तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -11)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

“दूर रहो मुझसे।मुझे घिन आ रही है तुमसे।कैसी औरत हो तुम! अपने पति को दूसरी औरतें के बिस्तर पर…छी..छी।” वितृष्णा से शेखर अपने सिर को पीटने लगा।

“मर्द चार औरतों के साथ भी लेट जाए तो गंदा नहीं होता।वैसे भी तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें रोज नया टेस्ट मिल रहा है।” तृप्ति बेशर्मी से बोली और हँस पड़ी।

“मेरी जान,जब तक इन बुड्डियों के पास पैसा है खींच लो।इसमें तुम्हारा जा क्या रहा है!” तृप्ति शेखर को समझाते हुए बोली।

“मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम वही तृप्ति हो जिसे मैने पागलों की तरह प्यार किया।तुम इतना कैसे गिर सकती हो!” शेखर को अब भी तृप्ति के इस रूप.पर यकीन नहीं हो रहा था।

“तुम्हें जो समझना है समझो लेकिन तुम्हारी कीमत मैं जान गई हूँ।तुम तो बेवकूफ हो लेकिन मैं नहीं।मेरे हाथ लगे जैकपॉट को मैं छोड़ नहीं सकती।” तृप्ति बोली।

“मैं…नहीं करूँगा यह सब।तुम्हारे लिए कर रहा था तुम्हें दुख से दूर रखने के लिए नहीं करूंगा अब।” शेखर दाँत चबाते हुए बोला।

“करना तो पडेगा प्यार से या फिर…।” तृप्ति ने अदा से कहा।

“धमकी दे रही हो? मैं पुलिस को बता दूंगा.. हाँ मैं पुलिस को…।” शेखर उठते हुए बोला।

“गलती से गलती मत कर देना।तुम्हारे ऊपर रिक्की के रेप का आरोप लग जायेगा।उस रात की पूरी विडिओ रिक्की के पास है।” तृप्ति ने कहा।

“हे भगवान…हे भगवान…तुम उसके साथ …तुम कितनी गिरी हुई औरत हो…मैं नहीं डरता।जाऊंगा पुलिस के पास।” शेखर दरवाजे की ओर बढ़ गया।

“हाँ जाओ …अखबारों में खबर अच्छी बनोगे।गाँव में माँ को भी खबर तो मिल ही जायेगी।” तृप्ति ने आखिरी हथियार फेंका।

माँ का नाम सुनकर शेखर के पैर ठिठक गए।वह फफक कर रोने लगा।तृप्ति को उसका रोना अंदर से कचोट गया लेकिन दूसरे ही पल हरे नोटों की खूशबू ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया।

शेखर के दिमाग में सूइयां सी चुभने लगी वह अपने बालों को खींचना लगा।उसकी आँखों के सामने तृप्ति दुल्हन के रुप में नजर आने लगी।वह अपनी आँखें बंद कर जोर से चीखकर रोने लगा।तृप्ति ने उस पर एक नजर डाली और मोबाइल पर नंबर डायल करने लगी।

टहलते हुए शेखर के करीब बैठ गई।फोन रिसीव हो चुका था वह अपनी आवाज़ ऊंची कर बोली,

“हैलो माँ,नमस्ते।कैसा हैं आप?और पिंकी कैसी है…अच्छा…ठीक।हाँ आँ..शेखर भी ठीक है बस सिर दर्द है इनका।हाँ…हाँ देती हूँ फोन।”

तृप्ति कुटिलता से शेखर की ओर फोन बढ़ाती है और कहती है,

“माँ है फोन पर।बात कर लो उनसे।”

शेखर की आँखों में बेचारगी के डोरे बहने लगे।अपने रूंधे हुए गले को सयंत कर फोन हाथ से ले लेता है।

“हाँ माँ…कैसी है तू…मैं भी ठीक हूँ…सिर दर्द…अरे कुछ खास नहीं।बस बारिश में भीग गया था…हाँ…ठीक है।कह दूंगा…तेरी याद आ रही है माँ।” शेखर की जुबान लड़खड़ाने लगी वह फोन नीचे कर फफकने लगा।

“शेखर…अरे क्या हुआ…बोल तो…! ” फोन पर माँ की बेचैन आवाज़ सुन शेखर ने एक बार फिर खुद को कंट्रोल किया और बोला,

“बस ऐसे ही…हाँ जल्दी आऊंगा माँ…न न चिंता नहीं करना…दवा ले लूंगा…तू परेशान न हो।चल अब रखता हूँ।पिंकी को कहना कि अच्छी तरह पढ़े।”

शेखर ने फोन काट दिया।

तृप्ति के चेहरे पर शेखर की पीड़ा का कोई दुख नहीं था।वह उसे कमरे में छोड़कर बाहर निकल जाती है।शेखर अपनी हथेलियों को माथे पर रख सोचने लगा कि आखिर तृप्ति अचानक इतनी बदल कैसे गई!तृप्ति से पहली मुलाकात से लेकर अपने प्यार और शादी तक के दृश्य उसकी आँखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगे।

आँखों से बहता पानी शेखर की बेचारगी का साक्ष्य था।वह ऐसे मकड़जाल में था जिससे निकलने का फिलहाल उसके पास कोई रास्ता नहीं था।वक्त से समझौता कर शेखर इस दलदल में उतर जाता है लेकिन तृप्ति से उसने दूरी बना ली।घर आना उसकी मजबूरी थी क्योंकि दुनिया को अपना सच बताकर शेखर जलील नहीं होना चाहता था।

उस रात भी वह अपनी बुकिंग के लिए होटल ब्लू राइस के एक कमरे में मौजूद था।सिगरेट फूंकता शेखर बेड पर लेटे अपने क्लाइंट का इंतजार कर रहा था।दरवाजा खुलता है।एक औरत अपने मुँह को कवर किए आँखों पर काला चश्मा चढ़ाए कमरे में दाखिल होती है और अपने चेहरे से कपड़ा हटाकर शेखर की ओर देखती है।

औरत का चेहरा देखते ही शेखर के पैरों के तले जमीन खिसक जाती है।

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दिव्या शर्मा

(आखिर कौन थी वह औरत जिसे देख शेखर चौंक जाता है।क्या तृप्ति की सच्चाई शेखर अपनी माँ को बता पायेगा या फिर शेखर की जिंदगी में फिर कुछ तुफान आयेगा।जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ)

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