भविष्य के गर्भ में- शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

देवरानी केतकी के बोल सुन गिरिजा जी जेठानी स्तब्ध रह गई। उम्र में बेटी के बराबर केतकी किस तरह ताने मार कर गिरिजा जी का सीना छलनी कर गई। आप तो बांंझ हो  आप क्या जानो बच्चे कैसे पाले जाते हैं। बच्चे होते तो न आप बच्चों की परवरिश, उन‌की आद‌तें, उनकी अटपटी फरमाइशों के बारे में जानती न। भगवान ने भी आपको ऐसे सुख से बंचित रखा कहते हुए वह बच्चों का हाथ पकडे बाहर जाकर कार में बैठ गई ।वह तो चली गई पीछे  गिरिजा  जी खामोश बैठीं रह गईं। भगवान ने यह अन्याय उनके प्रति क्यों किया। क्या कमी थी उनमें। और अगर बच्चे नहीं भी थे तो क्या देवर को मैंने अपने बच्चे की तरह नहीं पाला। क्या उसे प्यार- दुलार  नहीं दिया। उसकी फरमाइशें पूरी नहीं की,जो आज मुझे यह सब सुनना पड रहा है। उन्हें दुखी देखकर 

उनकी सासू मां उनके पास आईं और उनका हाथ पकड़ कर बोलीं देख गिरिजा  तू अपना मन छोटा मत कर केतकी को तो कुछ भी बोलने की आदत है। इस कान से सुन उस कान से निकाल। अपने मन पर मत ले। उसे तो बोलते  समय भान ही नहीं रहता की क्या बोल रही है, किससे बोल रही है बडे घमंड में चूर रहती है। गिरिजा जी अपने सास-ससुर, पति एवं एक छोटे देवर के साथ हंसी  खुशी रहती थीं। वे सीधी सादी धार्मिक  प्रवृत्ति की महिला थीं पूजा पाठ, मन्दिर जाना, सास-ससुर की सेवा करना  इसी में अपने को व्यस्त रखतीं। जब शादी के दस साल बाद भी, बच्चे  नहीं हुए उन्होने एवं उनके पति शरद ने सब उपाय कर लिए डाक्टर को दिखाना दवाइ इलाज कराना, मन्दिरों में जा-जाकर मन्नतें  मांगना, यहं तक झाड़ फूंक  मंत्र तंत्र का भी  सहारा ले लिया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। सो अब वे चुप हो कर बैठ गए। अब अपना  मन समझाने के लिए उन्होंने अपने देवर को ही अपना बेटा  मान लिया  और उसकी  सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर  उठा ली। उनका देवर उनके पति से आठ साल छोटा था। सास-ससुर भी अब इस  बात से संतुष्ट थे कि वहू  का मन बहल गया। वे पराये बच्चे को गोद लेने के लिये सहमत नहीं थे।

 जब देवर निमेष पढ लिख कर बड़ा हो गया ,उसकी नौकरी भी लग गई तो उन्होने उसकी शादी करने का मन बनाया और एक अच्छी संस्कारी लड़की की तलाश में जुट गए। वे डरते थे कि कहीं ऐसी लडकी  न आ जाए जो  पूरे परिवार को विखेर दे वे घर जोड कर रखने वाली लडकी की त‌लाश में थे।

उनकी तलाश केतकी पर जाकर पूरी हुई। वह एक संयुक्त परिवार की लड़की थी। दादा दादी,ताऊ ताई चाचा-चाची सब मिलकर रहते थे। सबके बच्चे आपस में बहन भाई की तरह रहते थे। सो गिरिजा जी एवं शरद जी ने जब यह बात माता पिता को बताई तो वे भी खुश हो गए कि भरे-पूरे परिवार में रह रही है सो परिवार का महत्व समझती है अतः घर में आसानी से घुल मिल  जाएगी।सो सवकी सहमति बनने के बाद जब नितेष  से  राय माँगी तो उसने कहा जैसा आप सब उचित समझें मुझे आपलोगे का फैसला  मंजूर है।

सबकी सहमति से धूमधाम से शादी कर दी गई, और केतकी वहू बनकर आ गई।सब उसे देख कर खुश होते,वह थी ही इतनी आकर्षक।सब उसे हाथों हाथों  पर रखते , किन्तु उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था।असल में वह जब भी उसकी शादी की बात चलती वह एक  ही सपना देखती कि शादी के बाद वो होऔर उसका पति । अन्य परिवार के सदस्यों के साथ रहना  उसे मंजूर नहीं था। अपने मायके में  बड़े परिवार  की भीड़ भाड़ उसे पसंद नहीं थी। उल्टा ही हो गया, जहां इन लोगो ने सोचा था कि संयुक्त परिवार की लड़की संयुक्त परिवार में अच्छे से निभा लेगी वहां केतकी की सोच थी एकल परिवार । सो उसने दो ही महिने में पति से कहना शुरू किया अलग रहने के लिए।

