बहू की मां (भाग 1)- शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : तीस वर्षों से साथ रहते-रहते कब मेरी शक्ल भी उनके जैसी हो गई पता ही नहीं चला।ब्याह भी तो उन्हें ही पसंद कर किया था।मां को तो लड़के को देखकर उसमें अपने दामाद बनने लायक कोई गुण नहीं मिले थे।साफ -साफ कह दिया था उन्होंने मुझसे,कि शादी ना करूं मैं।मुझे भी ठीक-ठाक ही लगे थे अपने पति। जबरदस्ती भी नहीं की किसी ने,पर मैंने अपनी मन की मानकर इस घर में ब्याह कर लिया।

मन में कभी संदेह भी नहीं हुआ‌ कि कैसा परिवार होगा?व्यवहार सबका कैसा होगा?पति तो अकड़ू और गुस्सैल थे ही,मैं भी घर की बड़ी कमाऊ बेटी थी।मेरे गुस्से से पूरा मोहल्ला डरता था। ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों को,उनके माता-पिता मेरे नाम से डराकर अपनी बात मनवाते थे।मेरी मम्मी कहती कभी-कभी “इतना गुस्सा‌ ठीक नहीं है, ससुराल में कैसे निभाओगी प्रज्ञा?”और प्रज्ञा हंसकर कहती”,सास को भी आंख दिखाऊंगी,और क्या।

ससुराल में आकर नए परिवेश में ढलने में ही दो -तीन साल लग गए।ननदों-ननदोइयों को खुश रखो,पति को खुश रखो,ससुर को समय पर खाना दो,बच्चों के प्रति अपना दायित्व निभाओ।गोया कि दूसरों के बारे में सोचते ही दिन और रात निकलने लगे।बस एक इंसान थीं इस घर में,जिसकी कोई मांग ही नहीं थी,अलग से।जिसे इस बात की पूरी चिंता रहती थी कि ,मैंने खाना खाया या नहीं।जो अपने बेटे से लड़ जाती थी,मेरे लिए।

समय के चक्र के हिसाब से अपने आप को व्यवस्थित करने में समय तो लगा।जब भी मन दुखी होता, गुमसुम हो जाती थी मैं(शायद तभी चुप होती थी),।वो बड़े प्यार से सर पर हांथ फेर कहती”जा,मायके हो आ,बड़े दिन हो गए हैं तुम्हें गए।मां , भाई-बहनों की याद तो आती होगी।”पता नहीं कौन सा सांकेतिक संयंत्र था उनकी आंखों में,जो मेरे मन का सब समझ जातीं थीं।

मैंने एक बार पूछा था उनसे”तुमने तो मुझे बस एक बार देखा था ,बुआ के घर पर।तुमने ये फैसला कैसे इतनी जल्दी ले लिया कि बहू बनाना है।तुमने तो पूछा भी नहीं कि खाना बनाना आता है कि नहीं,घर के काम आते हैं या नहीं।”वह भी बड़ी शातिर खिलाड़ी थी,झट से बोली”,मेरी अनुभवी आंखों ने तुम्हारी हांथ की नसें निकली देखीं थीं।पता लग गया था मुझे कि घर के काम करती होगी।जब मैंने मिठाई तुम्हारे हांथ में दी,तो पसंद ना होने पर भी जैसे तुमने हांथ में मिठाई लेकर करुण नजरों से देखा मुझे,मैंने तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखों में पति के लिए प्रेम, सास-ससुर के लिए सम्मान और अपने लिए आत्मसम्मान देखा।बस तभी मैंने शादी तय कर दी।”

 

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