पच्चीस तीस की उम्र होते होते लड़के पति तो बन ही जाते हैं ,लेकिन कुछेक बिरले ही इनमें से हमसफर बन पाते है। अधिकांश लोग तो ताउम्र अपने पति पने का ही रॉब जमाते रहते हैं। शायद ये पति यह भूल जाते हैं कि सिर्फ पति ही न बने रह कर हमसफर बन कर लाइफ को ज्यादा रोचक बनाया जा सकता है।
आइए जानते हैं रमाकांत जी से जो आजकल अपने बहू बेटे के पास आए हुए हैं,अपने किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में।
जब से यहां आए हैं तभी से महसूस कररहे हैं कि उनका बेटा आरब सही मायने में हमसफ़र है अपनी पत्नी चैताली का।दोनों का ताल-मेल देख कर वे मन ही मन अपनी व रागिनी की लाइफ की तुलना करने में लगे हैं।
चैताली व अरब दोनों ही किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत हैं।आज चैताली का उसके आॉफिस में प्रेजेन्टेशन है,सो सुबह सेही उसी की तैयारी में जुटी है।
सुबह उठते ही आरब ने टेबिल पर चाय रखते हुए कहा पापाजी आप नाश्ते में पोहा खालेंगे क्या? क्योंकि मैं आज नाश्ते में पोहा बनाने जारहा हूं।
हां बेटा पोहा तो में खा लूंगा लेकिन क्या चैताली बीमार है जो तुम रसोई में घुसे हो सबेरे से।
बीमार हों उसके। दुश्मन वो क्या है कि आज उसका एक बहुत ही इम्पोर्टेंट प्रेजेन्टेशन है ,सो उसी की तैयारी में बिजी हैं।इसी प्रजेंटेशन पर उसका प्रमोशन निर्भर करता है, अतः मैं उसकेो डिस्टर्ब नहीं करना चाहता। रमाकांत जी को नाश्ता करा कर आरब भी अपने ऑफिस निकल गया।
रमाकांत बेटे के जाते ही अतीत के गलियारे में पहुंच गए।कितना ताल-मेल है दोनों में,आरब सही मायने में चैताली का हमसफर है।
तभी उनकी आत्मा की अंदर से आबाज सुनाई दी,और क्या सब तुम्हारे जैसे थोडे ही होते हैं।पत्नी को कोई परेशानी हो,दुख दर्द हो ,तब भी चाय वही बनाएगी।कयोंकि तुम तो पति हो रसोई में चले गए पत्नी की मदद करदी तो कहीं जोरू का गुलाम काखिताब न मिल जाय।
आज रमाकांत जी को ऑफिस नही जाना था, घर से ही लैपटॉप पर काम कररहे थे।आरब व चैताली एकसाथ ही घर में घुसे,चैताली अपने रूम में जाकर लेट गई अरब फ्रैश होकर रसोई में चला गया।तीन कप चाय बनाकर एक कप मुझे थमाया और अपना व चैताली की चाय उसके रूम में ही ले गया।
चाय पीकर आकर मेरे पास आकर बैठा और कहने लगा वो क्या है पापाजी चैताली का परजैनटेशन कुछ अच्छा नहीं हुआ है उसका मूड कुछ सैड था अत उसकाो मॉरल सपोर्ट देने उसको चाय बना कर पिलाई।मैं नही समझूंगा उसका दुख सुख तो और कौन समझेगा।
रमाकांत जी को ,फिर जोरदार झटका लगा। इच्छा तो रागिनी ने भी जाहिर की थी नौकरी करने की लेकिन रमाकांत जी ने यह कहकर पत्नी की इच्छा को कोई तवज्जो नहीं दी और कहा कि यदि तुम जॉव करने बाहर चली गई तो घर का कामकाज कौन करेगा।नौकरी करने घर से बाहर जाओगी तो घर के काम कौन करेगा। रागिनी चुपचाप रमाकांत जी के परिवार की सेवा करती रही,ऊपर से रमाकांत जी कभी कोई भूल होने पर रागिनी को जली कटी सुनाने से भी नहीं चूके।
