बॉयोडेटा – गीतांजलि गुप्ता

शादी के एक माह बाद ही मोहित ने तलाक़ का केस डाल दिया था। उसका कहना था कि रागिनी के माता पिता ने ग़लत जानकारी दे कर अपनी कम पढ़ी लिखी लड़की की शादी उससे कर दी। रागिनी के पिता ने एक शादी कराने वाली संस्था को फीस दे कर बॉयोडेटा बनवाया था और उस संस्था ने ही शादी तय करवाई थी। उस समय रागिनी बी.ए. के प्रथम वर्ष में थी।

दोष तो मोहित के परिवार का भी था। पूरी तरह तस्सली करनी चाहिए थी। लड़की की सुंदरता के आगे मोहित को कुछ नहीं दिखा। सीधी सादी शर्मीली सी रागिनी मोहित के माता पिता को भी बहुत पसंद आई थी। बायोडेटा पर शक करने की कोई वजह नहीं थी वैसे भी शादी करते समय कौन डिग्रियां देखता है बस विश्वास के सहारे ही विवाह होता है।

जैसे ही रागिनी ने दुबारा पढ़ाई शुरू करने की बात की मोहित भड़क उठा। “तो तुमने झूठ लिखा था बॉयोडाटा में। तुम ग्रेजुएट नहीं हो।” रागिनी के पिता को बुलाया गया और कहा सुनी हुई। हालांकि बाप बेटी ने ख़ूब माफी मांगी परन्तु उसे पिता के घर वापिस भेज दिया गया।

मोहित की माँ इस तलाक़ के बिल्कुल खिलाफ थी उस ने बहुत कहना कि रागिनी को पढ़ा लिखा लो। परन्तु मोहित अपनी जिद्द पर अड़ा था रागिनी को सबक सीखना चाहता था। तलाक़ का केस डाला ही था कि कम्पनी ने डेढ़ वर्ष के लियें अमेरिका भेज दिया।

इस बीच रागिनी ने कंप्यूटर का कोर्स कर लिया और पत्राचार से बी. ए.का कोर्स दोबारा जॉइन कर लिया। ये सब वो पहले भी तो कर सकती थी। परन्तु मध्यम वर्गीय परिवार में अक्सर बेटी का विवाह करना ही पिता अपनी पहली जिम्मेदारी समझते हैं। रिटायर होने तक तीनों बेटियों की शादी का सपना था रागिनी के पिता का।

इस बीच रागिनी ने मोहित से सम्पर्क करने की बहुत कोशिश की पर कोई बात नहीं हो पाई। उधर केस चलता रहा और रागिनी का आत्मविश्वास बढ़ता गया। चोट गहरी लगी थी। सास ने भी कह दिया था कि मोहित के मामले में दखल नहीं देगी।


रागिन समाज व आस पड़ोस में चल रही सभी बातों को जहर के घूँट सा पी रही थी। दबी दबी आवाजों में रोहिनी के परिवार को दोषी बताया जा रहा था। दोनों छोटी बहनों ने रागिनी के साथ जम कर खड़े रहने का निर्णय लिया। परिवार ने अपनी सारी ग़लती प्रेम व सहयोग से सुधारने का बीड़ा जो उठाया था।

तलाक़ के फैसले का दिन आ पहुंच और मोहित भी विदेश से लौट आया था। जज के सामने मोहित ने अपना केस वापिस लेने की मांग रखी क्योंकि उसे पता चल गया था कि रागिनी पढ़ाई कर रही है और कप्यूटर की ट्रेनर का काम भी कर रही है। आपसी सलाह करने के लियें जज साहब ने थोड़ा समय दिया।

जज साहब के सामने दोनों परिवार फिर से पहुंचे। जज ने रागिनी से उस का निर्णय पूछा उसने तलाक मांगा और  मोहित की बात मानने से इनकार दिया। जज साहब ने भी कहा अच्छी तरह सोच लो तलाक से जिंदगी में बहुत कष्ट होंगे। मुआवजे की राशि तथा मासिक खर्च की रक़म तय करनी चाही जिसे लेने से रागिनी ने मना कर दिया स्वावलंबी होने के सबूत में अपॉइंटमेंट लेटर आदि का नया बॉयोडाटा जज साहब के दे दिये।

रागिनी ने निश्चय कर लिया था कि पिता से जो ग़लती हुई वो उसी ग़लती को नहीं दोहराएगी। याद है कि मोहित से व उसके परिवार से माफ़ी मांगी थी पिता ने और रागिनी ने परन्तु मोहित ने माफ़ नहीं किया। इस बार वह ख़ुद को मोहित से जोड़ कर खुद को माफ़ी नहीं दे पाएगी। अपमान का घूँट बहुत कड़वा होता है।

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