पति का फैसला – के कामेश्वरी: Moral stories in hindi

सविता अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी । पिता सरकारी कर्मचारी थे इसलिए बहुत ही लाड़ प्यार से उसका पालन पोषण किया गया था ।

जैसे ही सविता की पढ़ाई पूरी हुई उन्होंने रितिक से उसकी शादी तय कर दी थी । रितिक खुद भी अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था । वे गाँव में खेतीबाड़ी का काम करते थे । उसी व्यवसाय के बल पर ही उन्होंने रितिक को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था ।

रितिक माता-पिता के साथ गाँव में ही बस जाना चाहता था । सविता शादी करके गाँव पहुँची यहाँ उसका दिल नहीं लगता था । उसने रितिक को समझाया कि आपका ऑफिस यहाँ से दूर है हम शहर में शिफ़्ट हो जाते हैं । कल को हमारे बच्चे हुए तो भी हम वहीं पर के अच्छे स्कूलों में जॉइन कर सकते हैं ।

रितिक उसकी बातों में आ गया था और शहर में शिफ़्ट होने के लिए तैयार हो गया था । माता-पिता ने भी बेटे की भलाई के लिए बेमन से उसे अलग रहने की इजाज़त दे दी थी । रितिक साल में दो चार चक्कर लगा ही लेता था । उसके दो बच्चे हुए उन्हें भी वह गाँव लेकर आता था और घुमा फिराकर ले जाता था ।

एक दिन रितिक के पिता रामदेव शहर अपने बेटे के घर पहुँचे । दोपहर का समय था इतनी धूप में ससुर जी को आया हुआ देख सविता को लगा था कि जरूर वे पैसे या रितिक से कुछ मदद माँगने आए हैं । इसलिए उसने उन्हें बाहर ही बिठाकर अपने दुखड़ों का पिटारा खोल दिया था कि हमारे पास पैसे नहीं हैं बहुत ही तकलीफ़ में है।

एक अकेले व्यक्ति को इस शहर में इतने लोगों का खर्चा और बच्चों की फीस भरने में कमर तोड़ मेहनत करनी पड़ती है । उन्हें तो दो वक़्त की रोटी सुकून से खाने को भी नहीं मिलता है ।

ससुर रामदेव को बहुत बुरा लगता है कि उनका इकलौता बेटा इतनी तकलीफ़ों को अकेले झेल रहा है एक बार हमसे कहकर देखता । वैसे भी रामदेव रितिक को हर साल फसल से आया हुआ पैसा यह कहकर देते थे कि हम तो वहाँ दोनों ही रहते हैं बेटा तुम्हें पैसों की ज़्यादा ज़रूरत होती होगी । आज भी वे पैसे माँगने नहीं आए थे । उन्होंने अपने कपड़े की थैली में से पेपर लपेट में कर रखा हुआ एक पैकेट निकाल कर बहू के हाथ में रखते हुए कहा कि इस बार फसल अच्छी हुई है तो एक लाख रुपये बचे हैं । इन्हें आप लोग खर्च कर लीजिए ।

सविता ने पेकेट उनके हाथ से झट से ले लिया परंतु उन्हें खाने के लिए भी नहीं पूछा।

रामदेव बिना बेटे से मिले ही वापस गाँव चले गए थे ।

रामपाल जब घर पहुँचे तो पत्नी सुवर्णा ने कहा कि अरे आप आज ही आ गए हैं आपको डॉक्टर के पास जाना था । रितिक से मिले थे कि नहीं उसने क्या कहा आदि प्रश्न पूछने लगी ।

रामपाल ने कहा कि सुवर्णा मुझे भूख लगी है खाना परोस देना । सुवर्णा हैरान हो गई यह क्या कह रहे हैं आप खाना खाकर नहीं आए हैं । सविता ने खाना नहीं खिलाया है ।

रामपाल ने कहा कुछ नहीं सीधे खाना खाकर जाकर सो गए थे ।

सुवर्णा दूसरे दिन सुबह रामपाल को उठाने पहुँची तो रामपाल कभी ना उठने वाली नींद में सो गए थे । सविता ने रोते हुए रितिक को खबर कर दी । रितिक जल्दी से गाँव पहुँच गया । सविता ने कहा कि मैं बाद में बच्चों को लेकर आ जाऊँगी ।

रितिक घर पहुँचा तो और उसने कहा कि पिताजी की पहले से ही तबियत ख़राब थी क्या ? माँ आपने तो कभी नहीं बताया मुझे?

सुवर्णा ने रितिक को बताया था कि कल तुम्हारे पिताजी तुम्हारे घर गए थे कि एक बार डॉक्टर को दिखाकर आ जाता हूँ । वहाँ क्या हुआ मुझे नहीं मालूम है पर आते ही कहने लगे थे कि भूख लग रही है जल्दी से खाना खिला दे और खाना खाते ही सो गए थे और सुबह उठे ही नहीं ।

रितिक को आश्चर्य हुआ था कि सविता ने उसे पिता के आने की ख़बर तो दी थी पर सिर्फ़ यही बताया था कि वे आए पैसे देकर बिना खाए पिए काम का बहाना बनाकर चले गए थे ।

