अपशगुन – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सॉरी दीदी……सॉरी .. …सॉरी …सॉरी कहते कहते अलका ने जेठानी आभा की साड़ी पकड़कर हाथ से मसलते हुए….. लगी एक छोटी सी चिंगारी को बुझाने की कोशिश की…..!

दरअसल तीज पूजा करते समय तीनों देवरानी जेठानी पास पास बैठी थी….. पंडित जी के कहने पर अगरबत्ती जला कर…. उसके लौ को बुझाने की कोशिश में …..अलका ने हाथ हिलाया ….और अगरबत्ती की एक चिंगारी ….बगल में बैठी जेठानी आभा के साड़ी के ऊपर जा गिरी….. उसका सॉरी बोलते बोलते … आत्मग्लानि से खुद ही बुरा हाल हुआ जा रहा था….।

अलका झेंप के कारण रुआँसी हो गई थी… बस खुलकर रोना ही बाकी रह गया था…।

साड़ी थोड़ी सी जल गई थी…. तीज की नई नई साड़ी ……जेठानी को क्या बुरा लगता…… खुद अलका के शरीर में काटो तो खून नहीं ……डरी सहमी दयनीय स्थिति वाली मुंह बनाते हुए जेठानी के साड़ी को हाथों में पकड़ी हुई थी….।

सामने सासू मां बैठी थी….. माजरा देखकर , माहौल को अंधविश्वास का जामा पहनाते हुए… दोनों हाथ जोड़कर भगवान के सामने बार-बार क्षमा याचना मांगते हुए कहने लगी……. हे भगवान ये कैसा संकेत है…. कहीं कुछ अशुभ तो नहीं होने वाला है ना…. अलका के हाथों यह अपशगुन कैसे हो गया….।

मेरे बेटे को सलामत रखना….. लंबी उम्र देना …..माफ करना भगवान…. कृपा बनाए रखना …..ये जलना शुभ संकेत नहीं होता है….।

ना जाने ऐसी कितनी संशय भरी बातें करते हुए …..अलका को ऐसी नजरों से देख रही थी….. जैसे मानो उसने जानबूझकर कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो …..।

अलका सोच रही थी…. काश…. मेरी भी मनः स्थिति सासू मां को समझ में आती….। मैंने सोच समझकर या जानबूझकर तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कुछ घर में अनहोनी हो….. फिर गुनाहगार मुझे क्यों समझ रही हैं…।

नई नई साड़ी जल गई ..ये तो बुरा हुआ….. पर इसे शुभ अशुभ का संकेत मानना कहां तक उचित है…।

वाकई में डर तो अलका भी गई थी जेठ जी हमेशा बीमार ही रहते थे…. भगवान ना करें उन्हें कुछ हो ….! अगर कुछ हो गया…. चाहे जिस भी कारण से हो …..सारा दोष अलका के ऊपर ही आएगा ……।

खैर… पूजा समाप्त हुआ शुरू के हफ्ते….. दस दिन ….तो सभी लोग यही वाक्या दोहराते रहे ….धीरे-धीरे इस प्रसंग का व्याख्यान कम होने लगा….।

हालांकि अलका इन बातों में ज्यादा विश्वास नहीं करती थी ….उसे लगा था…. असावधानी का ही ये परिणाम था ……फिर भी वो पूरे वर्ष भर भगवान के सामने जेठ जी व पूरे परिवार के लिए कुशल क्षेम की प्रार्थना करती रही….।

धीरे-धीरे पूरा वर्ष बीत गया…. सब कुछ ठीक-ठाक था …..फिर तीज का त्यौहार आया…..! अलका पूजा में बैठते ही ……लाख-लाख धन्यवाद भगवान को दे चुकी थी…… और भी सभी … पूजा में बैठते ही,  पिछले वर्ष की घटना को याद कर सावधानी बरतने की भरपूर प्रयास कर रहे थे…..।

इसी बीच सासु मां ने सख्त आवाज में अलका को हिदायत दी…..इस बार कायदे से माचिस जलाना……। कोई अपशगुन ना होने पाए……! पूरे साल भर मेरा तो प्राण ही अटका रहा ……सभी की निगाहें अलका पर ही थी…..।

सुनते सुनते…..एक समय के बाद… अलका का धैर्य भी जवाब दे गया ….और बड़ी विनम्रता से उसने सिर्फ इतना ही कहा……..

” असावधानी को अपशगुन मानकर मुझे तिरस्कृत ना करें सासू मां…! “

वो तो भगवान का लाख-लाख शुक्र है.. घर में साल भर कोई भी अनहोनी घटना नहीं घटी …वरना कारण कुछ भी होता दोषी मैं ही ठहराई जाती…!

अलका की बातें सुन… सासू मां के साथ-साथ …अन्य सभी को अपने अंधविश्वास और तिरस्कृत व्यवहार पर शर्मिंदा महसूस हुई…..।

साथियों मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा….!!

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना )

#शर्मिंदा

    श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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