औकात दिख गई – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

अरे जीजी… अच्छा हुआ तुम सभी आ गए… अब मैं बहू को इस शादी की जिम्मेदारी देकर निश्चित हो पाऊंगी… मैं बता नहीं सकती जीजी… मुझे कितनी शांति मिली, तुम सबके आ जाने से… माया जी ने अपनी बड़ी बहन शोभा के परिवार से कहा… 

माया जी की बेटी गौरी की शादी थी… जिसमें उनकी बड़ी बहन शोभा जी, अपने पति नवीन जी, बेटा अनमोल और उसकी पत्नी आस्था अभी-अभी आए थे और माया जी उन्हीं से यह सब कह रही थी…

 शोभा जी:   अरे माया अब तो तुम्हारी बहू भी आ गई है… फिर मेरी बहू का क्या काम…?

माया जी:  जीजी… कैसी बातें कर रही हो..? तुमसे कुछ छुपा है क्या..? तुम्हें तो पता ही है किस खानदान से आई है… अरे वह तो कार्तिक की पसंद थी वरना इसकी तो औकात हमारे सामने खड़े होने की भी नहीं है… मैंने तो इससे गौरी के गहने और सारी खरीदारी की जिक्र भी नहीं की… क्या पता यह सब देखकर उसके मन में कब लालच जग जाए और फिर कुछ गायब कर मेरे ऊपर ही बिजली गिरा दे…. आखिर जिस चीज को जिंदगी में कभी ना देखा हो उसके लिए मन में लालच तो हो सकता है ना..? 

शोभा जी:   देखो आस्था… तुम्हारी मासी को तुमसे कितनी उम्मीद है… तो अब इनको शिकायत का कोई मौका मत देना… आस्था अपनी सास के इस बात पर इतराकर कहती है.. चिंता मत कीजिए मम्मी जी… मैं कोई ऐसे वैसे खानदान से नहीं हूं… तो मुझे अच्छे से पता है कि कहां क्या करना चाहिए..? मुझे कुछ बताने की जरूरत नहीं… आप तो मौसी जी बस अब आराम कीजिए… मैं सब संभाल लूंगी

माया जी की बहू अनोखी एक गरीब घर की बेटी थी… उसके पापा बचपन में ही गुजर गए थे, तो मां के साथ गरीबी में ही पली बढ़ी… छात्रवृत्ति पाकर वह जिस कॉलेज में पढ़ रही थी वहीं से कार्तिक से उसकी मुलाकात हुई और फिर यह रिश्ता आगे बढ़कर शादी तक पहुंच गया… यूं तो कार्तिक को उसके गरीबी से कोई फर्क नहीं पड़ता था, पर माया जी कभी भी अनोखी को अपनी बहू मान ना सकी, उसे तो हर वक्त यही लगता कि अपने गरीबी से छुटकारा पाने के लिए ही उसने कार्तिक को अपने चंगुल में फसाया… इसलिए जब माया जी की बेटी गौरी की शादी की बात चली, माया जी ने कभी भी अनोखी को किसी भी मामले में शामिल नहीं किया… पर अनोखी अपनी जिम्मेदारी से कभी भी पीछे नहीं हटी… यहां तक की गौरी की शादी में भले ही उसे कोई महत्वपूर्ण काम नहीं दिया गया, पर घर की साफ सफाई, साज सजावट और मेहमानों के आवभगत में वह दिन भर भाग दौड़ कर रही थी… तभी शोभा जी ने उसे आवाज लगाते हुए कहा… अनोखी हम सफर से थक कर आए हैं… सबसे पहले जाकर हमारे लिए चाय नाश्ता लेकर आओ और हां अब से हर काम आस्था से पूछ कर करना…

अनोखी बड़ी ही विनम्रता के साथ रसोई में चाय नाश्ता बनाने चली गई… फिर जब वह चाय नाश्ता बनाकर ले आई, तो शोभा जी ने कहा… वह क्या है ना अभी आस्था तुम्हें कुछ कपड़े निकाल कर देगी उसे धोकर सुखा देना और फिर प्रेस करके हमारे कमरे में रख जाना… अनोखी शोभा जी के इस बात से बड़ी हैरान हो गई, क्योंकि शादी घर के अनेकों काम वह पहले से ही कर रही थी, पर यह सब तो आते ही हुकुम चलाने लगे… माया जी यह सब सुनकर भी खामोश थी… खैर अनोखी चली गई काम करने, फिर थोड़ी देर बाद उसे फिर से चाय की फरमाइश मिली और जब वह सबके लिए चाय लेकर गई तो उसे सब की आवाज माया जी के कमरे से आती हुई मिली… उसके मन में कोई पाप नहीं था, वह चाय लेकर सीधा उस कमरे में घुस गई, जहां माया जी गौरी की शादी के सारे गहने और कपड़े अपने बहन और उसके परिवार को दिखा रही थी… पर जैसे ही वह कमरे में घुसी सब ऐसे सहम कर सारे सामानों को छुपाने लगे मानो वह कोई चोर या डाकू हो… तभी शोभा जी कहती हैं.. सच कहती थी तुम माया.. इसे कुछ भी नहीं पता… क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता के बड़ों के कमरों में आने से पहले दरवाजे पर दस्तक देते हैं..?

