मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूँ – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “आ गई महारानी ” बहू को घर में घुसते देखकर संध्या जोर से बोली | 

       माँ की आवाज सुन पवन कमरे से बाहर आया और  दीपा की ओर देखते हुए चिल्लाकर बोला -” कहाँ थी तुम? हम कबसे तुम्हारी राह देख रहे हैं | आफिस तो छ बजे बंद हो जाता है और रोज तुम सात बजे तक घर आ जाती हो |अभी नौ बजे हैं और तुम अभी घर आ रही हो | कहाँ थी तुम अभी तक? मैंने फोन किया तो तुम बोली कि घर आकर बताती हूँ | तो अब बताओ? “

          “बताती हूँ, जरा पानी तो पी लूं |” दीपा टेबल पर रखे जग से पानी निकालते हुए  बोली |ग्लास में पानी लेकर वह सोफे पर बैठी |पानी पीकर वह बोली -” माँ के पास चली गयी थी |”

       “माँ के पास, भला क्यों? ” पवन बोला |

       “अरे इसकी तो आदत है, हर दूसरे तीसरे दिन किसी न किसी बहाने माँ के पास जाने की |” संध्या मुंह बनाकर बोली -” बस इसके लिए तो एक इसकी माँ ही सबकुछ है| हम तो कुछ है हीं नहीं | दोनों बच्चे भूखे हैं, हम भूखे हैं, रात का खाना नहीं बना है और ये मायके घूम कर अब आ रही है |”

        “मम्मी जी, मैं मायके घूमने नहीं गई थी|

माँ की तबियत खराब थी, बगल के रिंकू भइया ने दोपहर को फोन किया था |मैं आफिस से आधे दिन की छूट्टी लेकर  उन्हें  देखने गई थी |पापा के जाने के बाद वह अकेली हो गई है और अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह भी |अब मैं उसकी अकेली संतान हूँ, तो मुझे ही देखना पडेगा ना |” दीपा इतना बोलकर पवन की और मुडी -” मैं जानती थी कि आप को तो फुर्सत मिलेगा नहीं और सदा की भांति आप मेरे साथ तो चलेंगे नहीं, इसीलिए मैं अकेली चली गई | सोचा था सात बजे तक आ जाऊगी, पर माँ को डाक्टर से दिखाने, दवा देने में कुछ देर हो गई | मैं तो वहाँ रूकना चाहती थी, पर रिंकू भईया और उनकी माँ को रात में देखने को कहकर आ गई |” 

         ” अरे, तुम तो माँ के पीछे ही लगी रहती हो |  हमारी परेशानी का तो तुम्हें कुछ ध्यान ही नहीं | तुम फोन से रिंकू भईया को ये सब करने को बोल देती |” पवन झुंझला कर बोला |

          ” ऐसा है ना पतिदेव, मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं, किसी की बेटी भी हूँ | पापा के जाने के बाद माँ की देखभाल करना मेरी जिम्मेदारी है |रात के खाने के लिए मैंने आर्डर कर दिया है |खाना आता होगा | बच्चे सिर्फ मेरे ही नहीं है |आपके बच्चे और मम्मी के पोता-पोती भी हैं|एकाध घंटे आपलोग भी उन्हें देख सकते हैं, पर मेरी माँ को देखनेवाली सिर्फ मैं हूँ | मुझे आपलोगो की परेशानी का भी ख्याल है |अतः मैंने सोचा है कि हमारे बगल वाले अपार्टमेंट में एक फ्लैट खाली हो रहा है |माँ को उसी में ले आती हूँ और वहाँ घर में किराया लगा देती हूँ |  मुझे भी बार – बार उतना दूर जाना नहीं पडेगा | मैं माँ की देखभाल भी आसानी से कर सकूंगी और आपलोगो को भी परेशानी नहीं होगी |माँ यहाँ हमारे घर में तो रहेगी नहीं |” दीपा ने कहा |

        “इतना झंझट क्यों करती हो |माँ को वृद्धाश्रम में क्यों नहीं रख देती? ” संध्या झट से बोली |

        दीपा ने गंभीरता से कहा -” मम्मी जी बिमार तो आप भी पड़ती हीं हैं | आपके कारण भी हमें कुछ परेशानियां होती है,फिर भी आप पवन की माँ है , मैं भी आपको सदा माँ ही समझती हूँ | जैसे आप पवन की माँ है, वैसे ही वह मेरी माँ है | जैसे आपकी देखरेख पवन की जिम्मेदारी है, वैसे ही मेरी माँ की देखरेख मेरी जिम्मेदारी है |क्या मैंने आपको वृद्धाश्रम भेजने की बात कभी की, फिर मेरी माँ के लिए ऐसी बात क्यों? ” थोड़ा रूककर दीपा पवन से बोली – ” मै सदा आपकी सारी जिम्मेदारियां निभाने में आपका साथ देती हूँ, तो क्या आप मेरी इस जिम्मेदारी निभाने में मेरा साथ नहीं दे सकते |” कहते – कहते दीपा का गला रूंध गया और वह चुप हो गई| 

     “तुम ठीक कहती हो, तुमने सदा मेरा साथ दिया है | मैं भी  तुम्हारी इस जिम्मेदारी निभाने में तुम्हारा साथ दूंगा |” पवन उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला |

      “हां बहू, तुम ठीक कह रही हो | मैं  एक माँ होकर दूसरी माँ की पीडा़ न समझ सकी | मुझे माफ कर दो और पवन के साथ जाकर अपनी माँ को यहाँ ले आओ | ” संध्या बोली |

     ” मम्मी आप बहुत अच्छी हैं | मुझसे माफी ना मांगे, आशीर्वाद दें |” दीपा उनके पैर छूकर बोली |संध्या ने उसे गले लगा लिया  |

 

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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