बहू से परेशान होकर जब सास पहुंच गई अपने मायके – स्वाती जैंन : Moral stories in hindi

ठंड बहुत बढ़ गई थी , अब सुनैना जी को उम्र अधिक होने के कारण खुद के काम भी नहीं हो पा रहे थे , वैसे भी सुनैना जी दिन भर घर में लगे बर्तनों का अंबार घसती रहती फिर भी बहू उमा उन्हें हर बात पर जलील किया करती !!

उमा दिनभर अपने दोनों बच्चों में व्यस्त रहती !! उमा को तरह तरह के व्यंजन बनाने का बड़ा शौक था !!

यू ट्यूब पर विडियो देख देखकर उमा तरह तरह के पकवान बनाती जो सिर्फ पति और बच्चों तक ही सीमित थे , कभी सुनैना जी को तो चखने तक का आग्रह ना करती , बेचारी सुनेना जी के हिस्से तो सिर्फ बर्तन आते !!

उमा पकवान बनाने में पुरी रसोई गंदी कर देती और बहुत सारे बर्तन सिंक में जमा कर देती जिसे सुनैना जी कामवाली बाई की तरह साफ कर देती मगर अब ठंड में सुनैना जी से भी ज्यादा काम नहीं हो पा रहा था !!

आज रात इतने सारे बर्तन कर सुनैना जी कांप उठी थी क्योंकि असहनीय ठंड पड रही थी !!

सुबह सुनैना जी ने उठकर अपनी चाय बनाई और मन ही मन बुदबुदाई आज कैसे अपने कपड़े धोऊंगी और कैसे बर्तन करूंगी ??

थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि बहू उमा सभी के कपड़े वाशिंग मशीन से निकाल रही थी , उसने सभी के कपड़े मशीन में धोने डाले थे !!

सुनैना जी यह देखकर बोली – बहू  तुम सभी के कपड़े मशीन में धो रही हो  तो मेरे कपड़े भी मशीन में धो देती मशीन में कपड़े अच्छे से धुल जाते और ठंड भी अब असहनीय हो गई हैं , ठंड में मेरे हाथ भी सूज जाते हैं !!

सुनैना जी के मुंह से अभी इतना निकला ही था कि उमा गुस्से में लाल हो गई बुढ़िया तेरी यह मजाल तू मुझे  अपने कपड़े धोने को बोलेगी तेरी नौकर  हूं क्या ???

इतने में उमा अपनी सास सुनैना जी के बाल पकड़कर जोर से खींचकर उन्हें धक्का दे देती है !!

सुनैना जी का सर दीवार से जा टकराया और वह दर्द से कराहती हुई जैसे तैसे दीवार का सहारा लेकर अपने कमरे में चली गई और अपने बिस्तर पर बदहवास होकर गिर पड़ी बिस्तर पर पड़े कब उनकी आंख लग गई उन्हें पता ही ना चला !!

ब करीब दो घंटे बाद उनकी आंखें खुली तो उन्होंने देखा कि उनका मस्तक सूज गया था और उन्हें बहुत दर्द हो रहा था और बहुत समय से कुछ ना खाने के कारण उन्हें बहुत तेज भूख लग रही थी !!

वह उठकर धीरे-धीरे चल कर बहू के पास गई और बोली बहू मुझे बहुत भूख लग रही है थोड़ा खाना दे दो। कल रात से कुछ नहीं खाया बहुत कमजोरी लग रही है !!

बहू उमा किचन में गई और एक बासी सूखी रोटी लेकर आई और उसे जमीन पर फेंकते हुए कहा यह ले बुढ़िया इसे खा ले और उसके बाद जाकर बर्तन साफ कर दे सिंक में बर्तन भरे पड़े हैं सुनैना देवी को भूख इतनी तेज लग रही थी कि अभी उन्हें जो भी मिला वह खा लेती हैं , जल्दी से उन्होंने रोटी का टुकड़ा जमीन से उठाया और अपने कमरे में लेकर चली गई रोटी सूखकर एकदम कड़क हो चुकी थी उनसे खाई नहीं जा रही थी उन्होंने थोड़ा पानी लेकर रोटी को पहले उसमें डुबो दिया फिर जब रोटी थोड़ी नरम हो गई तो उसे पानी से निकालकर खाने लगी सुनैना देवी के दिन ऐसे ही कटने लगे । हर दो-तीन दिन पर एक दो रोटी उन्हें ऐसे ही फेंक कर दे दी जाती !! वह उसे उठाकर ऐसे ही पानी में डूबा डूबा कर खा लेती , उनका शरीर बहुत कमजोर होने लगा था उनकी नज़रें भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगी थी !!

