मर्म – गीतांजलि गुप्ता

किशु की बहू का दरवाजे पर स्वागत करते समय सीमा बहुत ख़ुश लग रही थी उस की आँखें इस की गवाह थीं चमक जो रहीं थीं पैंतीस वर्ष पहले वो इसी दरवाज़े पर दुल्हन बनी खड़ी थी और आज उसकी बहू खड़ी है। बहू अपने नाम के अनुरूप ही सुंदर व प्यारी थी उसके माता पिता ने सोंच समझ कर ही कोमल नाम दिया है।

घर में कोई ख़ास रौनक नहीं थी हाँ जब वो ख़ुद विदा होकर आई थी तब यही घर मेहमानों से भरा पड़ा था। पैंतीस वर्ष बाद आज माँ जी भी नहीं रहीं और ना ही घर में नाते रिश्तेदारों की रौनक। ससुर जी तो आनंद जी के जन्म के आठ साल बाद ही चल बसे थे एक ही बेटा था जिसे पालने में माँ जी ने पूरा जीवन लगा दिया।

शाम को कोमल को ड्राइंग रूम में बिछाये गए छोटे से स्टेज की कुर्सी पर बैठा दिया ताकि आस पास से आई औरतें मुँह दिखाई की रस्म कर सकें। मेहमानों के लियें चाय नाश्ते के पूरा प्रबंध किया गया था। सीमा को याद है कि उस की मुँह दिखाई की रसम में माँ जी की सहेलियों और रिश्तेदारों ने खूब आनंद लिया था। परंतु सभी ने सीमा के चेहरे के गहरे रंग पर कुछ न कुछ बोला था।

माँ जी एक बहुत बड़ी हवेली की मालकिन थीं जिसमें कई किरायदार बसा रखे थे और सबसे निचली मंजिल में दुकानें बनवाई गई थी जो आज तक किराए पर ही हैं। मां जी की गुजर बसर किराए से ख़ूब बढ़िया चलाती होगीं शुरू शुरू में सीमा ने सोंचा था। परन्तु ऐसा नहीं था। बच्चों के जन्म के बाद खर्चे बढ़ने लगे । किरायदारों को संभलना और किराया वसूलना काफी परेशानी भरा था। सीमा ने मां जी को बहुत बार परेशान होते देखा है।


शादी की पहली रात जब आनंद के कमजोर दिमाग़ के बारे में सीमा को पता चला और ये सुन कर भी हैरान हुई थी कि आनंद अधिक पढ़े लिखे नहीं हैं और ना ही कुछ काम धंधा करते हैं। जब सीमा ने माता पिता को बताया लाचार से बने सुनते रहे अब क्या करें बेटी को घर तो नहीं ले जा सकते। सीमा उनकी पहली संतान थी और उसके बाद दो बेटियां व दो बेटे और भी थे। वैसे तो पिता का काम अच्छा चलता था मंडी में अनाज का कारोबार था फिर भी इतने बच्चों की जिमेदारी निभाना उनके लियें आसान नहीं था ऊपर से सीमा का रंग थोड़ा सांवला भी तो था।

कोमल औरतों में घिरी कुछ परेशान लग रही थी और किशु उसके पास बैठा था दोनों की जोड़ी राम सीता की जोड़ी लग रही थी सीमा बलाएँ लेने लगी हालांकि कोमल व किशु ने प्रेम विवाह किया परंतु सीमा को कोई एतराज नहीं था। आनंद जी तो हर बात में पहले तो माँ जी की मर्जी से हाँ ना कर देते थे अब सीमा जैसे कहे वैसे ही मोहर लगा देते हैं। वैसे बच्चों के बहुत ध्यान रखते है आनंद जी।

