जन्मदिन – संजय मृदुल

कल रक्षा का जन्मदिन था। छोटी बच्ची ही तो है अभी छह साल की। उसे क्या समझ की माहौल खराब चल रहा है, महामारी फैली हुई है, लॉक डाउन है। उसे तो बस अपने जन्मदिन से मतलब और उसकी पार्टी से।

महीने भर से प्लानिंग कर रही है वो।

   दो तीन दिन से तो जिद पर अड़ी है, सब दोस्तो को बुलाना है, खाने के लिए क्या क्या बनेगा सब दादी को बता रही है। अब उसे समझा भी रहे हैं तो उसे मानना कहाँ है। उसे क्या मतलब जो देश मे घट रहा है। बालहठ तो भगवान से भी नही सम्हलता तो हम तो तुच्छ इंसान।

सबने कोशिश की कि बस घर के लोग मिलकर मनाएंगे जन्मदिन। अभी बाहर जाना मना है, किसी से मिलना जुलना मना है। पर वो कहाँ मानने की।

  सुबह जल्दी उठ गई, दादी बलून लगाना है, बाबाजी आप फुला दीजिये न। पापा आप केक लेकर आना डॉल वाली शेप में। मम्मी चौमिन और फ्रेंच फ्राई जरूर बनाना।

   हम सब पशोपेश में कि करें क्या। बच्चो का दिल दुखाना भी पाप, और फिर कई दिन तक उसका मन खराब रहेगा। कोई रास्ता भी नही।

आजकल ये फैशन हो गया है, धूमधाम से जन्मदिन का आयोजन करना। सोसाइटी से सब बच्चो को बुलाना, धूम  मचाना।

   हमारे समय मे तो अम्मा पूजा के समय टीका कर देती, खीर बना देती सब का आशीर्वाद मिल जाता ऐसे होता जन्मदिन। क्या क्या चोचले हो गए है आजकल तो। मम्मी बड़बड़ाती हमेशा।




   कुछ सूझ नही रहा था थी जय का काल आया। यार पूरब, शहर की सीमा में मजदूर आये हैं बाहर से, उनके लिए कुछ व्यवस्था करनी है तू चलेगा क्या?

कितने समय?

   दोपहर में चलेंगे, तब तक कुछ चीजें ले लें जरूरत की उनके लिए। अपना पूरा ग्रुप मिलकर मदद करने की सोच रहा है।

   पूरब के दिमाग की बत्ती जली। उसने कहा ठीक है जाते हुए मुझे भी ले लेना।

मैं बाजार से आता हूँ थोड़ी देर में। उसने आवाज लगाई और कार लेकर निकल गया।

बाजार से उसने सत्तू, फूटे चने, बिस्किट, ग्लूकोस खरीदे और घर आ गया। सब ने मिलकर पैकेट बनाये। रक्षा ने पूछा पापा ये रिटर्न गिफ्ट है क्या? उसने कहा हाँ। अब मम्मी के साथ जल्दी तैयार हो जाओ तुम्हारा जन्मदिन मनाने चलना है। आज तुम्हारा जन्मदिन ढेर सारे लोगो के साथ मनाएंगे हम।

     जय आया और हम अपनी कार में सब सामान लेकर चल पड़े। अजब माहौल था वहां। हजारों लोगों की भीड़, कई संस्थाओं ने लंगर लगाया हुआ था उनके लिए, तो कोई नींबू पानी बांट रहा था। सरकार की तरफ से मेडिकल चेकप भी किया जा रहा था। बसें लगी हुई थी उन्हें आगे लेजाने के लिए।जय और सब दोस्त भी शामिल हो गए इन सब के साथ मदद करने।




   एक किनारे में कुछ मजदूर अपने बच्चो के साथ पंडाल के नीचे बैठे थे, पूरब ने पत्नी से कहा चलो इन बच्चो को दे आएं ये सब। और कार उनके पंडाल के पास ले आये।

   हाथ मे बैग देखकर बच्चे उत्सुकता से वहां आ गए। उन्हें भी पता था कि किसी के पास नही जाना है दूरी बनाकर रखना है। पूरब ने एक बुजुर्ग को आवाज दी, दादा आज हमारी बेटी का जन्मदिन है, तो ये छोटी सी भेंट आप सब के लिए, रास्ते मे काम आएगी आप सबके। आप बांट दीजिये सब को।

आपकी बेटी कहाँ है साहब,उसने पूछा?

   कार में बैठी है यहां भीड़ है न दादा। छोटे बच्चो को दूर रखना जरूरी है न। हौ साहब, सही बात है। मगर हम कैसे दूर रखें अपने बच्चो को। सैकड़ो मील चलकर आ रहे हैं।आपकी बीटिया को हम सब की तरफ से ढेर सारा असीस।

   उसने अपने लोगो की मदद से सब पैकेट बांट दिए, सब बच्चो के चेहरे पर खुशी देखकर रक्षा के चेहरे पर खुशी बिखर आयी थी। हालांकि उसे बहुत ज्यादा कुछ समझ नही आया था, मगर अपने जन्मदिन पर इस तरह खुशी बांटकर निश्चित ही उसे भी अच्छा लग रहा होगा।

   रक्षा से मम्मी ने पूछा कैसा रहा तुम्हारा जन्मदिन। वो उत्साह से बोल पड़ी मम्मा ऐसे ही मनाएंगे अब हम जन्मदिन।

   पूरब सोच रहा था इस माहौल में वो जन्मदिन की खुशी मनाए या इन बेचारे बेघर लोगो की हालत पर अफसोस करे।

   फिर उसे याद आया। लंका विजय में भी तो एक गिलहरी ने योगदान दिया था। मदद छोटी हो या बड़ी, सच्चे मन से की जानी चाहिए।

©संजय मृदुल

रायपुर

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