बिटियारानी – गुरविंदर टूटेजा 

 सुनीता तुम जाओ अब रीत तुम्हारा इंतजार कर रही होगी पीहू के पास मैं हूँ….!!

  सुनीता व उसका पति रंजन…गौरव व निधी के यहाँ काम करते है…सुनीता उनकी पाँच साल की बेटी पीहू को संभालती हैं व रंजन ड्राईवर हैं…वो उन्ही के यहाँ सर्वेंट क्वाटर में माँ व चार साल की बेटी रीत के साथ रहतें हैं…!!!!

  गौरव का एक आठ साल का बेटा कुश भी हैं जो हॉस्टल में रहकर पढ़ रहा हैं…!!!!

    सुनीता घर आकर रीत को गोद में उठाकर बोलती है…हमारी बिटिया क्या कर रहा थी…!!!!

  मैं तो खेल रही थी…!!इतने में दादी बोलती हैं कि…जरूरी तो नहीं कि पूरा दिन मालकिन की बेटी को ही संभालतें रहो जब तक वो नहीं बोलती तुम वहाँ से हिलती भी नहीं हो अपनी बेटी पर भी तो ध्यान दिया करो…!!!!

 माँ मैं समझती हूँ पर मैं वहाँ काम करती हूँ और पीहू बेटी मेरे बिना रहती भी नहीं हैं…!!!!

रंजन घर में घुसते हुए…क्या हो गया क्या बहस चल रही है..??

कुछ नहीं दोनो सास-बहू एक साथ बोली…सबने साथ में खाना खाया…!!!!

  सुबह से सबका वही रूटीन शुरू हो गया..सुनीता गयी तो मालकिन तैयार थी…मैं तुम्हारा ही रास्ता देख रही थी आज हमारी किटी पार्टी है तो तुम पीहू को देख लेना…वैसे मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगी…!!!!

  सुनीता रीत को भी वही ले आई और दोनों के साथ खेलने लगी…तभी उसे पीहू गरम लगी तो उसने थर्मामीटर लगाया तो एक सौ चार डिग्री बुखार था वो घबरा गई उसने फटाफट निधी को फोन लगाया तो उसने कहा कि वो जो घर पर ड्राईवर वो गाड़ी है उससे डॉ०के पास ले आए व मैं यहाँ से वही आ जाती हूँ…रंजन नही थें दूसरे ड्राईवर के साथ वो जल्दी-जल्दी चली गई…रीत को अपनी दादी के पास छोड़ दिया….!!!!




  पर नियती को कुछ और ही मंजूर था उनकी गाड़ी का जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया…तीनों ही नहीं बचें…!!!!

   ये कैसा खेल था वक्त का किसी से बेटी व किसी बेटी से माँ छिन गयी..पर यही आकर इंसान को समझौता करना पड़ता हैं…धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा पर निधी अब रीत को बहुत प्यार  देती उसे लगता था कि उसकी वजह से उस बच्ची ने अपनी माँ को खो दिया और अपनी पीहू को भी उसमें ही तलाशने लगी थी…!!!!

   वक्त बीतता गया रीत अपने पापा-दादी से ज्यादा निधी के साथ रहती उसको बिटियारानी कहती थी व उसका कमरा भी अलग था गौरव को भी उसको देखे बिना चैन नहीं आता थी…!!!!

  इतने में उनका बेटे कुश का एम.बी.ए. हो गया वो अपने पापा के बिजनेस को संभालने यही आ गया था…उसको रीत का वहाँ हर पल मंडरातें रहना नहीं पंसद था पहले भी जब छुट्टियों में आता तो उसकी नोंक-झोंक चलती रहती थी..!!!!

  अब जब आया तो उसनेे पापा-मम्मी को बोला कि उन्होंने  उसे ज्यादा सिर चढ़ा रखा हैं…पर रीत तो अपना हक समझ कर बिंदास रहती थी…!!!!

 दोनों की नोंक-झोंक कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला…जब ये बात निधी को पता चली तो नहीं ये तो मेरी बेटी हैं…ये कैसे हो सकता है…?? 

गौरव ने समझाया तो समय लगा फिर मान गयी…रीत के पापा व दादी की खुशी का ठिकाना नहीं था…जल्दी ही शादी हो गई…!!!!

   शादी के अगले दिन जब रीत आई तो निधी ने कहा….मेरी बिटियारानी कितनी प्यारी लग रही है…किसी की नजर ना लगे..!!!!

कुश बोला मम्मी आपका बेटा भी है साथ में उसे भी एक नजर देख लो और अब ये आपकी बहूरानी है..सही है ना पापा !!!!

  निधी बोली..तू कुछ भी कह इस पर से नज़रें हटती नहीं और ये तो मेरी हमेशा बिटियारानी ही रहेगी और उसने रीत को गले लगा लिया..!!!!!




#5वां_जन्मोत्सव 

#कहानी नं.-4

अप्रकाशित 

मौलिक व स्वरचित©®

गुरविंदर टूटेजा 

उज्जैन (म.प्र.)

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