आत्मसम्मान – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

 

जवाब न देना सम्मान था पर खुद के हक के लिए लड़ना आत्मसम्मान हां आत्मसम्मान,यही तो कह गए थे बाबा कि बेटा सब कुछ सहना पर आत्मसम्मान पर आंच आए तो एंडी चोटी का जोर लगाकर सच साबित कर देना ,ताकी आगे से कोई उंगली उठाने की हिम्मत न करें।वरना ,तुम नहीं जानती अबला ,बेचारी कह कह के लोग तेरा जीना हराम  कर देंगें।

तुझे नहीं पता ये शब्द स्त्री को कैसे भीतर तक उम्र भर ऐसे सालते हैं  कि वो खुद भी नहीं जानती और जब जानती है तो वक्त हथौड़ी पीटकर हंस रहा होता है क्योंकि वो उस वक्त खुद को इस पुरुष प्रधान समाज में उसके बनाए वसूलों के हत्थे चढ़ चुकी होती है।

क्योंकि जब वो अचानक उसे इस रिश्तों और अपनों से भरी दुनिया में अकेला छोड़कर चला गया होता है या गृहस्थी बसा तो लेता है पर बंद के रहना नहीं चाहता है मतलब अपनी जिम्मेदारियों से मुंह चुराता है ,ऐसे में  वहीं अपने और रिश्तेदार लोग उसको संभालने की जगह तरह तरह के आरोप लगा के अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

फिर वो अकेली इस दुनिया से अनाथ बच्चों को लेकर लड़ती है।सब कुछ पीछे ढकेलकर पहले खुद को काबिल बनाती है फिर उसी काबिलियत से चार पैसे कमाकर बच्चों के लिए निवाले की व्यवस्था करती है ।और उससे बचता है तब कपड़े पर नज़र डालती है उससे बचता है तो पढ़ाई करती है।

ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण होता है बच्चों की सही परवरिश के साथ उच्च शिक्षा दिलाना।

जिससे उसकी तरह वो भी दर दर की ठोकर न खाएं।

और जब दौड़ धूप के बाद बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं ,तो वहीं अपने और रिश्तेदार लोग कहते हैं।

वाह!

कैसे आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए खुद को खड़ा किया फिर बच्चों को।

धन्य है तू नारी।

तू ही ऐसा कर सकती है।

धैर्य और सहनशक्ति तो तुझमें कूट कूट के भरी है।

पुरुष तो पल भर भी बिन नारी के नहीं रह सकता।

चिता की आग ठंडी भी नहीं होती कि बच्चों की परवरिश,बिखरी गृहस्थी का भार,जैसे तमाम चिंताओं से ग्रसित हो दूसरे ब्याह की सोचने लगता है।

वहीं तू अकेले रहने खुद को लायक बना के दुनिया से से लड़के सब कुछ संभालने और जिंदगी अकेले बिताने का मांदा रखती है। बहुत कुछ खोती है तब जाके कुछ पाती है।

यूं ही नहीं आत्मसम्मान की अधिकारी होती।

रवि के बेवफा होने के बाद रेखा घबराई नहीं बल्कि बाबा की बचपन में सुनी बातों को जो अब तक संभालकर रखा था।

उसे जीवन में उतार आत्मसम्मान से जीवन जीने की तरफ बिना झुंझलाए खुद को खींच लिया।

 

प्रतियोगिता हेतु 

 

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

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