एक तो शरीर की कमजोरी , उपर से घर में हमेशा काम !! उनके हाथ पैरों में अब पहले जैसी ताकत नहीं रही थी कि वे बार बार उठकर बर्तन करें और दूसरी तरफ उमा जो कि हमेशा अपने और बच्चों के लिए स्वादिष्ट पकवान बना बनाकर सिंक में बर्तनों का अंबार जमा करके रखती !!

यदि एक दिन भी सुनैना जी ने घर का काम नहीं किया तो उन्हें बांसी रोटी भी नसीब नहीं होती थी !!

मरता क्या ना करता वाली हालत हो गई थी सुनैना जी की !!

ना किसी से अपनी व्यथा बखान कर सकती थी और ना किसी पर आरोप लगा सकती थी !! मुझ बुढ़िया की अब कौन सुनेगा ??

जिस बेटे को बचपन से इतना प्यार किया , पाला – पोसा जब वो ही अपना ना रहा तो कोई गैर मेरी क्यूं सुनेगा और मेरी क्या ही मदद करेगा ?? सोचकर सुनैना जी आंसुओं के घूंट पीकर रह जाती !!

सुन बुढ़िया , मैं और राकेश बच्चों सहित घूमने जा रहे हैं , रात तक वापस आएंगे , घर का सारा काम कर लेना वर्ना कल तुझे  बांसी रोटी भी नसीब नहीं होगी बोलकर उमा अपना बैग लटकाए घर से बाहर निकल गई !! पीछे पीछे बेटा राकेश भी बच्चो के साथ बाहर चला गया !!

सुनैना जी ने सिंक में पड़े बर्तन के अंबार को साफ किया , कपडे धोए , झाडू पौछा किया और थककर अपने बिस्तर पर निढाल होकर गिर पड़ी !!

शरीर अब साथ नहीं देता था मगर उमा को कहां यह सब दिखाई देता था ?? उसने तो सुनैना जी को बस कामवाली बाई की तरह समझ रखा था !! नहीं कामवाली को भी लोग खाना अच्छा देते होंगे यहा तो उमा सिर्फ सूखी बांसी रोटी के बदले मुझसे इतना काम करवाती हैं और काम करने के बाद झिड़कती हैं सौ अलग , सोचते हुए उनकी आंख से आंसू बह पड़े और  बिस्तर पर पड़े पड़े ही वे चिंतन में डूब गई उनकी बहू उमा उनके साथ ऐसा व्यवहार करेगी इसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं की थी पति के देहांत को अभी चार महीने ही हुए थे अभी तो मैं  पति के जाने के गम से बाहर भी नहीं   आई थी अभी तो मेरे मन की वेदना भी खत्म नहीं हुई थी , अभी तो मुझे प्यार और सहारे की जरूरत थी मगर आज मेरी

बहू ने मेरे साथ ऐसा नीच कर्म किया  सोचते सोचते आंसुओं की धारा उनकी आंखों से लगातार बहती जा रही थी !!

उनके मन में तूफानों की आंधी चल रही थी उनका हृदय मानो अभी रुक जाएगा उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था !!

इस समय उनको इतनी ज्यादा पीड़ा  हो रही थी कि इतनी पीड़ा अगर किसी

पहाड़ को हो जाती तो वह पहाड़ भी

टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाता !!

यह दिन देखने से पहले मैं मर क्यूं नहीं गई बस अब क्या यही दिन देखना बाकी रह गया था ?? बेटा भी अपनी पत्नी का ही साथ देता था यही देखना बाकी था अपनी बहू जिसे बड़े अरमानों से ब्याह कर घर लेकर आई थी उसी के हाथों मार खाओ और बेटा बहू की  इतनी नीच हरकत पर उसे कुछ नहीं कहता !!

काश यह धरती फट जाती और मैं इसमें समा जाती !! अपने पति रामकिशोर जी की तस्वीर को देखकर सुनैना जी बोली आप मुझे छोड़कर क्यों चले गए  ?? काश आपके बदले मैं चली जाती तो आज यह दिन देखना तो नहीं पड़ता !!

सुनैना देवी जी अपने पति राम किशोर जी को याद करके और भी ज्यादा रोने लगती है सुनैना देवी जी अतीत के गलियारे खो जाती हैं …….

जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी

क्या था उनके पास एक मिट्टी का छोटा

सा कच्चा घर !! मैं दिन-रात काम करती

सास ससुर की सेवा के लिए एक पैर

पर खड़ी रहती !!

