इक्कीसवीं सदी – डा. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दिव्या एक पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर और बहुत ही सुलझे हुए विचारों की लड़की थी। उसके माता-पिता ने बहुत दुलार से उसको पाला था।कंप्यूटर में इंजीनियरिंग करने के बाद दिव्या की एक बहुत अच्छे पैकेज पर एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी लग गई थी। अब उसकी उम्र भी विवाह योग्य हो रही थी तब उसका रिश्ता मानव से तय कर दिया।मानव भी दिव्या की तरह किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करता था। 

मानव के घर बाकी सब तो ठीक था पर जो भी दिव्या के महीने का वेतन आता था वो उसको घर खर्च के लिए आधे से ज्यादा वेतन सास को ही देना होता था हालांकि मानव भी अच्छा कमाता था वो भी अपनी मां को वेतन का बड़ा हिस्सा देता था। दिव्या को अपना वेतन देने में समस्या नहीं थी पर उसको लगता था कि जैसे वेतन बैंक में उसके अकाउंट में आता है तो जब आवश्यकता हो उतना निकाल लेना चाहिए। वैसे भी उसके आने से पहले भी घर का खर्च आराम से मानव के वेतन से चल जाता था।

उसने एक दो बार मानव से भी इस विषय में बात करनी चाही पर मानव ने कहा कि अगले साल छोटी बहन की शादी भी होनी है इसलिए जितना पैसा हम मां को दे देते हैं उसमें से घर खर्च का पैसा निकालकर बाकी मां बचत के तौर पर रख देती हैं। ये सुनकर अब दिव्या ने आगे कुछ नहीं पूछा। एक दिन दिव्या के पापा के साथ एक हादसा हो गया।

उनकी कपड़ों की फैक्टरी में आग लग गई थी।वो तो शुक्र था कि किसी की जान नहीं गई थी पर लाखों का सामान जलकर राख हो गया था। काफ़ी सामान की तो अभी उधारी भी चुकता नहीं हुई थी। ये दिव्या के पापा के लिए बहुत बड़ा झटका था वो खुद को नहीं संभाल पाए और उनको दिल को भीषण घात लगा।वो तो समय से हॉस्पिटल पहुंचने पर किसी तरह उनकी जान बच गई। जब दिव्या को ये सब पता चला तो वो तुरंत हॉस्पिटल पहुंची।

वो तो उसके पापा का मेडिकल इंश्योरेंस हुआ था तो इलाज़ का पैसा चुकाने में समस्या नहीं हुई पर अभी व्यापार की सारी उधारी चुकाने,उसको दोबारा खड़ा करने और उधर दिव्या के भाई की अभी इंजीनियरिंग की फीस भी जानी थी। दिव्या से अपने पापा की ये हालत नहीं देखी जा रही थी पर उसने हिम्मत हारने की जगह पापा की बैंक सेविंग्स और अपनी सेविंग चेक की। वो इतनी थी कि उधारी और कर्मचारियों के वेतन का इंतज़ाम आराम से हो गया।

भाई की फीस भी उसके वेतन से आराम से जुट गई। पापा की भी हालत में भी अब धीरे धीरे सुधार आ रहा था। दिव्या चूंकि रोज़ाना अपने ऑफिस से हॉस्पिटल आ जाती थी और उसने अपनी सेविंग्स और अपने वेतन से भाई की फीस का इंतज़ाम बहुत ही जल्दी में किया था इस गहमागहमी में वो मानव को भी सब कुछ नहीं बता पाई थी।

अब बस वो चाहती थी कि पापा किसी तरह ठीक होकर घर आ जाएं और फिर फैक्ट्री का जो हिस्सा आग की चपेट में आया है उसकी मरम्मत कराकर काम दुबारा शुरू किया जा सके। इसके लिए भी उसने अपने वेतन पर लोन की बात कर ली थी।ये सब कुछ दिव्या ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से संभाल लिया था हालांकि उसके प्रतिदिन ऑफिस से हॉस्पिटल जाने से उसकी सास खुश नहीं थी पर फिर भी मौके की नज़ाकत देखकर वो चुप लगा गई। 

ये सब तो दिव्या ने संभाल लिया था पर जब अगले महीने उसका वेतन आया तो उसको याद आया कि उसने मानव को और ससुराल में अन्य किसी को भाई की फीस और लोन के विषय में तो बताया ही नहीं है। फिर उसको लगा वैसे भी उसका अपना वेतन है और फिर उसने किसी से यहां तक की मानव से भी कोई मदद नहीं ली है तो इसमें किसी को कोई समस्या नहीं होगी।

ये सोचकर उसने अपनी सास को मानव के सामने ही सब बताते हुए ये कहा कि इस बार वो अपने वेतन का हिस्सा जो घर खर्च के लिए देती थी नहीं दे पाएगी। उसके ये कहते ही सास बहुत आगबबूला हो गई। उन्होंने कहा कि शादी के बाद लड़की को अपने मायके से इतना मोह नहीं रखना चाहिए वैसे भी अब उसके वेतन पर ससुराल वालों का हक़ है उसके माता पिता का नहीं।

ये सब सुनकर दिव्या से चुप नहीं रहा गया। उसने कहा कि कैसी बात कर रही हैं आप? ये इक्कीसवीं सदी है।मेरे मां-बाप ने बिना ये सोचे कि मेरे को शादी के बाद दूसरे के घर जाना है,मुझे इतना पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया। ऐसे तो मैं इस घर में अब आई हूं और आपके बेटे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर घर खर्च से लेकर अन्य खर्चे भी वहन कर रही हूं।

यहां तक की आपकी बेटी आपकी ज़िम्मेदारी है पर उसकी शादी के लिए भी जो आप बचत कर रही हैं उसमें पूरा सहयोग देती हूं। आज अगर मेरे माता-पिता के सामने थोड़ी समस्या आ गई और मैंने उनका थोड़ा हाथ बंटा दिया तो क्या गलत कर दिया। फिर उसने मानव की तरफ देखते हुए कहा कि आप हों या घर का कोई भी अन्य सदस्य सभी को एक बात ध्यान में रखनी होगी कि “मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूं।” जब मैं आपको अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने से नहीं रोकती हूं तब ऐसे में आपको भी मेरे लिए गए निर्णयों का पूरा सम्मान करना होगा। ये सुनकर मानव ने भी दिव्या के निर्णय का पूरा समर्थन किया। अब सास को भी कहीं ना कहीं अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

 

डा. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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#मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूं।

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