अंतर्मन – सुधा जैन

वसुधा अपने पति सुधीर और अपने दो बच्चों रोहित और रूपल के साथ अपने जीवन का आनंद ले रही थी ।बड़ी बिटिया रूपल का शिक्षा पूर्ण करके योग्य वर देखकर उसका विवाह कर दिया। रोहित को बचपन से ही देश सेवा की भावना थी, और वह उसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए सेना में चला गया। जब देश सेवा की भावना प्रबल हो जाए जब उसे रोक पाना असंभव होता है। वसुधा ने भी अपने बेटे की भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे सेना में जाने दिया। रोहित की उम्र 27 वर्ष हो गई थी, अतः उसके मन में बेटे की शादी की कल्पना जागृत हो गई। और अब की रोहित छुट्टियों में आया, तब उसके लिए लड़की देखने ,दिखाने का कार्यक्रम आरंभ हो गया ।जल्दी ही उन्हें एक अच्छी सी प्यारी सी लड़की आशी समझ में आ गई। आशी चंचल, प्यारी सी और अपनी पीएचडी को पूरा कर रही थी। जल्दी ही विवाह हो गया। रोहित बेटे के साथ आशी घूम फिर आई, हनीमून मना कर बहुत खुश थे।

बेटे की छुट्टियां खत्म हो गई और वह चला गया ।आशी उदास हो गई, लेकिन वसुधा उदार हृदय की महिला थी अतः अपनी बिटिया के समान उससे प्यार करती थी, और उसे समझाया कि तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो।

सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन शादी के 6 माह बाद ही रोहित को कारगिल युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हो गई, यह समय वसुधा सुधीर और आशी के लिए बहुत ही कठिन था।अपने बेटे को शहीद होते हुए देखना बहुत ही कठिन है। वसुधा टूट गई , आशी को विधवा के रूप में देखना कहीं से भी स्वीकार नहीं था।

चंचल ,हिरनी सी ,आशी उदास हो गई। रूपल के मन में भी भाई को खोने की गहरी उदासी आ गई। बेटा शहीद हुआ था अतः सम्मान और पैसे की तो कोई कमी नहीं थी, लेकिन आशी का पूरा जीवन उनके सामने था। आशी के मायके वालों को भी कहा कि तुम इसे अपने साथ ले जा सकते हो, लेकिन आशी के पिता तो नहीं थे, और भाई भाभी अपने साथ ले जाना नहीं चाहते थे ।अतः वसुधा ने सोचा इसकी पढ़ाई पूरी करवा दूं, और फिर से अपनी बिटिया बनाकर ही इस घर से विदा करूंगी ।



इन दिनों वह देख रही थी उसके पति सुधीर आशी पर ज्यादा ही ध्यान दे रहे थे ।आशी यह पहन लो ,यह खा लो ,चलो मैं तुम्हें घुमा लाता हूं, मैं ड्राइविंग सिखा देता हूं, पीएचडी के लिए जब भी कहीं कालेज जाना होता तो ले जाते। वसुधा को यह सब कुछ थोड़ा अटपटा लग रहा था, ठीक है ,अपनी बहू से स्नेह करना अलग बात है ,और उसकी हर बात का इतना ख्याल रखना अलग बात है ,आशी तो बहुत ही प्यारी ,सरल लड़की है, लेकिन अपने पति सुधीर को वह पूरी तरह समझती है, जब  वह शादी होकर आई तब भी दूसरी औरतों को देखना, घूरना उनकी आदत थी। उनकी इस आदत को चलते वह कई नौकरानीयां बदल भी चुकी थी, और हर समय उनका ध्यान रखना पड़ता था, पर यह बातें ऐसी थी कि किसी को बता तो नहीं सकती थी ,क्योंकि क्या किया जा सकता है? घर की इज्जत पर आंच कैसे आने दे? जब पुरुष की नियत खराब होती है तो जाति, उम्र ,रिश्ते ,सारी चीजें गौण हो जाती है, जब रोहित  की मृत्यु की कातर घड़ी में शोक से बेहाल आशी को अंक में भर लिया था, उसके अवचेतन मन में यह दृश्य भी उतर गया था। उसकी बेटी रूपल अपने पापा के चरित्र के इस पहलू को जानती है ,इसलिए वह अतिरिक्त रूप से सजग रहती है ,क्योंकि जब वह स्कूल में थी तब उसके पापा स्कूल आते थे, तो  बिना बात के ही मैडम की साड़ी की तारीफ कर देते थे। मां बेटी  दोनों ही सुधीर जी को समझते थे ,पर अपनी बहू आशी कों क्या कहें ?

