के इंतजार में शेखर की मुलाकात एक महिला से होती है जिसे देख कर उसके होश उड़ जाते हैं।अब आगे-

शेखर को अपनी आँखों पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था।उसका आश्चर्य घृणा में बदल गया।वह दो कदम आगे बढ़ा और बोला,

“औरत इस कदर गिर सकती है यकीन नहीं होता।तुम्हारे जिस्म की हवस तुम्हारे संस्कारों को भी खा गई जो एक गैर मर्द के लिए… छी।”

“तुम मुझे गलत समझ रहे हो शेखर… मेरी बात सुनो।” महिला ने कहा।

“क्या सुनाओगी स्नेहा!यही न कि तुम्हारे पति के पास दौलत बहुत है लेकिन समय नहीं।या फिर तुम्हारा पति तुम्हें खुश नहीं कर पाता!तुम ऑर्गेज्म चहाती हो जो बाजार से खरीदने चली आई!!” शेखर दाँत पीसते हुए बोला।

“तुम पहली मेरी बात सुनो शेखर… ऐसा नहीं है मैं मजबूर हूँ।” स्नेहा ने थकी हुई आवाज़ में कहा।

“मजबूर!हा…हा…हा…अच्छा मजाक है।तुम्हें लगता है मैं तुम जैसी औरतों पर यकीन करूंगा! भूल जाओ…” इतना कहकर शेखर सिगरेट निकाल कर पीने लगता है।

कमरे के सन्नाटे में धुएं के छल्ले उड़ाता शेखर छत को तांक रहा था।

शेखर की इस तरह की मौजूदगी स्नेहा के दिमाग को सुन्न कर चुकी थी।वह समझ नहीं पा रही थी कि जिस बात को छिपाने के लिए वह इस होटल में मजबूर होकर आ गई वही बात एक ऐसे शख्स के सामने आने वाली है जो कभी उसका सबसे गहरा मित्र था।

अपनी उंगलियों को मरोड़ती स्नेहा शेखर के नजदीक बैठ गई और बोली,

“सिर्फ हमारी दोस्ती के लिए एक बार मेरी बात सुन लो शेखर।”

“किसी भी रिश्ते का हवाला मुझे मत देना।बहुत लुट चुका हूँ रिश्तों  की ठेकेदारी निभाते निभाते।मुझे उम्मीद नहीं थी कि हर चेहरा मेरे सामने यूँ नंगा हो जायेगा… और तुम स्नेहा! तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी में ऐसी कौन सी कमी आ गई जो तुम अपनी परवरिश को भी थूक आई !” शेखर ने गुस्से से कहा।

“जो तुम समझ रहे हो वैसा नहीं है शेखर…. तुम मेरी बात तो सुन लो!” स्नेहा रिक्वेस्ट करते हुए बोली।

“मुझे कुछ नहीं सुनना।मेरा काम तुम्हें खुश करना है वह मैं करूंगा ।आखिर पैसा खर्च किया है तुमने।तो बताओ क्या करूँ तुम्हारे लिए?” शेखर सिगरेट को ऐश ट्रे में रगड़कर बोला।

“मुझ पर भड़कने से पहले अपनी असलियत तो देख लो शेखर!चंद रुपयों के लिए तुमने भी तो अपनी पैदाइश को गाली बना दिया है।औरतों को खुश करके पैसा कमा रहे हो और मुझे सुना रहे हो!मेरी पास इस कमरे में आने की एक वाजिब वजह है तुम्हारे पास यहाँ होने की वजह सिर्फ पैसा है याद रखो।” स्नेहा गुस्से से बोली।

शेखर उसकी बात सुनकर कुछ नहीं कह सका।स्नेहा ने उसकी ओर देखा और बोली,

“तुम्हें यहाँ देखकर दुखी हूँ मैं शेखर।लेकिन जानती हूँ मजबूरी कोई बड़ी है जो तुम इस तरह यहाँ नजर आ रहे हो।मजबूरी क्या नहीं करवा सकती।” स्नेहा ठंडी आह भरकर बोली।

“तुम्हारी क्या मजबूरी हो सकती है!करोडपति परिवार की एकलौती बहू जिसके कदमों में दुनिया का हर ऐशोआराम है।तुम्हारे पास शौक के लिए मजबूरी भी मजबूरी है।” शेखर ने कहा।