जब मुझे लाख जतन के बाद भी मां बनने का सुख प्राप्त नहीं हो रहा था , मैंने कितने मंदिरों के चक्कर काटे , कहां कहां जाकर धागे बांधे , बाबा – भगवान दर दर जाकर फरियाद मांगी तब जाकर शादी के सात साल के बाद राकेश का जन्म हुआ था !! कितने लाड और दुलार से उसे पाल पोसकर बड़ा किया अपनी खुशियों की आहुति देकर उसकी जिंदगी को रोशन किया पढ़ाया लिखाया इस काबिल बनाया कि आज अच्छे पद पर अच्छी कंपनी में कार्यरत है और उसी बेटे को आज मां की दो वक्त की रोटी भी बोझ लग रही है , वही बेटा अब मां के पास कभी बैठता तक नहीं , एक ही घर में रहकर खैर खबर तक नहीं लेता और बस पुरे दिन पत्नी की गुलामी में लगा रहता हैं !! सुनैना देवी जी पूरी रात रोती रहती है उनकी आंखें रोते-रोते सूज जाती हैं !!

उन्हें किसी तरह करार नहीं आ रहा था !!

बेटा बहू और पोते पोती सभी रात को घर आ जाते हैं मगर दोपहर से रात और रात से सुबह हो गई थी लेकिन बेटा बहू उनके पास नहीं आए इस बात की उन्हें और भी ज्यादा तकलीफ हो रही थी !!

सुनैना जी सोचने लगी जब इस घर में मेरी कोई कदर ही नहीं तो मैं इस घर में क्यों रह रही हूं ??

मेरी उपस्थिति या अनुपस्थिति से किसी को कुछ फर्क ही नहीं पड़ता !!

मैं एक दिन कमरे से बाहर ना जाऊं तो मेरा हाल पूछने आने वाला कोई नहीं इस घर में !!

सभी के लिए मर मरके काम करती हुं मगर मेरी मौजुदगी का किसी को अहसास नहीं !!

सुनैना जी ने अपने आंसू पोंछे और खड़ी हुई !! बस अब बहुत हुआ , आज कुछ ना कुछ फैसला तो लेना ही पड़ेगा , बहुत कर ली बेटे बहू ने अपनी मनमानी !!

सब कुछ सहन कर रही हुं इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं कुछ कर नहीं सकती !! कल भी तो भैया का फोन आया था बोल रहे थे दो चार दिन यहां आ जा , मन बहल जाएगा तो क्यों ना उनके घर ही चली जाऊ सोचकर सुनैना जी ने एक बैग लिया और उसमें उन्होंने अपने कुछ कपड़े रखे , जमीन और घर के कागजात रखें , जितना भी गहने उनके पास थे अपने बैग में रखे और अपने घर से निकल पडी !!

जब घर से बैग लेकर जा रही थी तो बेटे और बहू ने उन्हें रोकने की कोशिश तक नहीं की सुनैना देवी जी घर से सामान लेकर निकल तो चुकी थी किंतु उनके हृदय में अनेक प्रकार की दुविधा ने

जन्म ले लिया क्योंकि जबसे सुनैना

देवी जी इस घर में बहू बनकर आई थी

तब से कभी भी ऐसे सामान के साथ में

मायके नहीं गई थी !!

ससुराल की जिम्मेदारियों ने सुनैना देवी जी को इस

कदर बांध दिया था कभी ऐसी नौबत ही नहीं आई की समान लेकर मायके जाना पड़े एक रात के लिए राम किशोर जी के साथ अपने मायके जाती थी और वापस उन्हीं के साथ लौट कर आ जाती थी !!

जब सुनैना जी की मां जिंदा थी वह भी बेटी के मायके ना रुकने के कारण खफा हो जाती थी मगर सुनैना जी जब घर और ससुराल की जिम्मेदारियों का पिटारा खोलकर मां के सामने बताती तो मां कहती मेरी बेटी अपने ससुराल की इतनी फिक्र करती हैं मेरे लिए यहीं काफी हैं , देखना तुझे भी तेरे जैसी ही बहू मिलेगी एक दिन !! तुने ससुराल वालों के लिए इतने त्याग किए हैं तो कहीं ना कहीं तुझे भी तो इसके अच्छे परिणाम मिलेंगे सोचकर सुनैना जी की फिर आंखें भर आई और वे मन ही मन बोली ना जाने कौन से जन्म के कर्म नड़ रहे हैं जो ऐसी बहू मिली हैं जो बिल्कुल भी इज्जत नहीं देती !! सुनैना जी का मन विचारों के गोते में लगा ही हुआ था और  हृदय में यह दुविधा भी थी , कल भाई को फोन पर साफ साफ मायके आने से इंकार भी कर चुकी थी मगर बेटे बहू का ऐसा रवैया अब बहुत खलने लगा था और अब सहन करने की शक्ति भी खत्म हो चुकी थी !!

