बहू भी औलाद है – शुभ्रा बैनर्जी 

बचपन में एक कहावत सुनी थी कि एक आंगन से उखाड़ कर दूसरे आंगन में लगाया गया पेड़ कभी जीवित नहीं बचता।मेरा मन कभी नहीं स्वीकारा इस सत्य को।कितने ही पेड़ पड़ोस के घर से मांगकर लाती रही और लगाती रही थी मैं। सकारात्मक सोच की धूप और प्रेम के पानी से सभी आज जिंदा … Read more

आखिर मुखौटा उतर ही गया – शुभ्रा बैनर्जी

नंदिनी काफी दिनों से विवेक को तलाश रही थी।बहुत मुश्किल से जब पता मिला तो नंदिनी मिलने के लिए पहुंची आफिस।आलीशान बिल्डिंग थी ।नंदिनी आफिस से उनकी व्यक्तिगत जिंदगी की खुशहाली देख सकती थी।दूर से देखकर नंदिनी ने विवेक को पहचान लिया था।बस अब उससे मिलने की जरूरत नहीं। विवेक को देखते ही नंदिनी अपने … Read more

अमूल्य सहारा – शुभ्रा बैनर्जी 

आज प्राची को दादा -दादी के आशीर्वाद की महिमा ज्ञात हुई।दोनों हांथ जोड़कर आसमान की ओर देखकर दिल से प्रणाम किया उसने दोनों को।बचपन से ही बहुत लाड़ली थी वो दोनों की।दादाजी की गोद में टंगकर कहां – कहां नहीं घूमी थी।चलना सीख जाने पर दादाजी की उंगली पकड़ कर हर जगह जाती थी वो,चाहे … Read more

भरोसे की जीत – शुभ्रा बनर्जी

प्रतिमा अपनी बेटी प्रिया के साथ सहमते हुए कैब से उतर रही थी।एक अनजाना डर भी उसे सता रहा था।कैसा होगा कार्यक्रम?,इतना बड़ा होटल है,यही है ना पता?हां बच्चों से आज ही तो बात भी हुई थी। फिर क्यूं इतना डर लग रहा है मुझे?शायद अपनी संतान और बच्चों के बीच समन्वय की शंका है … Read more

पहले करवा चौथ का नया चांद – शुभ्रा बनर्जी

आज शुभदा बहुत उत्साहित थी।और हो भी क्यों नहीं?कल बहू का पहला करवाचौथ है।जैसा उसने चाहा था,सुरभि तो उससे भी बढ़कर खूबसूरत है।शालीन है।कितना ख्याल रखती है उसका।यही सोचते सोचते कब आंख लग गई,पता भी नहीं चला। मां! मां! शुभदा हड़बड़ाकर उठ गई।क्या हुआ बेटा? कुछ नहीं मां,सुरभि उसके गले में झूलती हुई बोली।अभी आपके … Read more

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