बहू तुम्हारी बराबरी कोई नहीं कर सकता – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

“साधना, तू अकेली -अकेली लड़की देख भी आई, और मुझे बताया भी नहीं, मै भी जरा अच्छे से परख लेती, अपने अरूण के लिए पूरी तरह से काबिल है या नहीं, वो जमाने गये जब लडकी को घर का काम आता है या नहीं , सिर्फ यही देखा जाता था, आजकल तो लड़की को ढंग से रहना भी आना चाहिए, ये नहीं कि अरूण को उसे कहीं भी ले जाते हुए शर्म आयें”, रिश्ते हमेशा बराबर वाले से ही बनाने चाहिए।

कामना जी ने अपनी छोटी बहन से कहा।

“अरे!! जीजी आप ऐसा क्यूं कह रही है? आजकल की तो सभी लड़कियां स्मार्ट होती है, और वैसे भी सब लड़कियों के रहन-सहन का स्तर अलग होता है, किसी को सब पसंद होता है तो किसी को कुछ भी नहीं, साधना जी ने उतर दिया।

ये सुनकर कामना जी बोलती है,” वो तो सब ठीक है, पर आजकल के लड़कों की पसंद थोड़ी अलग होती है, उन्हें घरेलू नहीं स्मार्ट लड़की चाहिए होती है, तू छोटे शहर से लड़की बहू बनाकर ला रही है, वो रहन-सहन में हमारे बराबर है या नहीं, मै इसलिए ही कह रही हूं “।

“नहीं, दीदी ऐसी कोई बात नहीं है, शिल्पी संस्कारी भी है और पढ़ी-लिखी भी, सुंदर भी है, मुझे तो उसकी सादगी भा गई, वो हमारे घर के लिए एक परफेक्ट बहू होगी और अरूण को भी बहुत पसंद आई है ” साधना जी ने कहा।

“ठीक है, देखते हैं अगले महीने की टिकट तो बनवा ली है, जल्दी ही शादी में आ जाऊंगी, फिर आमने-सामने देख लूंगी, फोटो में तो सभी सुंदर नजर आती है, फिल्टर लगवाकर जो लड़कियां फोटो खिंचवाती है,

कामना जी ने अपनी बात खत्म करके फोन रख दिया।

साधना जी की बड़ी बहन कामना जी थोड़ी मॉर्डन ख्यालों की थी, उनके हिसाब से लड़की जो घर में बहू बनकर आती है वो पूरे परिवार के स्टेटस को दिखाती है, उसे भी ढंग से रहना आना चाहिए, और मौजूदा जमाने के साथ में चलना चाहिए।

अगले महीने साधना जी के घर पर शहनाई बज उठी, सारे मेहमान आ चुके थे। लडकी वालों और लडके वालों ने एक ही जगह होटल कर ली थी, वहीं पर दोनों के रिश्तेदार आ रहे थे। साधना जी के ससुराल से और मायके से भी सब लोग आ चुके है थे, पर उन्हें तो अपनी कामना जीजी का इंतजार था, कामना जीजी की फ्लाइट थोड़ी देर से आई, तब तक हल्दी की रस्म शुरू हो चुकी थी, हल्दी के लिए तैयार शिल्पी बहुत ही सुन्दर लग रही थी, सभी रिश्तेदार बारी-बारी से हल्दी लगा रहे थे।  

संगीत गूंज रहा था, सभी डांस कर रहे थे, पूरा मस्ती का माहौल था, ऐसे में कामना जी आती है तो साधना जी का चेहरा खुशी से खिल जाता है, और वो मुस्करा उठती है। कामना जी की नजरें शिल्पी पर पड़ती है तो वो आदतन बोल ही देती है,” शिल्पी ये क्या साड़ी पहन ली, हल्दी के दिन तो साड़ी की जगह गाऊन पहनना चाहिए, आजकल तो यही ट्रैंड में है, तुम तो पुराने जमाने की दूल्हन लग रही हो” और वो मजाक बनाकर हंसने लगी।

साधना जी, अपनी बहन को एक कोने में ले गई,” जीजी, आपने भी सबके सामने बहू को कुछ भी कह दिया, शिल्पी भी गाऊन पहन सकती थी, पर मेरे ससुर जी और शिल्पी की दादी को ये सब पसंद नहीं है, उनका कहना था चाहें तुम हल्दी का कार्यक्रम करो, पर हमारी पोत बहू साड़ी ही पहनेगी, शिल्पी ने अपने बड़े बुजुर्गो को खुश रखने के लिए साड़ी पहनी है, केवल  फैशनेबल तो हर बहू बनकर रहती है, पर जो बहू घर के बुजुर्गो को खुश रखती है, शिकायत का मौका नहीं देती है, वो ही बहू घर की शान होती है,”।