मन में बहुत दुविधा चल रही थी किंतु जाना भी था !! सुनैना जी ने बहुत साहस के साथ भाई के घर में कदम रखा !!

भाई ने दरवाजा खोला। उनके भाई दिनदयाल जी जो पेशे से वकील थे सुनैना देवी जी को देखा तो चौंक गए क्योंकि कल जब उन्होंने सुनैना से घर आने का आग्रह किया था तब सुनैना ने ना कह दिया था और सुनैना जो कभी ऐसे बैग लेकर मायके रहने नहीं आई थी आज कैसे आ गई ??

दिनदियाल जी चौंकते हुए बोले तुम अकेले आई हो , साथ में बेटा नहीं आया सब कुशल मंगल तो है ना बहन। तभी भाभी भी अंदर से आई और अपनी ननद को देखकर प्रसन्न हो गई अरे दीदी आप । कितना अच्छा लग रहा है आपको देखकर दीदी अंदर आईए आप तो वही खड़ी हो गई है !!

हां हां दीदी अंदर आओ !!

सुनैना देवी जी ने अपना सामान एक तरफ रखा और वहीं सोफे पर बैठ गई !!

भाभी ने सुनैना देवी को पानी पिलाया फिर उनके लिए खाना लेने चली गई !!

सुनैना देवी जी के चेहरे पर परेशानी का साया था जो की साफ -साफ दिखाई पड़ रहा था !!

भाई ने पूछा , सुनैना क्या बात है मैंने तुम्हें कभी ऐसे आते हुए नहीं देखा और ना ही कभी तुम इतने सामान के साथ आई हो। सब कुशल मंगल तो है ना कोई बात तो नहीं है ना। सुनैना देवी जी के भाई दिनदयाल जी ने विचार पूर्वक प्रश्न किया। नहीं नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है तुम तो जानते हो रामकिशोर जी के जाने के बाद मैं किसी तरह से संभली हूं उनके रहते किसी भी दिन घर में मायूसी नहीं रही जब देखो

कुछ ना कुछ करते ही रहते थे तो मन

लगा रहता था किंतु अब तो जैसे घर

में मातम पसरा रहने लगा है किसी काम

में मन नहीं लगता है काम तो सारे हो

जाते हैं किंतु वह बात नहीं जो रामकिशोर जी के रहते थी इसलिए कुछ दिन यहां रहने आई हूं सुनैना देवी जी ने दुखी मन से उत्तर दिया !!

हां बहन अच्छा किया तुम्हारा ही घर है जितने दिन रहना है रहो दिनदयाल जी बोले तभी भाभी खाना लेकर आ जाती है सुनैना देवी जी भोजन करती है फिर अपना सामान उठाकर कमरे में चली जाती है सामान रखकर बिस्तर पर बैठ जाती है कुछ देर ख्यालों में डूबी रही फिर बिस्तर पर लेट गई सुनैना देवी को अपनी बहू का व्यवहार बार-बार सामने आकर सता रहा था वह उस दृश्य को भूलना चाहती थी किंतु रह कर याद आ जाता वह दृश्य सुनैना देवी के हृदय पर सैकड़ो वार कर डालें थे उस दृश्य ने , कैसे वह फिर से उस घर में जाएगी जहां उसकी कोई इज्जत ही नहीं !!

वह किसी से कुछ नहीं कहती बस अंदर ही अंदर घुट रही थी !! आंखों से आंसू भी बहने लगते तो साफ कर देती थी , रात की नींद भी उड़ गई थी !!

जबरदस्ती आंखें बंद करती फिर खोल लेती फिर कहीं जाकर आधी रात में जाकर नींद आई !!

अगली सुबह उठकर नाश्ता करके सुनैना जी ने सोचा की आज शायद बेटा बहू पोता पोती कोई तो आएगा मुझे लेने वह प्रतीक्षा में थी कि कोई आएगा तो चली जाऊंगी , आखिर भाई के घर भी तो बोझ नहीं बन सकती , भाभी क्या सोचेगी ??

सुनैना जी दरवाजे की ओर देखती रही !!

