“अन्याय के विरोध में न बोलना क्या न्याय है???? – अमिता कुचया

नंदिनी बहुत ही प्रतिभाशाली लड़की है, उसे कोई भी काम करने में झिझक नहीं होती।वह बहुत ही खुश होकर हर काम मायके में भाभी के साथ करातीं थी।उसे नहीं लगता था कि भाभी को पूरा श्रेय जाएगा••••

उसकी ऐसी सोच नहीं थी।वह हमेशा हर काम में चाहे किचन का हो या ऊपरी•••सब काम में आगे रहती थी।

कुछ समय पश्चात नंदिनी की शादी हो जाती है।वह भाभी के बहुत करीब है उसे ससुराल की हर बात बताती।

एक दिन उसने बताया मैं घर के बाहरी काम करती हूं। मुझे सब करना अच्छा लगता है।

वह सुबह उठती तो डस्टिंग करती, फिर सबके कपड़े धुलती सफेद,छोटे बड़े,किचन के,सब अलग- अलग धुल कर सुखाने जाती।उसका काम इतना ही नहीं रहता। बल्कि वह डस्टिंग भी करती है।

तब उसकी भाभी ने कहा दीदी आप तो वहां नयी- नयी हो, आपको किचन के काम करने चाहिए।ताकि आपकी वहां तारीफ हो। लेकिन नंदिनी ने कहा –  “भाभी कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं लगता,मुझे कोई दिक्कत नहीं है।”

वह हमेशा सास की बात मानती ।एक दिन सास ने कहा-” बहू हमारे यहां रोज आटा चक्की में पीसता है, ये ऊपरी काम है तुम किए करना।”

तो वह भी आटा पीसने लगी।

सास का कहना था कि बड़ी ने इतने साल उसने किया अब तुम भी करो। नंदिनी ने ये सब काम खुशी- खुशी करने स्वीकार किए। क्योंकि उसे लगता कि भाभी के दो छोटे- छोटे बच्चे हैं, वो अब दौड़ा भागी वाले काम नहीं कर पाती है, इसलिए मां जी ने मुझे ऊपरी काम सौंप दिए।

साथ ही वह  रसोई में सब्जी भी काट देती। भाभी सिर्फ़ करी कराई तैयारियों से खाना पका देती।सब उसकी तारीफ करते कि बड़ी बहू के हाथ में कितना स्वाद है तब पर भी नंदिनी कुछ न बोलती।

एक बार की बात है उनके यहां चाची सास का परिवार आया।तब बड़ी भाभी के खाना की जमकर तारीफ हुई।




तब नंदिनी को बुरा लगा कि सारे दिन तो मैं काम में लगी रहती हूं। इसका श्रेय तो भाभी मिला। खाना बनाना ही बड़ा काम है क्या! जबकि ज्यादातर काम मैं ही करती कि मुझे तो कभी फुर्सत भी नहीं मिलती क्योंकि खाने के बाद चौका भी मुझे ही साफ करना होता है।उस समय वह कुछ नहीं बोली खैर •••••

एक दिन उसने लगने लगा कि मेरे काम तो कभी खत्म ही नहीं होते, भाभी को दोपहर में आराम भी हो जाता और शाम को बच्चों को पढ़ाने लगती।

इस तरह फिर उसे  ही सुखे कपड़े छत से उठाकर सबके कमरे में रखने पड़ते।सब  कपड़े छांटना और तह लगाना। फिर प्रेस के कपड़ों को प्रेस के लिए देना भी उसी का काम हो गया था। फिर शाम होती, चाय नाश्ता की तैयारी करने लगती। इतना करते- करते शाम हो जाती उसे आराम करने का समय नहीं मिलता।

ये सब बाते नंदिनी ने अपनी भाभी को बताई।

तब भाभी ने कहा- “दीदी आप अपनी सासु से कहो कि काम का बंटवारा बराबरी से करें।आप तो परेशान होती रहती हो। आपको अपने लिए भी समय नहीं बचता होगा।आपको जंवाई के साथ घुमने भी नहीं मिलता होगा! “

तब नंदिनी ने कहा- ” हां भाभी तो  वो सीधे -सीधे खाना बनाकर फ्री हो जाती है । मुझे ही बाकी के काम संभालने पड़ते हैं।”

तब नंदिनी की भाभी ने कहा – “दीदी मायके की बात और थी।सब मैं और आप मिलकर सब संभाल लेते थे।पर आप पर ससुराल जितनी जिम्मेदारी तो नहीं थी। ऐसा करो दीदी आप जंवाई सा से कहो कि इतनी भागा दौड़ी वाले काम में थक जाती हो।”

फिर नंदिनी को एहसास हुआ उसने अपने पति रोहित से बात की।  तब रोहित ने भी अपनी मां से बात की।  मां, क्या नंदिनी से खाना बनाना नहीं आता, उसको भी खाना बनाने कहा करो।”

