डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -70)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

सब कुछ अच्छा जा रहा था।

सिवाए इसके कि मेरी जानलेवा उधेड़बुन जारी थी।

यह समझ में ही नहीं आता ,

क्या जीवन इसी उधेड़बुन का दूसरा नाम है ? मैं सारी- सारी रात यही सोचता,

” कि काश वह नहीं घटता जिसे नहीं घटना चाहिए था”

तब टूट कर बिखर जाने को होता …  मां- पिता के समवेत प्यार को खोने की मेरी मर्मांतक पीड़ा को समझने  वाला कोई नहीं है “

सिवाय नैना के , वह सचमुच अनूठी है।

मुझे  लगता मैं एक प्यासी आत्मा ,

जो अमृत की तलाश में भटकता हुआ उस तक जा पहुंचा हूं।

जबकि उसके भीतर छलछला रहे प्रेम के सरोवर से अंदर ही अंदर दूर भागता  रहा हूं।

और मन की शांति ढूंढ़ने के लिए यहां आ पहुंचा।

बहरहाल ,

मेरे यहां पहुंचने और उनकी सेवा सुश्रुषा में लगे अभी पन्द्रह दिन भी नहीं हुए थे कि अचानक एक दिन प्रायः आधी रात को उनकी सांसें तेज- तेज चलने लगी थीं और भोर होते – होते वे शांत हो गये थे।

मरने के करीब आधे घंटे पहले उन्होंने मेरे हाथ पकड़ कर ,

” बेटा हेम !  मैं तुम्हारा पिता नहीं शत्रु निकला _

मरते दम तक तुम्हें सिर्फ कष्ट ही दिया।

मैं खुद कितना बड़ा अभागा निकला इसका जिक्र करना ही बेकार है  “

कहते- कहते उन्होंने मेरी बाहों में अंतिम सांस ली।  

वे विदा हो गए थे।

उनकी मृत्यु से मुझे गहरा धक्का लगा इसकी कल्पना मैं ने पहले नहीं की थी।

लेकिन कही अपूर्व संतोष था कि उनके अंतिम समय में मैं उनके साथ हूं। जिसकी सदिच्छा किसी भी पिता को होती है।

बहुत दबाने पर भी आंसू की दो-एक बूंदें मेरी आंखों से निकल कर उनके मस्तक पर बह चलीं। उनके मृत शांत चेहरे पर अनुपम विकल सुख भाव पसरे थे।

जिसे देख एक विचित्र अनुभूति, जिसमें कितना सुख और कितनी वेदना छिपी है इसके माप- तौल के लिए मेरे पास कोई पैमाना नहीं था। 

सिर्फ एक फोन करके माया को हमारे पिता के मृत्यु की खबर दे दी जिसके प्रति उत्तर में ,

” सिर्फ एक ठंडी निश्वास “

अब वहां रुकना मुनासिब नहीं था। एक दिन बिना किसी से कुछ कहे चुपचाप निकल आया।

आगे …

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