और तो और उन्होने तो कभी भी रागिनी की तारीफ में दो मीठे बोल बोल कर उस पर प्यार भी नहीं जताया। एकबार रागिनी को अपने रिश्ते दारी में किसी शादी में जाना था। रमाकांत जी ने उसी दिन अपने किसी पुराने दोस्त को खाने पर इनबाइट कर लिया।जब रागिनी नेकहा किवहसाराभोजन तैयार करके टेबिल पर लगादेगी प्लेट बगैरह भी सब लगा कर रख जायगी।
इतना सब करने के बाद भी रागिनी को शादी में जाने की इजाजत नहीं मिली।उस दिन रागिनी बहुत रोई, उसने खाना भी नहीं खाया।ऊपर से जिस दोस्त के लिए उसका शादी में जाना रोका गया था वह भी नहीं आया।
और आज जब चैताली ने आरब से कहा कि वह अपनी प्रिय दोस्त की बर्थडे पार्टी में शामिल होना चाहती है और रात में वही रूकने वाली है तो आरब ने खुशी-खुशी उसे इजाजत दे दी। कहा हां तुम पार्टी ऐनजॉय करो।।,मैं व पापा जी आज शाम को डिनर बाहर ले लेंगे।बैसे भी जबसे पापाजी आए हैं ,मैं उन्हें कहीं बाहर नहीं लेजापाया हूं । आज मैं पापाजी को उनकी पसंद का फेबरेट फ़ूड खिलाकर लाने बाला हूं।
रमाकांत जी ने महसूस किया कि वे जैसे किसी स्कूल में हैं और हर रोज एक नया सबक सीख रहे है
इन दोनों की लाइफ में कितना सुकून व खुशी है।विना किसी गुस्सा व नाराजगी से सब कुछ कितना सही तरीके से चलरहाहै।
दूसरे दिन चैताली ने पापाजी की पसंद का पनीर लबावदार व रूमाली रोटी बनाई पापाजी ने खाने कीजी भरकर तारीफ की।सच बहू तुम खाना बहुत ही अच्छा बनाती हो,पेट भर गया लेकिन नीयत नहीं भरी।
लेकिन पापाजी यह सब बनाना तो मैने मम्मी जी से ही सीखा है।तोआपतो यह स्वादिष्ट खाना खाते ही रहते होंगे।
रमाकांत जी के मन में फिर धमाका हुआ, आत्मा की आवाज फिर से सुनाई पड़ी।न जाने कितनी बार तो रागिनी ने उनका मनपसंद खाना बनाकर उन्हें खिलाया है,लेकिन तारीफ करना तो दूर,वे तो हमेशा उसकी कमियां ही निकालते रहे। रमाकांत जी खाना खा कर तुरंत अपने रूम में आए,और रागिनी को फोन लगाया, हैलो, रागिनी कैसी हो, तुमने खाना खाया या नही।
जी मैं ठीक हूं और मैंने खाना भी खा लिया है,लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं आजआपकी तबियत तो ठीक है न। क्यों मैं पूछ नही सकता क्या ? नहीं वह बात नहीं है आज तक आपने कभी ऐसा पूछा ही नहीं।
अच्छा ,ये नही पूछेगी कि मैं कब वापस आरहा हूं।
इसमें पूछने की क्या बात है। काम पूरा होने पर आप वापस आही जायेंगे। फिर आप ही तो कहते हैं कि काम के समय बात करके मेरा समय मत बर्बाद किया करो। रागिनी ने फोन रख दिया, रमाकांत जी काफी देर तक फोन पकड़े बैठे रहे।फिर सोने चले गए,लेकिन आज उनकी आंखों में से नींद पूरी तरह गायव थी
रागिनी के फोन पर वेरूखी से बात करनेके जिम्मेदार वे खुद ही तेो है कभी तो हमसफ़र बन कर सोचा होता कि रागिनी की पसंद नापसंद क्या है ,उसके मन को किस बात से खुशी मिलती है ऐसी जिंदगी से क्या फायदा जो साथ रह कर भी अजनवी बने रहो और बस हुकुम चलाते रहो,मानो पत्नी आपकी कोई गुलाम हो।
कल ही लौट जायेंगे और अपनी शेष लाइफ रागिनी के हमसफर बन कर वितायेंगे।इसी को कहते हैं देर आयत , दुरूस्त आयत।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली
#हमसफर#