तब इतना सुनकर रोहित की मां ने कहा -“बड़ी बहू के हाथ का स्वाद सबकी जीभ में भा गया है।उसे ही बनाने दे।इस तरह रोहित के कहने का असर सास पर नहीं हुआ खैर••••

समय बीतता जा रहा था••••

वह सब काम वैसे ही करती वह तीन मंजिलें छत के दसों चक्कर लगाती, और पूरा घर समेटती रहती, शाम होती तो भी आरती संध्या वहीं करती•••




फिर एक दिन उसे पता चला कि वह मां बनने वाली हैं वह काफी खुश हुई।अब  उसे काफी थकावट होने लगी ,पहले जैसे फुर्ती से काम नहीं कर पा रही थी।

अब वह न चक्की से अनाज पीस पा रही थी ।अब भाग दौड़  वाले काम,

काम करते करते सिर घुमने लगता•••

अब उसने सोचा मैं अब नहीं कर पा रही हूं।अब मुझे बोलना ही होगा।एक दिन उसने कहा-

“मम्मी जी मैं ऊपर के कामों में थक जाती हूं। मुझे चक्कर आने लगते हैं ,आप भाभी से कहिए वो ऊपर के काम करें।”

तब सास ने कहा- “क्या हुआ !अगर ये सब काम किया तो देर से ही होगा । बच्चा तो  कम से कम तंदुरुस्त होगा । तुम एक्टिव रहोगी तो बहू तेरी डिलेवरी में कोई दिक्कत नहीं आएगी।”

वह उस समय कुछ नहीं बोली।

अब उसे रात में नींद नहीं आ रही थी।

उसने बहुत सोचा••• अब तक मैं अपने कारण चुप थी।पर अब और नहीं••••

उसने अपने बच्चे की खातिर एक फैसला किया और वह अगले दिन से भाभी वाले काम में लग गई।

उसने नहाकर खाना बना कर किचन से आराम करने कमरे में चली गई।

तब तो बड़ी बहू का बुरा हाल था।वह रसोई में आई देखा की। खाना पहले से ही तैयार हो चुका है। फिर उसने  तमतमा कर कहा – “अरी छोटी ये क्या! तूने कपड़े और डस्टिंग नहीं की। “

तब नंदिनी ने कहा-” भाभी मैं बहुत थक जाती हूं। मुझसे यह सब नहीं होता ।”

तब सास ने कहा-  “अरे नंदिनी बड़ी के छोटे- छोटे बच्चे हैं वह कैसे करेगी।”




तब नंदिनी ने कहा- ” मेरे भी पेट में बच्चा है क्या मैं उसका ख्याल न रखूं?”

फिर ससुर,जेठ साथ ही उसके पति रोहित को उसकी बात सही लगी। सबने कहा अब नंदिनी का काम भाभी करेंगी।तब जाकर जेठानी और सास दोनों को एहसास हुआ किचन का काम ही महत्वपूर्ण काम नहीं होता । फिर सास और जेठानी मिलकर ऊपर का काम करती घर में सहयोग से पूरा काम होने लगा।

आज उसे एहसास हुआ कि मुझे अपने लिए पहले बोलना चाहिए।अगर अपने लिए बोल लेती तो मुझे इतनी तकलीफ़ नहीं होती। दोस्तों अन्याय करना उतना ही ग़लत है। जितना सहना गलत है।हमें खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए।ताकि हम बेवजह परेशान न हों। ताकि कोई अच्छाई का फायदा न उठाए।

आज नंदिनी को सुखद एहसास के साथ शारीरिक आराम की जो उसे अनुभूति हुई ‌,जो उसके  मन को भी सुकून दे रही थी।

दोस्तों -हम अगर कुछ न बोलें तो सामने वाले को एहसास ही नहीं होता कि हम कितनी तकलीफ़ से गुजर रहे हैं। इसलिए बिना देर किए अपनी बात सबके सामने खुल कर बोलनी चाहिए।

ताकि नंदिनी जैसी किसी भी बहू कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।

हम खुशी – खुशी हर काम अपना घर समझ कर करते हैं कोई भी काम छोटा बड़ा समझ कर नहीं करते हैं लेकिन जब हमें तारीफ न मिले ।तो दुख होता है। इसलिए समय रहते अपने लिए भी बोलना चाहिए और कभी- कभी तारीफ की हकदार बनना चाहिए।

दोस्तों-बहुत से परिवार में यही स्थिति होती है।जो न बोले तो उसे बेवकूफ समझा जाता है।उसे अन्याय सहना पड़ता है। इसलिए गलत के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए।

आप सब को मेरी रचना कैसी लगी ?

कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें। मेरी और भी रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फालो करें।

धन्यवाद 🙏❤️

आपकी अपनी दोस्त ✍️

अमिता कुचया

 

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