अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 3 ) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

“जी माॅं”…कहकर विनया बाहर बैठक की ओर दौड़ी। उसकी मम्मी का सुनकर भी सासु माॅं ने एक बार भी उससे हाल चाल नहीं लिया, ये भी उसे अजीब सा लगा और एक पल के लिए नकारात्मक भाव भी आए।

“मैंने ही तो पहले ही पूरी बात बिना पूछे कह दिया तो अब माॅं भी क्या पूछती। मैं भी ना”… ये सोचती हुई विनया अपने मन के नकारात्मक भाव को दूर करने में सफल रही।

एक ही शहर में मायका होने के कारण विनया जल्दी से कैब लेकर अपनी मम्मी से मिलने चल पड़ी।

“मम्मी, मम्मी”…भाई सौरभ के दरवाजा खोलने पर विनया सीधे अपनी मम्मी के कमरे की ओर दौड़ी।

“भैया मम्मी कहाॅं है और भाभी भी नहीं दिख रही हैं। सच सच बताओ भैया।” मम्मी संध्या को उनके कमरे में ना देख सौरभ से पूछते हुए विनया की सूरत रोने जैसी हो गई।

“अरे अरे रोने मत लगना, वही तो उस समय बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन तुमने कॉल कट कर दिया। फिर मुझे भी लगा इसी बहाने एक चक्कर लगा लेगी।” बहन को सोफे पर इत्मीनान से बिठाते हुए सौरभ कहता है।

“ओह हो भैया, पहेलियाॅं मत बुझाओ। सीधी सीधी बात कहो।” विनया झुंझला कर कहती है।

“अरे मेरी लाडो, गिरने से माॅं थोड़ी डर गई थी तो दीपिका उन्हें डेट पर ले गई है।” सौरभ बहन के बगल में बैठता हुआ हॅंसते हुए कहता है।

“डेट”… असमंजस से विनया दुहराती है।

“हाॅं, जी, हाॅं…डेट..लो ये दोनों आ गई।” सौरभ अभी विनया से अपनी माॅं और पत्नी के बारे में बता ही रहा था कि दोनों हाथ में शॉपिंग बैग लिए किसी विषय पर बात करती खिलखिलाती हुई घर में प्रवेश करती हैं।

काश मैं और मेरी सासु माॅं के बीच भी कभी ऐसी बॉन्डिंग हो पाए। पता नहीं कब हम दोनों भी एक ही घर में रहते हुए अजनबी ना रहकर अपनों से रहेंगे। अपनी माॅं और भाभी को देख विनया के ऑंखों के आगे अपनी सासु माॅं का हर हमेशा मुरझाया रहने वाला चेहरा घूम गया।

“अरे विनया तुम कब आई बच्चे।” माॅं को देख विनया झट से उनके गले गई थी और संध्या उसके बालों को सहलाती पूछती है।

“बता तो देती ननद रानी, आपको भी डेट पर ही बुला लेती हम दोनों। गर्ल्स आउटिंग हो जाती।” दीपिका शॉपिंग बैग्स सोफे पर रखती विनया की ओर घूम कर कहती है।

“आप लोग के जाने के बाद विनया की कॉल आई थी और आपके गिरने की बात सुनकर भागी भागी चली आई।” सौरभ बताता है।

“ठीक है तो आज रुकेगी ना।” संध्या विनया को थामे थामे सोफे पर बैठती हुई कहती है।

“नहीं नहीं मम्मी, मैं माॅं से कहकर आई हूॅं कि रात तक आ जाऊॅंगी।” विनया कहती है।

“क्या बात है ननद रानी, सासु माॅं का इतना खौफ।” दीपिका ननद को चिढ़ाती हुई कहती है।

“नहीं भाभी, खौफ नहीं है। इसी बारे में तो आप लोग से बात करने आना चाहती थी और इस विषय पर डिस्कस करके ही जाऊॅंगी।” विनया अपनी भाभी के मजाक का उत्तर गंभीरता से देती है, जिससे वहाॅं उपस्थित तीनों सदस्यों को स्थिति की गंभीरता का अहसास होता है।

मैं कुछ स्नैक्स तैयार करती हूॅं और शाम की चाय भी बना लाती हूॅं, कहती हुई दीपिका खड़ी हो जाती है।