सुधीर हर समय आशी के साथ पेपर पढ़ना, न्यूज़ सुनना, सीरियल देखना, इसमें व्यस्त रहने लगे । आशी तो उन्हीं में अपने पिता का स्वरूप देखने लगी।

वसुधा कभी तो सोचती, हो सकता है ,इनका पितृ प्रेम आशी के प्रति जागृत हो गया हो, कभी-कभी निश्चिंत भी हो जाती।

समय गुजर रहा था वसुधा की चचेरी ननंद के यहां विवाह था। रोहित के गुजर जाने के बाद उसके जीवन में अजीब सी उदासी और सन्नाटा था ।वह कहीं भी किसी भी समारोह में गई नहीं थी, लेकिन यह बिल्कुल पारिवारिक समारोह था, और आज हल्दी, मंडप आदि की रस्म थी, जाना जरूरी था। उन्होंने आशी से पूछा, चलो तुम भी शादी में चलो, पहले वह मना कर गई, लेकिन वसुधा ने कहा चलो ,थोड़ा बदलाव हो जाएगा कई दिनों से कहीं गई नहीं हो।

अपने सरल स्वभाव के कारण आशी जल्दी ही तैयार होकर आ गई, सादगी पूर्ण पहनावे में भी वह सुंदर लग रही थी।

वसुधा सुधीर जी और वह आशी तीनों चचेरी बहन के यहां शादी में पहुंच गए ,लेकिन हमारा भारतीय समाज अभी भी वैधव्य को सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पाया हैं ,सब आशी की ओर देख रहे थे।  बातें भी बना रहे थे। वसुधा इन सब चीजों को समझ गई ।आशी सभी की बातें सुनकर बहुत उदास हो गई। उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था, वह धीरे से अपनी सासु मां के पास गई और कहा कि “मम्मी मुझे तो अच्छा नहीं लग रहा है ,मैं घर चली जाती हूं”

सुधीर जी बोले कि चलो हम घर चलते हैं ,रस्मे  बाकी थी अतः वसुधा ने सोचा इन दोनों को जाने देती हूं ,मैं सब रस्में पूरी करके बाद में चली जाऊंगी। सुधीर जी और आशी चले गए। वसुधा ने भी बेमन से रस्में पूरी की। रात की 11:00 बज गई तब चचेरी बहन के बेटे नीरज ने उसे घर छोड़ दिया। दरवाजा सुधीर जी ने खोला ,उसने पूछा आशी सो गई क्या ?कुछ खाया या नहीं ?क्योंकि वहां पर तो वह कुछ खाकर आई नहीं।

सुधीर जी कुछ बोले नहीं अचानक वसुधा की नजर उनके हाथ पर पड़ी एक पट्टी बंधी हुई थी ,उसने पूछा क्या हो गया? वे बोले दरवाजे में हाथ आ गया था। वसुधा ने इस बात को ज्यादा गौर नहीं किया, और आशी के कमरे की ओर देखा कमरा बंद था। वसुधा को लगा वह सो गई होगी।



वह भी सो गई ,सुबह उसकी नींद खुली ,शादी में जाना था। सुधीर जी बहुत अन मने से तैयार हो रहे थे। सुबह की  नौ बज गई ,आशी नहीं उठी तब वसुधा के मन में किसी आशंका ने जन्म लिया, उसने दरवाजे को खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला जब रात में आई थी तब पति के चोट के खून के निशानों को उसने पोंछा था ,वही खून के निशान आशी के कमरे के बाहर भी थे, उसका दिमाग घूम रहा था ।जल्दी ही  पड़ोसियों को आवाज देकर दरवाजे को तोड़ा देखा, कमरे में नींद की गोलियां की शीशी खाली पड़ी है,आशी बेहोश थी, तुरंत ही उसे अस्पताल ले गए । आशी शहीद की पत्नी थी ,,उसकी आत्महत्या करने की कोशिश सभी की चर्चा का विषय बन गई, वह तो चुपचाप बैठी बैठी अपने प्रारब्ध को सोच रही थी। सभी रिश्तेदार आ गए थे। उसकी बेटियां रूपल भी आ गई, सभी  लोग  बातें कर रहे थे, कोई सोच रहे थे, इसकी सास में अत्याचार किया होगा, कोई सोच रहे थे ,शहीद की विधवा के पैसों पर नजर होगी। जितने लोग, उतनी बातें, वह तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। चार-पांच घंटे बाद आशी को होश आया। पुलिस सबसे पहले बयान ही लेती है ,उससे पूछा कि तुमने आत्महत्या  करने की कोशिश क्यों की ?

तब उसने बोला कि मेरे पति की मृत्यु के बाद मैं पहली बार शादी में गई ,और वहां पर एक विधवा को जिस नजर से देख रहे थे, बातें कर रहे थे, उससे मुझे चोट पहुंची और इसीलिए मैंने नींद की गोलियां खा ली।, लेकिन वसुधा तो पूरी बात समझ रही थी, उसके कमरे से खून के छींटे, अस्त-व्यस्त पड़ा हुआ कमरा एक अलग ही कहानी बयान कर रहे थे, उसे समझ में आ गया कि निश्चित ही रात को सुधीर जी ने आशी के साथ कुछ गलत करने का प्रयास किया होगा, उसने धक्का देकर उन्हें कमरे से बाहर किया होगा, और आत्म हीनता के बोध के कारण स्वयं को समाप्त करने का निर्णय लिया होगा।

वसुधा का अंतर्मन निर्णय ले चुका था ,उसे अब किसी की परवाह नहीं थी ।वह आशी को न्याय दिलाना चाहती थी, अतः उसने पुलिस के सामने सारा सच उगल दिया, और उसे इस बात की संतुष्टि थी कि मैंने मेरे अंतर्मन का साथ दिया, और अब जो भी हो उसे मंजूर था।

सुधा जैन

 

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