नितेष उसकी बात सुन भौंचक्क रह गया  केवल  शादी के दो माह बाद ही वह कैसे अपने परिवार से अलग होने की बात करे। उसने उसे समझाया जब सब तुम्हें  इतना प्यार करते हैं हाथों हाथों पर रखते हैं फिर तुम्हारी  समस्या क्या है,  क्यों अलग होना चाहती हो ।

वह बोली यह मेरा सपना है कि शादी के बाद,  मैं और सिर्फ  मेरा पति  ही साथ रहें मुझे ये सब फालतू के रिश्ते  पसन्द नहीं। नितेष , और मुझे अपने परिवार से अलग होना  पसंद  नहीं। तुम्हें एडजस्ट करना ही पड़ेगा  हां आगर कोई परेशानी होती तो में सोचता । 

केतकी मन  मार कर रह गई। किन्तु उसका शातिर  दिमाग  में कुछ न कुछ खुराफात चलती रहती और वह  घर  का माहौल खराब कर देती। तभी एक दिन उसे पता लगा कि शायद वो  गर्भवती हो गई है । जब उसने नितेष से बात की तो वह डाक्टर के  पास ले गया। डाक्टर ने भी पुष्टी कर दी कि वह गर्भवती  है।अब जब घर में मां एवं गिरिजा जी  को पता चला तो खुशी की लहर दौड़ गई। वर्षों बाद घर के  सूने आँगन में बच्चे की  आने कीआहट से ही घर का वातावरण  सुखमय होगया। अब  सब केतकी का  विशेष ध्यान रखते। उसके खाने पीने का, आराम  का विशेष ध्यान रखा जाता ।  उसे इस सब में बहुत आनंद आ रहा था।उसकी तो मौज हो गई।  उसने  सोचा कि ऐसी स्थिती में मैं अकेले कैसे रह सकती हूं। और फिर बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल मेरे बस की नहीं है। है, न यह गिरिजा नामकी जेठानी जो एक नम्बर की बेवकूफ है सब सम्हाल लेगी उसे थोडा  भावुकता से प्रेरित करना है बस, बातों में आ जाती है।और फिर बच्चे के लिए तो तरस रही है सो अच्छे से सम्हाल लेगी। सो अब बह चुप हो गई और अलग होने  का राग अलापना बंद कर दिया। सब सोच रहे थे कि वह परिवार की अहमियत समझ गई  है किन्तु वह तो मौके का फायदा उठा रही थी ।खैर समय पर उसने एक सुंदर खस्थ बेटे को जन्म दिया।  अब तो बेटे को देख कर  उसका मन गुरूर से भर उठा।  सोचती मैं एक बेटे की माँ बन गई। परिवार को  मैंने वारिस जो दिया है।

उधर बेचारी गिरिजा जी केतकी के विचारों से  अनभिज्ञ अपने स्वभावनुसार बेटे की सार,  सम्हाल करने में जी जान से जुट गई।

 केतकी सोचती  अच्छा  है बड़ा कर दो फिर मैं  इसे लेकर अलग हो जाऊंगी।  समय  हाथ से फिसलता जा रहा था देखते 

 ही देखते बेटा किंशुक दो साल का हो गया । तभी उसे लगा कि वह दुबारा माँ बनने  वाली है फिर उसने दूसरे बेटे अंशुक को जन्म दिया। अब तो उसका दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया। न तो वह घर का  कोई काम जिम्मेदारी से करती न अपने बेटों को सम्हलती । गिरिजा जी अक्सर उसे  समझाने का प्रयास करतीं। जीवन की ऊँच-नीच समझाती पर उसके ऊपर कोई असर ही नहीं होता। अपनी मनमानी ही करती। दूसरा बेटा भी अब साल भर का हो गया था। बेटों के होने के घमंड में चूर अब वह गिरिजा जी को ताने मारने लगी।  उल्टा सीधा बोल देती। वे उसकी नादानी समझ   कर अनदेखा कर देती। नितेष  भी उसे समझाता  भाभी मां समान है तुम कैसे कुछ भी बोल देती हो, पर उसको न समझना था सो न समझी। अक्सर कहती, मेरे तो हीरे मोती से दो दो। बेटे हैं । अब मुझे क्या परवाह ये बुढ़ापे  में मेरे सुख-दुख के साथी बनेंगे ,आप क्या करोगी  आप तो बांझ हो औलाद ही नहीं है। ऐसी  बातें सुन गिरिजा जी उसे समझाती तुम सब भी  तो मेरे अपने हो । केतकी ऐसे नहीं बोलते कभी अपनी ही नजर लग जाती है ।बेटे सही सलामत रहें  बस  यही  प्रार्थना है ईश्वर से। 