एक बार रूठ कर सीमा तीन महीने पीहर चली गई थी माँ जी ख़ुद आई थी सीमा को लेने तभी बताया था कि आनंद का जन्म उनकी शादी के बारह साल बाद हुआ और तब उनकी दादी जी भी जिंदा थीं सारा दिन गोदी में लियें रहती ढेरों लाड़ करती अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देतीं शायद इसलिए आनंद कुछ कुछ बच्चा ही रह गया। उन्होंने ही बताया कि ससुर जी की दुकान नौकरों के कारण घाटे में चली गई और दुकान उठानी पड़ी। माँ जी के संघर्ष की कहानी सुन सीमा पसीज गई और वापस आ गई। जब वह घर पहुँची तो आंनद जी बहुत उदास मिले।

“अरे मम्मी यहाँ कोने के बैठी क्या कर रही हो कोमल के साथ बैठो ना उसे अच्छा लगेगा।” कुछ ना कुछ यादों की रील सीमा के मन में लगातार चल रही थी बेटी नियति ने आकर सीमा को कोल्ड ड्रिंक पिलाई। किशु और नियति ही तो सीमा की जान हैं हाँ साथ रहते रहते आनंद जी से भी मोह पड़ गया है। सीमा खुश थी सारी जिम्मेदारी पूरी हुई, नियति की शादी पिछले साल कर दी थी उसी की पसंद के लड़के से आजकल लडके लड़कियां खुद ही पसंद जो कर लेते हैं अपना जीवनसाथी अच्छा ही है साथ रहने से सही व ग़लत का अंदाजा भी हो जाता होगा वार्ना माता पिता के द्वारा चुना हुआ जीवनसाथी तो सीमा के लियें उचित साबित नहीं हुआ।


याद है जैसे तैसे आर्थिक स्थिति पर काबू रखा था सीमा ने। अपनी इसी हवेली में एक दुकान भी खोल रखी थीं लेडीज़ गारमेंट्स की। उसने कभी कभी अपने भाग्य को कोसा जरूर था पर हार नहीं मानी थी। भगवान की कृपया से दोनों बच्चे ख़ूब पढ़ लिख गए और ख़ूब अच्छे से सेटल हो गए। आज भी आनंद जी पूरा समय एक कुर्सी पर बैठे रहे वह ना तो किसी से बोलते हैं ना कुछ मन की करते हैं।

शादी में पिता के परिवार को बुलाया ही नहीं सबने बहुत समझाया पर नहीं मानी। अपनी शादी के बाद पीहर में एक बार कुछ रिश्तदारों ने आनंद जी का मज़ाक बनाया था तब से मायके जाना ही छोड़ दिया। माता पिता  साल में दो बार मिल जाते। उसने अपनी दुनिया बस बच्चों में ही समेट कर रखी। नियति की शादी पर भाई आया था।

किशु और कोमल के लियें खाने की मेज तैयार कर दी गई।नियति अपने पिता के साथ साथ सीमा को भी खाने के लियें ले जा रही थी तभी द्वार से काफी शोर सुनाई दिया। सीमा में पलट कर देखा तो हैरान रह गई उसके माता पिता दोनों भाई भाभी व दोनों बहनें और उनके परिवार अंदर आ गए।

सीमा को विश्वास ही नहीं हो रहा था। तभी आनंद जी को गले लगा सीमा के पिता मुबारकबाद देने लगे। सीमा की हैरानगी की सीमा नहीं थी। पिता ने बताया आनंद जी के बुलाने पर ही तो हम सब यहाँ आये हैं।

आज पहली बार सीमा ने नजर भर अपने पति को देखा आज से पहले उसके मन के आनंद जी के लियें सिर्फ़ दया भाव ही रहता था। परन्तु ये सच्चा व्यक्ति इतना भावुक भी है और रिश्तों का मर्म समझने वाला भी सीमा के मन से सारे मैल धुल गए। एकाएक उसकी आँखें छलक आई आनंद जी भी उसे ही देख रहे थे आज उनकी आँखों में विश्वास भरा था। पहली बार उन्होंने कोई निर्णय जो लिया था सीमा की आंतिरक ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।

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