“तुम बैठो, अपनी शॉपिंग विनया को दिखाओ। तब तक मैं बनाता हूॅं चाय और स्नैक्स।” चुटकी बजा कर दिखाता हुआ सौरभ किचन की ओर बढ़ गया।

“दीदी आपको इसमें से जो भी भाए, वो बिना हिचके ले लीजिएगा।” दीपिका एक एक कर बैग से साड़ी सूट निकालती हुई कहती है।

“नहीं भाभी, अभी ये सब कुछ देखने सुनने का मन नहीं है, बस अभी मेरी समस्या सुन कर समाधान बताइए।” विनया दीपिका के हाथों से बैग लेकर रखती हुई कहती है।

माॅं, वो मेरी दोनों बुआ सास ने मेरी सासु माॅं में इतनी कमियाॅं निकाली हैं कि वो उस घर में रहती हुई भी नहीं हैं….कहती हुई विनया सिलसिलेवार तरीके से शुरुआत से लेकर अभी तक की हुई सारी बातों को उनके सामने रखती है।

“माॅं तो मुझसे काम की बातें भी नहीं करती हैं। अब मुझे समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं कैसे और कहाॅं से शुरुआत करूॅं। अब आप लोग ही कुछ सलाह दीजिए।” सभी बातों को उन दोनों के समक्ष रखकर विनया बारी बारी से आपनी मम्मी और भाभी की ओर देखती है। 

“मैं भी आप दोनों की तरह मस्ती करना चाहती हूॅं, डेट पर जाना चाहती हूॅं।” विनया भावुक होकर कह रही थी।

“तभी मैं कहूॅं, हम दोनों को आप ललचाई नजर से क्यों देख रही थीं। अब समझ आया किस चीज का लालच आया था आपके मन में।” दीपिका विनया का मूड ठीक करने के उद्देश्य से कहती है।

“हाॅं, भाभी सच ही आपने मेरे मन की बात पढ़ ली। आप दोनों को देखकर यही मन में आया कि काश हमारा रिश्ता भी कभी ऐसा हो पाए।” विनया दीपिका के कहे का समर्थन करती हुई कहती है।

“टन टना, ये लीजिए आपलोग गरमा गर्म चाय और प्याज के पकौड़े।” सौरभ ट्रे लेकर किचन से बाहर आता हुआ कहता है।

“क्या बात है, इतने गंभीर और इस घर के लोग। ये तो अजूबा ही हो गया। आठवां आश्चर्य ही हो जाएगा कि ये दोनों सास बहू और साथ में ननद रानी की मुखमुद्रा गंभीरता की मिसाल बने हुए हैं।” चाय पकौड़े वाली बात पर किसी की कोई प्रतिक्रिया ना देख सौरभ टेबल पर ट्रे रखता दीपिका के बगल में बैठता हुआ कहता है।

“तुम्हारी ननद रानी ससुराल में कुछ गड़बड़ करके आई है क्या?” सौरभ फुसफुसा कर अपनी पत्नी दीपिका से पूछता है।

नहीं, दीपिका सौरभ को ऑंखें तरेर कर देखती हुई धीरे से कहती है।

“टाइम आउट, टाइम आउट, मैं इस दुर्गम परिस्थिति को ज्यादा देर झेल नहीं सकूॅंगा। अटैक सटैक आ गया तो दुनिया वाले कहेंगे, तीन नारियों ने मिलकर एक निरीह प्राणी को मार डाला।” एक पकौड़ा उठा कर खुद के मुॅंह में रखता हुआ सौरभ कहता है।

“भैया, कुछ भी बोलते हो। हर वक्त मजाक सही नहीं लगता है।” सौरभ के मजाक पर विनया रूष्ट हो कर कहती है।

“तू मेरी बहन नहीं हो सकती है। मेरी बहन तो हर समय खुश रहने वालों से थी। मम्मी ये हमारी विनया नहीं है। देखो कैसे काटने दौड़ रही है।” सौरभ अभी भी मजाक के ही मूड में था।

सौरभ अभी विनया को समाधान की जरूरत है, मजाक की नहीं। कहकर दीपिका संक्षेप में सौरभ को सारी बात बताती है। अपनी बहन के इस तरह उदासीन हो जाने के कारण को सुनकर सौरभ के चेहरे पर भी गंभीरता का लबादा छा गया था।

अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 4 ) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

अंतर्मन की लक्ष्मी भाग 2 

 

2 thoughts on “अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 3 ) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!