कामना जी ये सुनकर चुप हो गई, आगे के सभी रीति-रिवाज होने लगे, फिर वरमाला का समय आया, शिल्पी दूल्हन बनकर बहुत खूबसूरत लग रही थी, वो जब वरमाला के लिए आ रही थी तो उसने  भजन पर डांस किया तो ये देखकर कामना जी ने फिर मुंह बनाया,” साधना आजकल की दूल्हन तो मस्त फिल्मी गानों पर डांस करती हुई आती है, पर तेरी बहू तो ना जाने कौनसे जमाने की है, इतने धीमे भजन पर धीमा सा डांस किया”।

“हां जीजी, कितना अच्छा डांस किया, अभी तक तालियां बज रही है, मेरी शिल्पी ने सबका  दिल जीत लिया है , साधना जी ने खुश होकर और जोर से ताली बजाई। 

शिल्पी दूल्हन बनकर घर आ गई उसका अच्छे से स्वागत हुआ, कुछ मेहमान जा चुके थे और कुछ मेहमान रूक रहे थे, कामना जी के बेटे और बेटियों की शादी हो चुकी थी तो वो भी घर गृहस्थी की जिम्मेदारी से मुक्त थी, इसलिए वो भी थोड़े दिन रूक ही गई, सारी रस्में और रिवाज हो गये।

दूसरे दिन शिल्पी कमरे से बाहर आई तो लाल साड़ी, भरी मांग, धुले हुए बाल, हाथों में सुहाग का चूड़ा और माथे पर बिंदिया चमक रही थी, पैरों से पायल की छन-छन की आवाजें आ रही थी, शिल्पी बहुत सुंदर लग रही थी। साधना जी ने उसकी नजर उतारी ।

ये सब कामना जी देख रही थी, पर कुछ बोली नहीं, शिल्पी की चौका पूजन की रस्म थी, तो कामना जी बोली,” बहू दाल का हलवा बना दें, बड़ा मन कर रहा है, तुझे आता है या नहीं? 

” मौसी जी, मै बनाकर लाती हूं, ये कहकर शिल्पी रसोई में चली गई, तो साधना जी बोली,” जीजी, दाल तो भिगोई नहीं है, हलवा कैसे बनेगा? आप भी नई बहू की परीक्षा ले रही हो, और रसोई में चली गई।

शिल्पी ने जो सामान मांगा वो उसे दे दिया, साधना जी के माथे पर तनाव की रेखा देखकर वो बोली,” मम्मी जी मै बना लूंगी, आप बाहर जाकर मौसी जी से बात कीजिए, मूंग की दाल को भुनकर सूखी पीसकर भी हलवा बनता है।

साधना जी बाहर आ गई और थोड़ी देर बाद शिल्पी हलवा बनाकर ले आई, हलवा लाजवाब बना था।

कामना जी  ने मुंह पर तारीफ नहीं करी पर हलवा उन्होंने पूरा खा लिया था। दो-चार दिन बीत गये थे, शिल्पी धीरे-धीरे सबको समझने की कोशिश कर रही थी। कामना जी कुछ दिन रहकर चली गई।

शिल्पी ने भी अपना घर संभाल लिया, वो दादा-ससुर,सास-ससुर, पति के साथ खुश रहने लगी, घर में सब कुछ सही चल रहा था, एक दिन अचानक साधना जी बाथरूम में फिसली और उनकी रीढ़ की हड्डी में भारी चोट आई, डॉक्टर ने उन्हें बिस्तर पर आराम करने को कहा। अपनी छोटी बहन की तबीयत पूछने कामना जी फिर से घर आई, बहन की हालत उनका दर्द उनसे देखा नहीं जा रहा था। उनके कहने पर वो दो-चार दिन रूकने को तैयार हो गई।

शिल्पी ने पूरा घर अच्छे से संभाल लिया था, घर में सिर्फ शिल्पी ये दे दो…. शिल्पी वो चीज कहां है? बस यही आवाजें गूंज रही थी।

सास की सेवा के साथ ही शिल्पी अपने दादा -ससुर का भी पूरा ख्याल रख रही थी, उन्हें समय पर खाना देना और दवाई भी दे रही थी।

