अन्तर्द्वन्द – शिव कुमारी शुक्ला   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : निधि और नितिन दोनों ही साफ्टवेयर इंजीनियर MBA अलग अलग मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करते थे। निधि को तीन वर्ष हो गए थे काम करते। अब उसके मम्मी-पापा ने उसकी शादी के लिए वर खोजना चालू कर दिया । निधि की भी मौन सहमति थी। अब वह भी शादी को लिए तैयार है। माँ सरलाजी एवं – पिता विपीन जी  की खोज जाकर नितीन पर पूरी हुई। घर-वर सब उपयुक्त लगने पर दोनों परिवारों की एवं निधि नितिन की रजामंदी से शादी धूमधाम से सम्पन्न  हुई।एक  माह  के अवकाश के बाद वे दोनों अपने-अपने काम पर लौट गए।

निधि बहुत ही मेहनती एवं उच्च महवाकांक्षा बाली लडकी थी,सो  अपनी  मेहनत से शादी के दो  माह बाद ही उसे प्रमोशन मिल गया। वे दोंनों अपने जीवन में बहुत खुश थे । ऐसे ही दो बर्ष बीत गए। अब परिवार  बढ़ाने बारे में उन्होंने  फैसला लिया। निधि के प्रसव के समय उसकी सास आशा जी बैंगलुरु आ गईं थी। वो छह माह तक  रुकीं ताकि बच्चा थोडा सम्हल जाए। उनके जाने के बाद मां सुधाजी उसकी सहायता के लिए आ गईं। निधि ऑफिस जाने लगी किन्तु उसका मन बच्चे में उलझा रहता और बह काम पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाती। उसकी मां भी  छ: माह रह कर चली गईं। उन्हें भी अपना घर देखना था। अब पूरी जिम्मेदारी निधि पर आ गई। उसने बच्चे के लिए मैड रखी किन्तु उसे उसके काम से सन्तुष्टी नहीं मिली। उसने बच्चे को क्रैच डाला किन्तु यहां भी सन्तोष नहीं हुआ।

अब वह बच्चे को लेकर परेशान रहती। काम पर भी असर पड़ने लगा।

वह दो पाटों के बीच पीस रही थी तभी अचानक उसने मिर्णय लिया कि वह नौकरी छोड़ देगी  जब तक बच्चा बड़ा नहीं हो जाता। वह उसे प्रतिपल बड़ा होते, उसके बाल सुलभ किया कलापों को देखना चाहती थी। नितीन ने उसे समझाया भी किन्तु वह अपने निर्णय पर अडिग रहीं एवं नौकरी छोड़ दी।

अब वह पूर्ण रूप से हाउसवाइफ बन बच्चे   एवं नितिन की सेवा में लग अपने आस्तित्व को ही भूला बैठी। बेटे रोहन के तीन बर्ष  का होते ही बेटी रुचिता गोद में आ गई । अब दो-दो बच्चों को सम्हालने में   कब उसका दिन निकल जाता पता ही नही चलता ।वह इतनी  अस्त व्यस्त रहने लगी कि न  अपने कपड़ों  ध्यान न खाने पीने का उसका पूरा ध्यान बच्चों की परवरिश एवं नितिन के आराम की तरफ रहता।

समय कब रुका है किसी के लिए रोहन दस बर्ष काऔर रुचिता सात वर्ष की हो गई। अब बच्चों को उसकी उतनी जरूरत नहीं रही वे अपने दोस्तों विडियो गेम, स्कूल में ज्यादा व्यस्त रहने लगे। अब वह बहुत अकेलापन अनुभव करने लगी। नितीन  ने दो-चार बार उसे समझाया कि कुछ अपना भी ध्यान रखा करो, देखो तुमने अपनी क्या हालत बनाली है ,पर उस  पर कोई असर नहीं हुआ तो नितिन ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया।

अब दो बच्चों का खर्च बढ़ने से खर्चे पर भी असर पड़ा ।सो उसके पैसे मांगने पर नितिन उस पर झल्ला पड़ता कि पैसे पेड़ में नहीं लगते , सम्हाल कर खर्च किया करो। आए दिन नितिन उसे घर में बैठे होने का ताना मारता, रहन सहन की लापरवाही पर ताना मारता।

