भाग्य विधाता – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

” क्या हुआ, कहीँ बात बनी?” अविनाश जी सोफे पर आकर निढाल होकर बैठ गये।जब सरला ने दुबारा पूछा तो उनहोंने नहीं में सिर हिलाया ।बेटी गीता के ब्याह को लेकर दोनों पति पत्नी आजकल परेशान थे।जहां जाते ,कहीँ दहेज की मांग अधिक होती, कहीँ लड़का पसंद नहीं होता, कहीँ खाने पीने वाला होता ।कहीं गीता के रंग को लेकर बात बिगड़ जाती ।

वैसे तो गीता बहुत शांत, सुशील, समझदार और पढ़ी लिखी थी।लेकिन रंग थोड़ा कम था इसलिए लड़के वाले सीधे नकार देते ।सांवली सलोनी, तीखे नाक नक्शे थे उसके ।पर रूप के बाजार में रंग आड़े  आ जाता ।सरला तो कभी फूट फूट कर रोती कैसे होगा बेटी का ब्याह? एक जगह अखबार में विज्ञापन देखकर ही आगे बढ़े थे पिता अविनाश जी ।

खूब तैयारी करके गये थे ।तय हुआ होटल में दोनों पक्षों की देखा देखी  होगी ।नियत समय पर होटल पहुँच गए ।थोड़ी बहुत बात चीत के बाद लड़की और लड़के को अकेले छोड़ दिया ।आपस में बात कर लें।एक दूसरे की पसंद, नापसंद जान ले तो बात आगे बढ़ाई जा सकती है ।सिर्फ पूछा गया ” चाय बनानी आती है “? यह कैसा सवाल था? लड़का शिक्षित और सुन्दर था।माता पिता को अच्छा लगा।घर देखने की बारी आई ।

अविनाश जी और सरला दोनों गये ।बहुत बड़ा मकान ।सरला की तो आँखे फटी रह गईं ।वाह ! इतना बड़ा घर! बेटी राज करेगी ।लेकिन मोह तब भंग हो गया जब पैतिंस  कमरे वाले कमरे में एक पर भी बिस्तर सही नहीं था।बस एक दरी बिछा हुआ ।चाय के लिए कोयले का चूल्हा जला ।

आज के आधुनिक युग में भी ऐसा हो सकता है? सरला  सोच में पड़ गयी ।चलो फिर भी बेटी समझ दार है ।सब संभाल लेगी।लेकिन बात तब खत्म हो गई ,जब लड़के का पिता तुरंत भारी दहेज की मांग कर बैठा ।उसका कहना था पहले दस लाख दे दें तभी रोके की रस्म होगी ।हार कर अविनाश जी और सरला वापस लौट गये ।नहीं, यह तो अन्याय है ।बड़ा घर होने से क्या हुआ, कपड़े कैसे फटीचर जैसा पहने था।

और पाँव में चप्पल? लग रहा था बाबा आदम जमाने के है ।सरला ने अपने मन की पूरी भड़ास निकाली ।नहीं करनी है मुझे ऐसे घर में बेटी की शादी ।एक सप्ताह के बाद दूसरा पड़ाव ।घर बहुत सुन्दर ।आधुनिक साजसज्जा ।शिक्षित परिवार ।बाहर बाग बगीचे में खूब सारे फूल पत्ती ।बहुत पसंद आया था सरला को।लेकिन साधारण बात चीत के बाद फिर दहेज में लाखों की मांग ।कहाँ से देते अविनाश? एक साधारण स्कूल मास्टर थे वे ।

जोड़ तोड़ कर तो गृहस्थी संभालती रही पत्नी ।लौटना ही था।कहीं बेटी का रंग, कहीँ दुबली काया ।सोच विचार में समय भागता रहा ।तभी सरला के गृहस्थी में भाग्य विधाता बन कर आयी उनकी चचेरी बहन ।आते ही सरला अपना दुख सुनाने लगी।” दीदी, जहां जाते हैं कहीँ दहेज, कहीँ रूप रंग, कहीँ कुछ और समस्या खड़ी हो जाती है ।” न जाने कैसे होगा बेटी का ब्याह? ” तुम घबराओ नहीं सरला,कहीँ बेटी का ब्याह रुका है क्या?

सब हो जायेगा समय पर ” ” पर कैसे होगा दीदी “? मेरे पास तो अधिक देने लायक भी नहीं है । मीरा दीदी ने अपने देवर के साले का रिश्ता सुझाया ।” लड़का शिक्षित और सुन्दर है ।उनकी कोई मांग भी नहीं है ।परिवार अच्छा है ।वह एक प्राईवेट कम्पनी में नौकरी करता है ।तुम कहो तो बात चलाएं? नेकी और पूछ पूछ? अविनाश जी और सरला के आखों में खुशी के आँसू भर आए थे ।फिर मीरा दीदी के सहयोग से गीता की शादी अभय से तय हो गयी ।

लड़का थोड़ा दुबला पतला था।चलो कोई बात नहीं है ।मेरी बेटी भी तो दुबली पतली ही है ।मां ने गीता से राय जाननी चाही।” बेटा, तुम्हे  यह शादी पसंद है?”  गीता ने नजरें झुका कर सहमति दे दी।” मां आप कयों चिंता करती हो? सबसे अच्छा लड़का पढ़ा लिखा है, कोई दुर्गुण नहीं है ।कोई गलत आदत नहीं है ।उसने मुझे देखने के लिए भी नहीं कहा, उनकी कोई मांग भी नहीं है ।

आपके हिसाब से उँचे पूरे डील-डौल का रहता, शराबी होता, लाखों का माँग रखने वाला बहुत खूब सूरत होता तो पापा क्या  पूरा कर पाते? नहीं ना? आप चिंता मत करो माँ चाहे जैसा भी परिवार हो मै खुश होकर निभा लूंगी ।आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी ।सरला के मन का बोझ हल्का हो गया ।बेटी बहुत समझदार है ।अच्छी तरह निभा लेगी।दूसरे ही दिन बात चीत पक्की हो गई ।दोनों बहन पंडित जी के यहाँ दिन देखने के लिए दौड़ पड़ी ।

पूरे एक महीने के बाद शादी की तारीख तयहो गई ।अविनाश जी बहुत खुश थे।मीरा दीदी भाग्य विधाता बन कर आयी थी ।ऐसे भी सरला और मीरा में बहुत अपनापन था।पहले परिवार एक साथ था।कभी लगा ही नहीं कि वे चचेरी बहन है ।फिर शादी हो गई तो शहर बदल गये।लेकिन आना जाना, फोन करना बना रहा।और देखते देखते शादी का मुहूर्त भी आ गया ।आज अविनाश जी बहुत खुश हैं।घर मेहमान से भरा हुआ है ।

गीता भी सजी हुई बैठी है ।बारात आने वाली है ।सभी लोग आश्चर्य चकित हैं ।” दूल्हे ने शगुन के तौर पर एक रूपये लेना सवीकार किया है ।कानाफूसी चल रही  है ” भला ऐसा कहीँ हुआ है क्या? दहेज में एक रुपये? ना बाबा झूठ बोल रहें हैं सब? पर बात सच्ची है।शादी भी हो गई ।गीता विदा हो गई अपने बाबुल के घर से ।आज अविनाश जी और सरला बहुत प्रसन्न हैं ।बेटी का अपना अहोभाग्य! भाग्य विधाता हो तो मीरा दीदी जैसी।प्रिय पाठकों यह एक सच्ची कहानी है ।स्वरचित ।मौलिक ।अप्रसारित ।उमा वर्मा ।नोयेडा ।

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