कामना जी साधना जी के पास बैठी थी तभी शिल्पी चाय देने अंदर आई तो कामना जी उसे अजीब नज़रों से देख रही थी,” साधना कुछ भी कह तेरी बहू ढंग से नहीं रहती है, ये आजकल के जमाने में कौन पायल पहनती है? बिंदी लगाती है और देख कितना सिन्दूर मांग में भर रखा है? चूड़ियां भी हाथों में भरी है। शादी के शुरूआती दिनों में तो पहन लो, पर रोज कोई नहीं पहनती हैं,  आजकल तो पता ही नहीं चलता है कि ये शादीशुदा हैं यि कंवारी, वैसे बहूंएं वैसे ही स्मार्ट लगती है, ये सब तो गंवारू महिलाएं पहनती हैं, मैंने पहले ही कहा था कि छोटे शहर की लड़की मत ला, पर तूने मेरी बात ही नहीं मानी, तेरी बहू तो एकदम से गंवार लग रही है”।

“कामना जीजी, आप मुझसे बड़ी है तो मै आपका सम्मान करती हूं, पर मै ये कतई बर्दाश्त नहीं करूंगी कि कोई मेरी बहू का अपमान करें। क्या सुहाग चिन्ह पहनने मात्र से कोई गंवारू हो जाता है? शिल्पी की अरूण से शादी हुई है तो इस नाते वो चूड़ियां पहनती हैं, पायल पहनती हैं, बिंदी लगाती है, मांग भरती है, इसमें गलत क्या है?

शिल्पी को ये सब पसंद है, वो खुशी से सब पहनती हैं, ये उसकी मर्जी है, फिर ये सब पहनना गंवारूपन कैसे हो गया? ये सब चीजें तो जीजी आप और मै भी पहनते हैं, तो हम दोनों भी गंवार कहलायेंगे “।

,”अरे! छोटी मेरे कहने का मतलब है, आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियां ये सब नहीं पहनती हैं, अब मेरी ही बहू को देख ले, वो बिंदी नहीं लगाती है, कहती हैं कि निशान पड़ जायेगा, वो बिछिया और पायल नहीं पहनती हैं, कहती हैं कि वो जींस और जूते में उलझ जायेगी, वो मांग नहीं भरती है क्योंकि उसे ऑफिस जाना होता है, वो चूड़ियां नहीं पहनती हैं क्योंकि कोई भी आजकल की बहूंएं चूड़ियां नहीं पहनती हैं, सब कोरे हाथ ही रहते हैं। तू बड़े शहर में आकर देख तो सही जमाना कितना बदल गया है “।

“हां, जीजी जमाना बदल गया है, पर इतना भी नहीं बदला कि कोई भी पढ़ी-लिखी लड़की शादी के दिन मांग नहीं भरवायें, मांग भरना और बाकी सुहाग चिन्ह पहनना ये सबकी मर्जी पर निर्भर करता है

अपनी -अपनी आस्था है, विश्वास है, इसमें हंसी उड़ानें वाली और गंवारू कहलाने जैसी तो कोई बात नहीं है”।

“मैंने आपकी दोनों बहूओं को भी देखा है, जो सुंदर दिखने के नाम पर चेहरे पर मेकअप तो कर लेगी,पर बिंदी तक नहीं लगायेगी, जो पांवों में एक से बढ़कर एक जूते चप्पल पहन लेंगी, पर पायल और बिछिया नहीं पहनेगी, जो हाथों में महंगी से महंगी घड़ी पहन लेगी पर चूड़ी नहीं पहनेगी”।

“ये उनकी मर्जी है, ये उनकी इच्छा है, पर मैंने तो कभी आपकी बहू की हंसी नहीं उड़ाईं, उन्हें कभी ताना नहीं मारा”। 

” जीजी, शिल्पी चाहें छोटे शहर से है तो क्या हुआ!!

आजकल घर-घर इंटरनेट है, मेरी बहू को हर चीज की पूरी जानकारी है, वो ऑन लाइन के साथ-साथ ऑफलाइन भी सारे काम कर लेती है, वो ऑन लाइन शॉपिंग के साथ घर के सभी काम भी कर लेती है, केवल सुहाग चिह्न पहनने मात्र से ये गंवारू कैसे साबित हो गई?  