माया जी:  मेरे तो भाग फूट हैं जीजी… अब यहां क्यों खड़ी हो..? जाओ यहां से… उसके बाद अनोखी वहां से चली गई…उसके दिल में टीस सी लगी क्योंकि आज उसे एक चोर समझा गया और उसने मन में ठाना के गौरी के विदाई के बाद ही वह अब कमरे से बाहर आएगी… इधर माया जी ने भी अलमारी की चाबी आस्था को देखकर कहा… बहू अब तुम्हें ही यह सब कुछ संभालना है… एक बार गौरी की विदाई हो जाए… फिर मैं भी चैन की सांस लूं…

शादी वाले दिन सुबह-सुबह घर में शोर शराबा मचा हुआ था, क्योंकि गौरी की शादी वाली अंगूठी कहीं मिल नहीं रही थी, तो इस पर माया जी आस्था से पूछती है.. बहु चाबी तो तुम्हारे पास ही थी… फिर यह अंगूठी कहां गई..?

 आस्था:   अब मुझे क्या पता मौसी जी… जाकर अपनी बहू से पूछिए, क्योंकि ऐसी हरकत उसके अलावा और कर ही कौन सकता है..?

आस्था की ऐसी बातें सुनकर कार्तिक कहता है… यह क्या कह रही हो भाभी..? अनोखी अपने ही घर में चोरी करेगी क्या..? होश में तो हो आप और मम्मी चाबी आपके पास न होकर भाभी के पास क्यों है..?

शोभा जी:   बेटा.. देख तू हमें गलत मत समझना… तेरी मम्मी से ज्यादा दौड़ भाग नहीं होती… इसलिए उसने चाबी आस्था को संभालने को दिया था… क्योंकि अनोखी को इन सब की आदत नहीं है ना..?

 कार्तिक:   मम्मी.. आप अपनी ही बहू के साथ यह सब कैसे कर सकती हैं.. तभी वह अपने कमरे से बाहर नहीं आ रही और मैंने उसे पता नहीं क्या-क्या सुना दिया..? पर फिर भी उसने आपके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा…

शोभा जी:   हां तो क्यों कहती…? उसके इरादे तो अब दिख ही गए ना और बुरा मत मानना बेटा… तुम तो उसे ब्याह कर ले आए.. ना आग देखा ना पीछा… अब उसकी औकात जितनी है उससे कहीं ज्यादा मिला है उसे इस घर में, तो फिर वह किसी की खिलाफ क्यों कुछ कहेगी..?

कार्तिक:   मम्मी… आप भी ऐसा ही सोचती हो अनोखी के बारे में..?

 माया जी:   इसमें सोचना समझना क्या है बेटा..? अब अनोखी लाख कोशिश कर ले पर हमारी बराबरी तो नहीं कर सकती ना..? खैर यह सब छोड़… अंगूठी के बारे में सोच… तभी वहां घर में सफाई करने वाली दौड़ती हुई आती है और कहती है… यह देखो मालकिन यह अंगूठी मुझे आपके पलंग के नीचे झाड़ू लगाते हुए मिली… लगता है कल रखते वक्त गिर गई होगी और जिसने रखा उसने यह ध्यान ही नहीं दिया कि डिब्बा खाली है या भरा… सफाई वाले की इस बात से सभी की नजरे आस्था की ओर गई और आस्था एकदम से चीख पड़ी अपनी सास पर, यह सब क्या है मम्मी जी..? मैं यहां शादी घर के मजे लेने आई थी या चौकीदार बनने..? जब से आई हूं यह करो वह करो… परेशान ही कर दिया है… मैं अनोखी नहीं हूं जो आप अपनी बेइज्जती चुपचाप सहू… मैं तो चली घर, आप रहो यहां और बनो चौकीदार… यह कहकर आस्था वहां से चली गई… 

तभी कार्तिक माया जी से कहता है… पता है मम्मी आज जिसकी औकात की आप बात कर रही है ना..? उसे मिला था मौका अपनी औकात बदलने का… पर उसने उसे वक्त अपने परिवार के लिए यह मौका छोड़ दिया… उसने यूपीएससी की लिखित परीक्षा शादी के पहले ही पास कर ली थी और जिस दिन उसका इंटरव्यू था, आपको दिल का दौर आया था और मैं उस वक्त शहर में नहीं था… उसे आपको अस्पताल ले जाना पड़ा… मैंने उसे कहा भी था कि चली जाए किसी को रखकर, पर क्योंकि मैं शहर में नहीं था उसे और किसी पर भरोसा नहीं था… वह आपको छोड़ जाने के लिए बिल्कुल भी राजी नहीं हुई और आज यूं सबके ताने सुन रही है… मम्मी अनोखी गरीब परिवार से बेशक है.. पर दिल की बहुत अमीर है जो आप कभी देखा नहीं पाई…

 शोभा जी:   माया मैंने तुमसे एक बात छुपाई… क्योंकि आस्था बड़े घर से है तो उसमें दूसरों के प्रति हीन भावना भरी हुई है… अरे उसने तो आज तक मुझे एक कप चाय भी नहीं पिलाई… पर अंधे समाज को यह सब कहां दिखता है..? दिखता है तो बस पैसा जो आज अनोखी की बात सुनी तो समझ आया के पैसों से हम अपनी औकात तो बढ़ा सकते हैं… पर वही पैसे हमारी असली औकात भी बता देती है… अनोखी सच में अनोखी है  

माया जी निशब्द थी और उनके आंखों से आंसुओं की धारा बहती जा रही थी… तभी गौरी अनोखी को वहां लेकर आ जाती है और अनोखी को देखकर माया जी कुछ कह तो नहीं पाती, बस हाथ जोड़ उसे माफी मांगने लगती हैं… जिससे अनोखी भी रोने लग जाती है और यह सब देखकर गौरी कहती है… बस बस अभी सब आंसू बहा देंगे तो मेरी विदाई में तो सूखा पड़ जाएगा ना..? गंभीर माहौल गौरी की बात से थोड़ा खुशनुमा और हल्का हो जाता है…

धन्यवाद 

#औकात

रोनिता कुंडु

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!