मै अन्याय नहीं सहूंगी। – अर्चना खंडेलवाल 

गलती इंसान के जीवन का एक हिस्सा है, और मुझसे भी गलती हो गई, ये गलती मैंने तो नहीं की थी, कहते हैं समय हर घाव भर देता है पर निशान तो रह ही जाते हैं, पिछले महीनों हुई घटनाएं रोली के दिमाग में घुमने लगी। जब वो कॉलेज में नई थी तो कॉलेज देखकर चकित रह गई। गांव में तो स्कूल तक ही पढ़ाई थी इसलिए शहर पढ़ने आई। अपनी जिद से उसने मां-बाबूजी को शहर भेजने के लिए मना लिया।

उसी की साथ की सहेली के रिश्तेदार का शहर में घर था, उनका ऊपर का कमरा खाली था, हॉस्टल महंगा पड़ रहा था।

रिश्तेदार ने कमरे का किराया नहीं लिया बस खाने पीने का वो दोनों सहेली दे दिया करती थी।

अनजान शहर में कोई जान-पहचान का है ये सोचकर रोली के मां-बाबूजी ने उसे शहर भेज दिया। रोली की सहेली खुशी के परिवार वालों और रिश्तेदार को रोली के परिवार वाले भी अच्छे से जानते थे।

रोली पढ़ने में तेज थी, मां ने भी सिखाकर भेजा था कि सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान देना पर खुशी का पढ़ाई में मन कम और चीजों में मन ज्यादा लगता था, वो कॉलेज में बन-संवर कर जाती थी, नये तरह के फैशनेबल कपड़े पहनना उसे बहुत पसंद था। घर परिवार से आजाद होकर वो हर काम करना चाहती थी जिसके लिए उसके परिवार वाले मना करते थे। रोली उसे भी समझाती पर वो नहीं मानती। खुशी रोली पर दबाव बनाती थी कि क्या दिन भर पढ़ना, ये उम्र रोज नहीं आती है, हमें जिंदगी के भी मजे लेने चाहिए।

रोली हर बार विरोध करती पर खुशी नहीं मानती थी।

एक दिन खुशी एक लड़के के साथ लौटकर आई तो रोली ने टोका। तेरे वाले का ही भाई है, खुशी बोली।

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रोली कुछ समझी नहीं।

अरे!! बुद्धु वो देवांश है ना तुझको बहुत पसंद करता  है, ये सारांश उसी का चचेरा भाई है। अच्छा है हम एक दूसरे की देवरानी जेठानी बन जायेंगे, हमेशा साथ में रहेंगे।

देवांश…प्यार… देवरानी… जेठानी…. खुशी ये सब क्या पागलपन है?? अभी तो हमारे पढ़ने की उम्र है, करियर बनाने के लिए यहां आये है, तू किन चीजों में उलझ रही है, मुझे तो पढ़ लिखकर कुछ बनना है, मैं तेरी तरह नहीं बनूंगी, मुझे तेरा व्यवहार चरित्र पता होता तो मैं गांव से यहां तेरे साथ रहने कभी नहीं आती, रोली सख्त होकर बोली।




अच्छा, तुझे मुझे पर विश्वास नहीं है, एक बार देवांश से मिलकर उसे मना कर दें कम से कम वो तुझे प्यार तो करना छोड़ देगा। खुशी ने दबाव बनाया

मुझे किसी से नहीं मिलना है, रोली बोली।

खुशी फिर कहती हैं कि एक बार तो मिले लें। तू खुद मना करेगी तो वो मान जायेगा, मुझ पर विश्वास नहीं है क्या??