” शिल्पी के संस्कार बहुत अच्छे हैं, अब देखो ना जब से मुझे चोट लगी है, मेरे ससुर जी की भी सेवा करती है, और इसने मेरी सेवा में भी दिन-रात एक कर दिये है, अपने हाथों से मेरे सभी काम करती है, मेरी सेवा करती है, खुद ही खाना बनाती है तो मुझे अपने हाथों से खिलाती भी है, ये सब देखकर आप तो ये भी कह दोगे कि,” ये सब काम आजकल की बहूंएं कहां करती है? शिल्पी तो गंवार है जो अपनी सास की सेवा कर रही है, आजकल की बहूंएं तो मेड लगा देती है “।

ये सुनकर कामना जी की आंखें झुक गई, अभी कुछ महीनों पहले वो डेंगू का शिकार हो गई थी, उनकी एक भी बहू ने उन्हें संभाला नहीं और मेड लगा दी, कभी खुद से खाने की भी नहीं पूछा, ना ही कभी हाथ से दवाई दी, दोनों बहूंएं बस पार्टी और सजने संवरने में ही व्यस्त रहती है, उनके पास जरा भी समय नहीं है कि दोनों कभी रसोई में तो चले जाएं, दोनों केवल घर में  शो-पीस की तरह है, पर काम को एक भी हाथ नहीं लगाती है। 

कामना जी अपनी बहू की तारीफ कर तो रही है, पर उन्हें पता है वो भी इस तरह की बहू नहीं चाहती थी, पर दोनों बेटों को स्मार्ट लड़की चाहिए थी, जो उन्होंने खुद ही ढूंढ ली। शादी के दूसरे दिन ही जिन्होंने सारे सुहाग चिह्न उतारकर नाइटसूट पहन लिया था, उनको भी अजीब लगा था, उन्होंने टोका, पर उनके टोकते ही बेटे बोल पड़े, मम्मी, ये सब  ओल्ड फैशन है, आजकल की बहूंएं ये सब नहीं पहनती है, अब दोनों बेटे ही बिज़नस संभाल रहे हैं इसलिए घर में ना उनके पति की चलती है और ना ही उनकी चलती हे, बच्चे अपनी मनमानी करते हैं, बेटियां शादी होकर चली गई है।

कामना जी अपनी बहूओं से तो कुछ नहीं कह पाती है,उनका इस तरह कोरे -कोरे रहना उन्हें भी अखरता है, पर क्या करें आजकल की बहूओं से कुछ कहने का जमाना ही नहीं है, उनकी बहू तो त्योहार पर भी सुहाग चिह्न धारण नहीं करती है, सब-कुछ उन्हें ढकोसला ही लगता है,  और वो मन मसोसकर रह जाती है, कैसी आधुनिकता आई है, आजकल की महिलाएं अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों, पहनावे, बनाव श्रृंगार से दूर  होती जा रही है, और जो ये सब चीजें पहनती हैं, उन्हें हेय दृष्टि से देखकर उन्हें गंवार बताया जाता है, उनकी हंसी उड़ाई जाती है। अपनी संस्कृति की रक्षा करने वाली महिलाओं का महिला ही मखौल उड़ाती है, कामना जी अपनी ही सोच में डूबी रहती है, तभी साधना जी की आवाज से वो विचारों से बाहर आती है।

“जीजी, कहां खो गई हो? कब से आवाज लगा रही हूं, शिल्पी चाय रख गई है, पी लीजिए ठंडी हो जायेगी।

“साधना, मुझे माफ कर दें, मैंने तेरी बहू की हंसी उड़ाई, तू तो बहुत किस्मत वाली है जो तुझे ऐसी बहू मिली है, जो तेरी सेवा करती है, घर-परिवार रिश्तों से जुड़ी हुई है, जो साक्षात अन्नपूर्णा है, घर की लक्षमी है, जिसके हाथों में बरकत है, जिसकी पायल की छन-छन से आंगन चहकता है, जिसकी चूड़ियों की खनक मधुर संगीत सी लगती है, जिसकी माथे की बिंदिया घर में उजाले सी दमकती है, और जिसके सिंदूर से पूरे घर में सकारात्मकता सी छाई रहती है, ऐसी बहू तो नसीबों से ही मिलती है।

 ‘शिल्पी रिशते बराबरी वाले में  करने चाहिए पर तुम तो गुणो में हम सबसे भी ऊपर हो, बहू तुम्हारी बराबरी तो कोई नहीं कर सकता है, कामना जी शिल्पी को ढेर सारा आशीर्वाद देकर गई, शिल्पी की सेवा से कुछ ही दिनों में साधना जी पूरी तरह से स्वस्थ हो गई।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

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