बेटा है तो क्या हुआ…- विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 ” अरी जन्मजली…ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने! अपने ही कोख जाये को सज़ा दिलवाते हुए तेरी जीभ नहीं जल गई…।” कोर्ट से बाहर निकलते हुए रामरति देवी ने अपनी बहू कलावती को दुत्कारा पर वह चुपचाप सुनती रही।वह तो एक ज़िन्दा लाश बन चुकी थी।यंत्रवत चलते हुए सबके साथ वह गाड़ी में बैठ गई।गाड़ी के पहिये सड़क पर दौड़ रहें थें और वह अतीत के गलियारे में विचरण करने लगी थी।

         कलावती के पति कुलभूषण की शहर में कई ट्रकें चलतीं थीं जिसका हिसाब-किताब वे अपने पिता के साथ मिलकर रखते थे।घर में धन की तो गंगा बहती थी लेकिन अफ़सोस… उसे भोगने वाला कोई न था।विवाह के छह बरस बाद भी जब बहू की गोद सूनी ही रही तब उसकी सास रामरति देवी को चिंता सताने लगी।उन्होंने मंदिरों में जाकर मन्नतें माँगी….घर में जाप-हवन करवाये तब जाकर उन्हें पोते का मुँह देखना नसीब हुआ।

       कलावती का बेटा सुमित दादा-दादी का खिलौना बन गया था।देखते-देखते वह तीन साल का हो गया और वह स्कूल जाने लगा।समय अपने पंख लगाकर उड़ता गया।इसी बीच कुलभूषण के पिता का स्वर्गवास हो गया तो उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ गई।सुमित भी अब किशोर हो गया था।उसकी हल्की-हल्की मूँछें और इक्के-दुक्के दाढ़ी के बाल देखकर कुलभूषण गर्व-से पत्नी से कहते,” देखना कला…हमारा सुमित एक दिन अपने कुल का नाम रोशन करेगा।” कलावती मुस्कुरा देती।

         एक दिन सुमित की डायरी में स्कूल के प्रिंसिपल का मैसेज़ लिखा आया- meet me tomorrow. कलावती मिलने गई तब प्रिंसिपल सर ने कहा,” सुमित अपनी क्लासेज़ अटेंड नहीं कर रहा है।ये देखिये..कुछ दिनों पहले उसके किताब से ये तस्वीरें निकली हैं..।” कहते हुए उन्होंने तस्वीरें उसके सामने रख दी जिसे देखकर उसकी आँखें शर्म से झुक गई।प्रिंसिपल सर से माफ़ी माँगकर वह घर आ गई।स्कूल से आने पर उसने सुमित को समझाया कि इस तरह की तस्वीरें रखने या देखने की अभी तुम्हारी उम्र नहीं है।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो..अगले साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा…।कलावती अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उसकी सास ने टोक दिया,” बस…जब देखो..मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती है।बच्चा है…कुछ कर भी दिया तो क्या हुआ।” दादी का सपोर्ट पाकर तो सुमित के हौंसले बुलंद हो गये। फिर तो मुहल्ले से भी उसकी शिकायतें आने लगी।

        दसवीं की परीक्षा तो किसी तरह से सुमित ने पास कर ली लेकिन बारहवीं में वह दो विषयों में फ़ेल हो गया।तब कुलभूषण ने बेटे को समझाया कि पढ़ाई बहुत ज़रूरी है।मैं तो नहीं पढ़ पाया पर तुम्हें तो खूब पढ़ना है.. अच्छा इंसान बनना है..खानदान का नाम रोशन करना है…लेकिन पिता की बातों को सुमित ने अनसुना कर दिया।

     बारहवीं पास करके सुमित ने काॅलेज़ में दाखिला लिया जहाँ वह पढ़ाई छोड़कर बाकी सारे काम करता था।संगत तो बुरी ही थी.. उसकी दादी उसे पैसे देकर उसके मन को बढ़ावा देती थीं जिससे उसकी उद्दंडता बढ़ती ही चली गई।