रोली ना चाहते हुए भी खुशी की बातों में आ जाती है, वो मन ही मन में सोचती है मैं एक बार खुद मना करके इस किस्से को खत्म ही कर देती हूं। वो खुशी के साथ चली जाती है, होटल में देवांश उसकी कॉफ़ी में नींद की दवा मिला देता है, खुशी भी पैसों के लालच में इन सबमें शामिल हो जाती है। रोली को जब होश आता है वो अपने आपको देवांश के साथ बिस्तर पर पाती है।

एक तेज चीख निकलने के साथ ही रोली बेहोश हो जाती है….. खुशी उसे अस्पताल ले आती है।

वहां वो बोलती है ये सब किसी को मत बताना… क्योंकि देवांश ने तेरी कुछ आपत्तिजनक फोटो ले ली है, घरवालों को पता चलेगा तो क्या होगा, उनकी ओर तेरी बदनामी हो जायेगी।

खुशी, मैं तो तुझे सहेली समझती थी, तुझ पर मैंने विश्वास किया और तूने ऐसा क्यों किया?? रोली ने पूछा।

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पैसों के लिए, नये फैशनेबल कपड़ों के लिए, महंगे होटलों में घुमने के लिए सब करना होता है और खुशी बेशर्मी से बोलकर वहां से भाग जाती है।




रोली अपने आंसू पौंछती है और सभी को सजा दिलाने का प्रण लेती है। बदनामी के डर से मैं चुप नहीं बैठने वाली, मैं ये अन्याय नहीं सहूंगी। आखिर मैंने तो कोई ग़लती नहीं की थी बस खुशी पर विश्वास किया था, खुशी भी जान-पहचान की थी, अजनबी तो ना थी। खुद को मजबूत बनाकर रोली ने पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखवा दी। देवांश, सारांश और खुशी ने सोचा था कि बदनामी के डर से रोली मुंह ना खोलेगी, इसलिए तीनों निश्चित हो गये थे। बहुत ही कम समय में तीनों को पकड़ लिया गया।

पुलिस ने उनसे सच उगलवा लिया। तीनों को कुछ ही महीनों बाद सजा हो गई।  हर तरफ रोली की बहादुरी के चर्चे होने लगे, रोली ने हिम्मत दिखाई, बदनामी की परवाह नहीं करी और ना जानें भविष्य में कितनी लड़कियों को देवांश के चंगुल से बचा लिया।

मां ने समझाया, रोली अब तुझसे कौन शादी करेगा, सारे गांव को पता चल गया। हमारा तो घर परिवार बदनाम हो गया है।

रोली की आंखें भर आईं, तो क्या करती मां? बार-बार खुद को ब्लैकमेल के डर से देवांश को सौँप देती, आज मुझे तो कल किसी ओर लड़की की जिंदगी दांव पर लगती, इसमें मेरी तो बस इतनी गलती थी कि मैंने खुशी पर विश्वास किया। उस गलती की मैंने सजा भी भुगत ली है। अब मैं किसी ओर को सजा नहीं भुगतने दूंगी।

मैं आगे पढ़ूंगी और अपना करियर बनाऊंगी, कोई ना कोई जीवनसाथी मुझे मिल ही जायेगा। अन्याय और गलत को चुपचाप सहना तो कायरता है। मेरे साथ तो इतनी बड़ी घटना हो गई। औरतें और लड़कियां छोटी -छोटी छेड़छाड़ के खिलाफ भी मुंह नहीं खोलती है, बाद में यही घटना बड़ी बन जाती है। रोली की हिम्मत देखकर जिलाधिकारी ने उसे नारी सम्मान से सम्मानित किया। रोली का आत्मविश्वास और हौंसला देखकर मां को तसल्ली मिली। रोली का पूरे जिले में नाम हो गया, वो कई औरतों और लड़कियों की प्रेरणास्त्रोत बन गई।

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पाठकों, हम औरतों और लड़कियों को उस बदनामी का डर होता है जिसमें हमारी कोई ग़लती ही नहीं होती है, हम सह लेती है, दब लेती है, चुप रह लेती है। औरतों की चुप्पी ही अपराध को और बढ़ावा देती है। हर मां बेटी को बदनामी के डर से चुप करा देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी, अपनी बेटियों को हौसला देना होगा, उन्हें सिखाना होगा कि वो ग़लत का विरोध करें, कुछ गलत हो जाएं तो बदनामी के डर से चुप ना रहे, कभी अन्याय ना सहे, गलत हो जाएं तो उसके खिलाफ आवाज जरूर उठाएं।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल 

 

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