देखते-देखते शाम का समय आ गया

सुनैना जी दरवाजे की ओर देखती फिर

कुछ सोचकर रह जाती !!

अब रात का समय हो गया भोजन करके फिर से अपने बिस्तर पर लेट गई और सोच में डूब गई सोचते सोचते नींद में खो गई !!

सुबह सवेरे जागी तो सोचा आज मैं चली जाऊंगी ऐसे ही पंद्रह दिन बीत चुके थे !!

बेटा बहू तो यही सोच रहे थे बुढिया गई बला टली बुढ़िया जाएगी कहां अपने भाई के घर जाकर बैठी होगी कुछ दिन बाद खुद ही लौट कर वापस आ जाएगी और रही बात जायदाद की तो मां है हमारी लेकर कहां जाएगी !!

सब हमारा ही तो है , हमारा हमारे नाम ही करेगी !!

उधर सुनैना जी के भाई दीनदयाल जी को उनके लिए चिंता सताने लगी !!

दिनदयाल जी ने अपनी पत्नी से भी इस बारे में बात की भाभी भी चिंता व्यक्त करने लगी !!

दीनदयाल जी बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे एक दिन उन्होंने सुनैना जी से पूछा आखिर बात क्या है अपने भाई को नहीं बताओगी तो फिर मैं तुम्हारी परेशानी कैसे दूर करूंगा मुझे पता है जरूर अंदर ही अंदर तुम घुट रही हो !!

सुनैना देवी जी अपने भाई के कंधे पर सर रखकर रोने लग गई और उन्हें सारी बात बताई !! दिनदयाल जी ने अपनी बहन को सांत्वना देते हुए कहा जब तेरा भाई जिंदा है तो तू किस बात की फिक्र करती है भाई ने सुनैनादेवी को ढाढस बंधाया !!

सुनैना देवी ने घर और जमीन के कागजात अपने भाई को दिखाए !!

कुछ दिन बाद भाई ने घर और जमीन बेचने की कागजी कार्रवाई पूरी करवाई। घर और जमीन किसी बिल्डर को बेच दी जहां पर वह फ्लैट बनवाने वाले थे घर और जमीन

बेचकर जो पैसे आए उसे उन्होंने अपने घर के पास ही एक छोटा सा घर सुनैना

देवी के नाम से खरीद लिया और बाकी के

पैसे बैंक में सुनैना देवी के नाम से जमा

करवा दिए जो उनके मरने के बाद वह पैसे पास के ही एक वृद्ध आश्रम को दे दी जाएगी !!

बेटे बहु को कोर्ट के तरफ से घर खाली करने

का नोटिस भिजवा दिया गया नोटिस

मिलते ही बेटे बहू के पैर के नीचे की जमीन खिसक गई उनके चेहरे की हवाइयां उड़ गई भागते भागते बेटे बहू अपनी मां के पास पहुंचे आखिरकर

मां के पैरों में गिर गए मां हमें माफ कर

दीजिए हमारे साथ ऐसा मत करिए !!

अब हमसे आगे ऐसी गलती नहीं होगी

चलिए हम सब मिलकर एक साथ रहेंगे !!

बहू भी सुनैना देवी के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगती हैं मां जी मुझे माफ

‘कर दीजिए मैं आपकी खूब सेवा

करूंगी !!

सुनैना देवी ने कहा वह तो

रामकिशोर जी सब मेरे नाम कर गए

थे इसलिए आज मैं यहां खड़ी भी हूं

नहीं तो तुम लोगों ने तो मुझे जीते जी

मार ही डाला था तुम लोगों ने जब मेरी

सुध ना ली तो अब मैं क्यों तुम्हारी सुनु !! एक मां तुम्हें क्षमा कर भी दे लेकिन ये एक विधवा बूढी औरत तुम्हें क्षमा नहीं करेगी तुम लोगों ने इतने दुख दर्द दिए इतने घाव दिए हैं कि यह मोम जैसा दिल पत्थर बन चुका है जो दर्द मैं सह चुकी हूं उसका बदला तुम कभी भी नहीं उतार सकते इसलिए तुम्हारी यही सजा है अब कहीं भी जाकर रहो अब आगे की जिंदगी मुझे सुख शांति और चैन से जीनी है इतना कहकर सुनैना देवी अपने घर में चली गई !!

यह सुनैना जी का अंतिम फैसला था !!

बेटे बहु मुंह लटकाए खड़े के खड़े देखते रह गए…

दोस्तों , आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करें !!

आपकी सहेली

स्वाती जैंन

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