एक दिन अचानक रोहित  उससे पूछ बैठा मां तुम ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हो क्याॽ

उसके यह पूछने पर कि तुमने ऐसा क्यों सोचा।

बोला मेरे दोस्त नीरज की मम्मी बहुत पढी लिखी हैं वे स्कूल में नौकरी करती हैं। कितने अच्छे से रहती हैं। अच्छी-अच्छी ड्रैसेज पहनती हैं। अंग्रेजी  तो ऐसे बोलती है कि बस कुछ मत पूछो। मम्मी आप भी पढ़ी होती तो नौकरी करती ऐसे  ही रहतीं न। निधी उसकी बातें सुन हतप्रभ रह गई। तभी बस आ गई और बच्चों  को बिठा   वह वापस लौटने लगी । आज बेटे के विचारों ने उसे झकझोर दिया । जिस बेटे की परवरिश की खातिर उसने इतनी उच्च  पद वाली नौकरी को महत्व नहीं दिया आज वही बेटा दोस्त की शिक्षिका मां से उसकी तुलना कर उसे हीन समझ रहा था।वह सोचने लगी, नौकरी छोड़  उसने गलत किया क्या ।दो दिन बाद बच्चों के स्कूल में पैरेंट्स मीटींग थी । उसने नितिन से जाने को कहा तो नितिन बोला मैं नहीं जा पाऊँगा मेरी मीटिंग है तुम चली जाना। एकदम से रूचिता बोली नहीं पापा मम्मी नहीं  जांयेगीं। मम्मी को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती। मेरी सहेलियों  की  मम्मी सब  कैसे अंग्रेजी में बात करतीं हैं मेरे को शर्म आयेगी। आज  निधी को दूसरा झटका लगा बच्चे उसको कितना कमतर आंकते हैं।

 नितीन रुचिता से बोला बेटा तुम्हारी मम्मी भी अंग्रेजी में बात कर सकती हैं।वह तो उन्हें हिन्दी बोलना अच्छा लगता है इसलिए हिंदी में बात करतीं हैं।

 रुचिता  हैरानी से मम्मी  को देख रही थी वह इन सब बातों को सुन-सुन कर  अवसाद की ओर जाने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उससे कहां गल्ती हो गई।

पूर्ण समपर्ण से अपना पूरा जीवन उन लोगों  के नाम कर  दिया फिर भी वह उनकी नजरों में  इतनी महत्वहीन  है।

तभी एक दिन उसकी सास सुमन जी का फोन आया  दीवाली पर सबको घर आना है इकट्ठा ही दीवाली मनायेंगे। उसकी देवरानी की पहली दीवाली है सो सब साथ ही त्यौहार का मजा लेंगे। अभी छः माह  पूर्व ही उसकी देवर की शादी हुई थी। देवर- देवरानी दोनों ही सरकारी शिक्षक थे।

शाम को नितिन को फोन के बारे में बताया तो बोला तैयारी कर लो चलते हैं। 

वहां पहुंच कर सास का बदला रूप देख कर उसको एक ओर झटका लगा। सास, सबसे देवरानी की तारीफ करते नहीं थक रहीं थीं। अरे मेरी बहू तो बहुत ही सुघड, संस्कारी है और देखो नौकरी भी करती है। 

उनकी नजरों में नौकरी वाली बहू का मान ज्यादा था। उसकी योग्यता, त्याग , कर्तव्य जो उसने आज  तक पूरे  परिवार के लिए निभाया था उसका कोई मोल नहीं।देवरानी बैठी थी और सास ने उससे किचन में जाकार चाय  नाश्ता बनाने को कहा । वह सबके लिए चाय नाश्ता बना कर लाई तो सास बोली निधी अब जरा खाने का हिसाब-किताब भी देखो।वह कुछ नहीं बोली अपमान का घूंट पी कर रह गई। लौट कर आने पर वह रात-दिन सोचती रहती कि उससे कहां गल्ती हुई  जो वह सबके लिये तिरस्कृत हो गई। क्या करें जो उसे एक सम्मानित जीवन मिले।