माँ की बात सुनकर उसे बुरा लगा कि वह पिता से मिलकर उनका इलाज नहीं करवा सका है । सविता भी अपने बच्चों के साथ गाँव में आ गई थी । जब सब लोग चले गए थे तो रितिक भी परिवार को साथ लेकर निकल रहा था तो सविता ने सोचा कि बेटा मुझे भी अपने साथ ले जाएगा । लेकिन उसने एक बार भी नहीं कहा कि माँ हमारे साथ चल ।

उसका भी कारण था कि सविता ने रितिक से कह दिया था कि माँ को यहीं रहने देंगे क्योंकि वहाँ वह बोर हो जाएगी यहाँ सब पहचान के लोग रहते हैं । इतना बड़ा घर है इसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकते हैं ना ।

रितिक को भी लगा कि वह सही कह रही है माँ यहाँ रहे तो ही ज़्यादा अच्छा रहेगा यह सोच माँ को अकेले छोड़ कर चले गए ।

सुवर्णा का पूरा घर ख़ाली हो गया था पति के साथ ही उसकी हिम्मत भी चली गई थी । खेतों में वह काम नहीं कर पाती है थोड़े से काम से ही थक जाती थी ।

रितिक साल में एक बार अपने परिवार के साथ माँ को देखने गाँव जाता था । हफ़्ते में एक बार फोन करता था । लेकिन अब उसने फ़ोन करना भी बंद कर दिया था ।

एक दिन सुवर्णा ने ही फोन किया और रितिक से कहा बेटा मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तुम्हारे और बच्चों के साथ रहूँगी तो मेरा मन बहल जाएगा ।

रितिक ने कहा कि माँ इतना बोलने की ज़रूरत नहीं है मैं आज ही आ रहा हूँ आपको अपने साथ ले आऊँगा ।

अभी वह कुछ और कहता इसके पहले ही सविता ने उसके हाथ से फोन खींच लिया और कहा कि माँ आप वहाँ रहेंगी तो ही अच्छा रहेगा यहाँ छोटा सा घर है ऊपर से पूरे घर में टाइल्स लगे हुए हैं कहीं आप फिसलकर गिर गई तो लेने के देने पड़ जाएँगे ।  मेरी बात मानकर आप वहीं रहिए हम लोग ही आते जाते रहेंगे ।

रितिक ने सविता को डाँटा फिर भी वह अपनी बात पर अड़ी रही । माँ ने उसे समझाया कि बहू के साथ लड़ाई मत कर मुझे कितने दिन जीना है आज नहीं तो कल तुम्हारे पिता के पास मुझे जाना ही पड़ेगा ।

सुवर्णा को अकेले रहते हुए ज़्यादा दिन नहीं हुए थे और वह अपने पति ढूँढते हुए उनके पास चली गई थी ।

कहते हैं ना कि ऊँट भी करवट बदलता है उसी प्रकार से अब सविता की माँ की तबियत ठीक नहीं थी । सविता के पिताजी के आकस्मिक निधन के बाद वे बहुत ही अकेली पड़ गई थी और बिना किसी के सहारे के वे कुछ भी काम नहीं कर पा रहीं थीं ।

वे बार बार कहती थी कि सविता अपने साथ मुझे लेजा अकेले जी नहीं लग रहा है।

सविता किस मुँह से रितिक से पूछेगी कि मैं अपनी माँ को ले आऊँ क्या ? क्योंकि सास भी इसी हालत में थीं तो उन्हें उसने ही आने नहीं दिया था ।

इसी उधेड़बुन में वह बेचैन रहने लगी थी । इस परेशानी ने उसकी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया था । माँ का फोन आते ही उसे डर लगता था कि उससे क्या कहूँ । वह फ़ैसला नहीं ले पा रही थी । उसके हाथों से कई ग़लतियाँ होने लगी थी । बच्चे भी कहने लगे थे कि क्या माँ आजकल आपका ध्यान कहाँ रहता है कभी सब्ज़ी तो कभी रोटी जला रही हैं पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ है ।

उस दिन रितिक सुबह ही घर से बाहर निकल गए थे । सविता ने बेमन से घर के सारे काम किए बच्चे भी स्कूल कॉलेज के लिए चले गए थे तो अकेले ही आँखें मूँदकर कमरे में लेटी हुई थी तभी डोर बेल बजी तो धीरे से उठकर वह दरवाज़ा खोलने गई । दरवाज़ा खोलते ही देखा कि रितिक माँ को लेकर खड़े हुए थे । उन्हें देखते ही सविता की आँखों से पश्चाताप के आँसू बह रहे थे ।

रितिक ने कहा कि सविता बिना तुमसे पूछे ही मैंने फ़ैसला कर लिया है कि पहली वाली गलती अब मुझे नहीं दोहराना है । मैं जानता हूँ कि लोग मुझे ज़रूर ताने देंगे कि माँ को तो आने नहीं दिया लेकिन सास को ले आया है ।

कोई बात नहीं है जब गलती मेरी है तो मुझे सुनना ही पड़ेगा । मेरे इस फ़ैसले पर खुश होकर ऊपर से मेरी माँ मुझे आशीर्वाद जरूर देगी ।

सविता के सामने चुप्पी के अलावा कोई विकल्प नहीं था ।

दोस्तों हम यह क्यों भूल जाते हैं कि सबके माता-पिता एक जैसे ही होते हैं । वे हमसे सिर्फ़ प्यार के दो मीठे बोल चाहते हैं और कुछ नहीं जिसके लिए हमें करोड़ों खर्च करने की ज़रूरत नहीं है ।

के कामेश्वरी

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