“दौलत एक मात्र खुशी नहीं होती शेखर।कुछ ऐसा भी हो सकता है जिसकी कल्पना तुम नहीं कर सकते।” स्नेहा ने कहा और अपना कदम दरवाजे की ओर बढ़ा दिया।

“ऐसी कौन सी जरूरत या मजबूरी आन पड़ी जो तुम मर्द तलाशती होटल के कमरे तक चली आई!यहाँ नहीं रूकोगी तो कहीं और जाओगी।इससे बेहतर है मुझे ही इस्तेमाल कर लो।” शेखर शब्दों को चबाते हुए बोला।

उसकी बात सुनकर स्नेहा के कदम ठिठक गए।वह वापस मुड़ी और शेखर के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।

तड़ाक की तेज आवाज़ कमरे की दीवारों से टकराकर गूंज उठी।शेखर के गाल पर स्नेहा की उंगलियों के निशान छप गए।

“मेरे लिए इतना घटिया कैसे सोच सकते हो तुम!इस कमरे में आई हूँ क्योंकि मजबूर हूँ।

कोख भरनी है मुझे अपने पति को बचाने के लिए।उनके अस्तित्व उनके सपनों को बचाने के लिए… मुझे बच्चा जनना है परिवार का वारिस जनना है…तुम्हें क्या लगता है कि मैं स्नेहा…ऐसे बाजारू आदमी के मुँह लगेगी!तुम्हें…. छी शेखर।कम से कम बचपन की दोस्ती का तो ख्याल कर लेते।”स्नेहा झुंझलाते हुए बोली।

“बच्चा!मैं कुछ समझा नहीं… तुम कहना क्या चाहती हो!” शेखर हैरान होकर बोला।

“कुछ नहीं कहना चाहती।मैं जा रही हूं।तुम अब वो शेखर नहीं जिसे मैं बता सकती थी।तुम मेरे दोस्त नहीं।”

स्नेहा अपनी आँखों में आए पानी को साफ करते हुए बोली।

“मुझे दुख इस बात का है कि आंटी जी अपने बेटे को अब भी एक इंजीनियर समझती है।उन्हें नहीं मालूम कि उनका बेटा क्या बन गया है और…तृप्ति!उसे तुम्हारी असलियत…. शेखर आखिर तुम यह सब..”

“हो सकता है मेरे लिए भी यह एक मजबूरी हो…खैर…मुझे अपने बर्ताव पर अफसोस है।मुझे समझना चाहिए था यकीन रखना चाहिए था कि तुम किसी…. पर मैं क्या करूँ स्नेहा! इतनी कालिख देख ली है कि उजाला नजर ही नहीं आता।पर तुम्हें डॉक्टर से मिलना चाहिए… यदि तुम्हारे पति में कोई कमी है तो डॉक्टर से मिलो यार….यूँ किसी का गंदा खून…यह क्यों कर रही हो तुम?”शेखर बोला।

“डॉक्टर से मिल चुकी हूँ मैं।और यह भी जानती हूँ कि मेरे पति पिता नहीं बन सकते।यह बात वह भी जानते हैं लेकिन फिर भी हम खानदान के लिए वारिस चाहते हैं… जहाँ तक खून की बात है वह परवरिश से बदला जा सकता है।” स्नेहा बोली।

“इसके लिए तुम आईवीएफ का सहारा ले सकती हो।यूँ इस तरह किसी गैर के साथ… नहीं नहीं।तुम ऐसी बेवकूफी कैसे कर सकती हो?”

शेखर स्नेहा की बात पर आश्चर्य जताते हुए बोला,

“इसके पीछे एक वजह है जो तुम्हें नहीं बता सकती।लेकिन मुझे खुशी होगी यदि मेरी संतान के जैविक पिता तुम बनोगे।” स्नेहा ने शेखर की ओर देखते हुए कहा।

“वजह जानना चाहता हूँ मैं….।”

(आखिर ऐसी कौन सी वजह थी स्नेहा की यह जानेंगे अगले भाग में।तब तक बने रहिए मेरे साथ।)

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