वह हँस कर कहती क्यों ,क्या होगा मेरे बेटों को। उन्हें अच्छे से पालूंगी। अच्छा पढ़ाऊंगी। देखना कितनी अच्छी बड़ी  नौकरी  करेंगे  दोनों।

बच्चे कुशाग्र  बुद्धिके थे सो पढने में अच्छे

होशियार  निकले ।अंशुक के दो साल के होते ही लड झगडकर केतकी अपने पति एवं बच्चों के साथ अलग रहने चली गई। गिरिजा जी, दादी -दादा दुखी, तो सब हुए। बच्चों के  जाने से घर एक बार फिर सूना हो गया। नितेष   दो तीन दिन में जरूर सबसे मिलने आता और अपनी भाभी माँ की जरूरतों का ध्यान रखता ।समय बीता बच्चे थोडा बडे हो गए,  वे  कुछ- कुछ समझने लगे अब नितेष  चुपचाप उन्हें भी घर ले जाता और सबसे मिला लाता। बच्चे भी वहाँ जाकर बहुत खुश होते ।और बड़े हो गए तो वे खुद ही  जाकर मिल आते किन्तु अपनी माँ को कुछ नहीं बताते।

समय के साथ बच्चे पढ लिख गए अच्छी MNC में नौकरी  लग गई और दोनों को उनकी कम्पनी ने बाहर US भेज दिया। अब  तो केतकी के  पाँव जमीन पर नहीं पडते। जब  देखो बेटों  का गुणगान  करती। किन्तु  जब भी घर आती गिरिजा जी को यह एहसास  जरुर कराती कि वे वेऔलाद हैं और मैं कितनी  सुखी हूं  बेटों  को जन्म देकर ।

नौकरी करते दो वर्ष बीत गये अब उसे बडे बेटे किंशुक  की शादी की चिन्ता हुई सो उसने  लड़की  ढूंढना शुरू किया।

 तभी एक दिन ऐसी खबर आती है जिसने  सबको  हिला कर रख दिया।

 उस दिन रविवार  था। छुट्टी का दिन दोनों बेटे माल में  घूमने गए थे ।तभी कोई सिर फिरा माल में घुसा और तबाड तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। भगदड़  मच गई। कई लोग गोलियों के शिकार हो  वहीं गिर गए और दुर्भाग्यवश गिरने वालों में किंशुक और अंशुक भी शामिल थे। जब तक पुलिस  पहुंची घायलों को अस्पताल ले जाया गया ,किन्तु दोनों ने रास्ते में ही दम तोड दिया ।उनके दोस्तों ने मोबाइल से नम्बर  निकाल घर सूचना भेजी। केतकी तो सुनते  ही बेहोश हो गई। नितेष ने फोन पर पूरी जानकारी ली  फिर घर भी सूचना करी । घर में जैसे भूचाल आ गया। केतकी  को होश में आने के बाद घर ले गया। उसकी हृदयविदारक चीखों से कलेजा मुँह को आ रहा था। गिरिजा जी भावशुन्य नजरों से एक टक ताक रहीं थीं।उनकी

 आँखों से एक बूंद  आंसू नहीं निकला जैसे पत्थर की मूर्ति हो चुकी थीं।  

केतकी रो रोकर गिरिजा जी से कह रही थी दीदी कर्मों का फल सबको मिलता है। मैंने आपको को  औलाद को लेकर क्या-क्या नहीं सुनाया, कितना जलील किया ये उसी की सजा भगवान ने मुझे दी मैं हमेशा गुमान  में भरी आपको जलीकटी सुनाती रही किन्तु आपने हमेशा मुझे छोटा समझ कर समझाया। मेरी ही नजर मेरे बच्चों को लग गई और मैंने उन्हें खो दिया।

दीदी आज मैं भी बेऔलाद हो गई। मेरे 

 घमंड ने मुझे आज यह दिन दिखा दिया ।मेरे  बेऔलाद होने से तो ज्यादा तेरा बेओलाद होना दुःखी कर गया। वह तेरे ही नहीं हम सबके  बच्चे थे। ये दुःख केवल तेरा ही नहीं पूरे परिवार  का  है।तेरी बातों का हमने कभी बुरा नहीं माना न कभी बच्चों के लिए बुरा सोचा फिर हम किस कर्मफल की सजा भुगत रहें हैं। तुमने अकेले ही अपने बच्चों को नहीं खोया है, हम सबने उन्हें खोया है। कहती गिरिजा जी ने केतकी को  अपने अंक  में समेट लिया। हिम्मत रख  मेरी बच्ची। दिल पर पत्थर रख   जीना  तो पडेगा ही। उस परम शक्ति की इच्छा के आगे हम परवश है,उनका फैसला स्वीकार कर।

शिव कुमारी शुक्ला

6-3-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

छठा   जन्मोत्सव के अन्तर्गत कहानी प्रतियोगिता 

प्रथम  कहानी

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