       बेटे की करतूतों का सदमा कुलभूषण सह नहीं सके। एक दिन से पत्नी से बोले,” कला…शायद मैं न रहूँ …तुम इस घर के चिराग को बचा लेना…।” और हमेशा के लिये उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली।पिता के चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कॉलेज़ से सुमित की शिकायत आई कि उसने किसी लड़की के साथ बत्तमीज़ी की है।वह लड़की को साॅरी बोले वरना काॅलेज़ से उसे निकाल दिया जाएगा।

       सुनकर दादी बोली,” नाम काटना है तो काट दे..हमारा सुमित माफी-वाफी नहीं माँगेगा।” तब कलावती सास पर भड़की,” आप अपने दुलार से सुमित का वर्तमान और भविष्य बिगाड़ रहीं हैं।” रामरति देवी तपाक-से बोलीं,” कुलभूषण तो नहीं बिगड़ा..।” तब वह निरुत्तर हो गई थी।

       अपने बेटे को पतन के रास्ते पर जाते हुए देखकर कलावती का जी जलता था लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही थी।फिर एक दिन तो पुलिस घर आ गई और एक नाबालिग लड़की का बलात्कार करने के ज़ुर्म में सुमित को हथकड़ी लगाकर ले गई।

     वकील से ज़मानत दिलवाकर कलावती बेटे को घर ले आई और थप्पड़ मारते हुए बोली,” नालायक….ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने! एक लड़की की इज़्जत तुमने खराब कर दी और तुम्हें इसकी ज़रा भी शर्मिंदगी नहीं है..।”

    ” मम्मी…आप भी ना..छोटी-सी बात को बड़ा बना देती हैं।” बेटे की विद्रूपता देखकर कलावती हैरान हो गई थी।उधर पीड़िता की हालत गंभीर होने लगी तो सुमित के नाम केस दर्ज़ हुआ।

    कुलभूषण के मित्र सुदर्शन जी जो सुमित के वकील थें ने कलावती को समझाया कि भाभी…आप सुमित के बारे में कुछ भी बुरा नहीं कहियेगा और अपराध की बात पूछी जाये तो आप साफ़ नकार जाइयेगा।

         कलावती ने उस वक्त तो हाँ कह दी लेकिन रात भर उसकी आँखों के सामने पीड़िता का चेहरा घूमता रहा तो दूसरी तरफ़ उसके कानों में बेटे की विद्रूप हँसी गूँजती रही।तभी उसने फ़ैसला किया कि वह सच बोलेगी। ड्राइवर ने गाड़ी का ब्रेक लगाया…गाड़ी रुकी तो वह वर्तमान में लौटी।

      घर में घुसते ही रामरति देवी फिर से शुरु हो गई तब कलावती ज़ोर-से चिल्लाई, “हाँ…मैंने अपने बेटे को सज़ा दिलाई है लेकिन उसे यहाँ तक पहुँचाने में माँजी आपका बहुत बड़ा हाथ है।आप हमेशा उसकी गलतियों पर परदा डालती रहीं।बेटा है तो क्या हुआ…उसे किसी की भी इज़्जत से खिलवाड़ करने का अधिकार मिल गया है…उस बच्ची के बारे में सोचिये..जो सुमित के कारण अस्पताल में मौत से लड़ रही है।बेटी की दुर्दशा देखकर उस माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी.. ये भी सोचा है आपने।हर अपराधी किसी माँ का बेटा होता है।बेटे की दुहाई देकर हर माँ अपने अपराधी बेटे को बचाने लगेगी तो समाज में ऐसे कुकृत्य तो होते ही रहेंगे।माँजी.. सुमित तो अपनी सज़ा काटकर वापस हमारे पास आ जायेगा…लेकिन क्या उस लड़की की ज़िंदगी पहले जैसी हो पायेगी…।” कहते हुए वह फूट-फूटकर रोने लगी।उसका दुख और बेटे द्वारा किये गये अपराध का पछतावा आँसू बनकर उसकी आँखों से बहने लगे थे।रामरति देवी अपनी बहू को हैरत-से देख रही थी।बेटे से बिछोह की सज़ा तो उसे भी मिल रही थी।

विभा गुप्ता 

  स्वरचित 

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

# ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने “

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!