तभी उसकी कालेज की एक दोस्त का फोन आया। वर्षों  बाद वह अपने किसी दोस्त से बात कर रही थी ।

दीपिका -हाय निधि कैसी है तू,सुन मैं यहां बैंगलोर में किसी मीटींग में चार दिन के लिए आई हूं, तुझसे मिलने की बहुत इच्छा है, सालों हो गये मिले।अगर तुझे कोई परेशानी न हो तो मैं आ जाऊं।थोड़ा बैठेंगे , पुरानी जिन्दगी बातों में जिएंगे।साथ घूमेंगे, शापिंग करेंगे बड़ा मज़ा आएगा ।

निधि बोली आजा।

दीपीका – अपना एड्रेस सेन्ड कर‌। 

एड्रेस भेज  बह सोचने लगी ऐसी  जिंदगी तो उसके लिए अतीत का एक सपना मात्र है वह तो अपने कर्तव्य निर्वहन में सब कुछ भूल गई और बदले में क्या पाया  इतना अपमानित तिरस्कृत जीवन ।

शाम को नितिन को उसने बताया कि एक उसकी पुरानी सहेली आ रही है। तभी डोर बेल बजी तो नितिन ने दरवाजा खोला सामने दीपिका को देखकर वह हैरान रह गया क्योंकि जो डेलिगेशन मीटींग  के लिए उसकी  कम्पनी में आया था उनमें एक सदस्य दीपिका भी थी। तभी निधि भी वहां आ गईं । उसे देखते ही बोली अन्दर आ न बाहर क्यों खडी है।

जीजू आने दे तभी तो आंऊ रास्ता जो रोके खड़े हैं। 

यह सुन नितिन को अपनी भूल का अहसास हुआ पीछे हटते हुए बोला आइये।

जीजू यहां कम्पनी नहीं है घर है और मैं अपनी  सहेली से मिलने आई हूं तो सहज रहिए ये आफिस वाली औपचारिकता क्यों।

सभी हंस बोल रहे थे। उसने बच्चों को खिलोने, विडियो गेम, पुस्तकें, मिठाई दी। बच्चे खुश हो कर मौसी मौसी कहकर अपनी बातें सुनाने में लगे थे। निधि भी चाय-नाश्ता ला कर आ बैठी।पर दीपिका ने नोटिस किया कि  वह पहले वाली चहकती , वतीयाती निधी नहीं है। गुमसुम सी अपने में ही खोई । कुछ तो बात है क्या नितिन का कोई ग़लत व्यवहार इसका कारण है। खाना खाकर जब उसने जानेको बोला तो निधि बोली यहीं रुक जा इतना बड़ा घर है कोई परेशानी नहीं होगी। दीपिका पर  मेरे  कपड़े ।

निधि अरे   कुछ भी मेरा पहन लेना।

रात को दोनों साथ ही लेटीं।लेटे लेटे पुरानी बातों में खो गईं। और दूसरे दिन शाम को घूमने जानेका कार्यक्रम  बनाया। निधि को असमंजस में देख  बोली क्या हुआ कुछ परेशानी है। 

निधी शामको बच्चे ,नितिन घर पर रहेंगे, खाने का समय  भी होगा ।

तो दीपिका बोली घर में ही तो रहेंगे। जीजू साथ  रहेंगे तो बच्चों की चिन्ता भी नहीं  रहेगी । खाना बाहर से आर्डर कर देंगे बस तू तैयार रहना। 

सुबह वह जल्दी नितिन के साथ होटल के लिए निकल गई। वहां चेंज कर अपना सामान ले कम्पनी पहुंच गई ।

दिन तो काम में निकल गया शाम को लौटते हुए उसने नितिन से पूछा  जीजू  एक बात पूछूं आप बुरा तो नहीं मानेंगे, थोड़ी पर्सनल है।

अरे नहीं आपकी बात क्या बुरा मानना। 

जीजू निधि की तबीयत खराब है क्या।

यह तो वह निधि  ही नहीं है जो खुद हंसती थी और दूसरों को भी हंसाती रहती और यह निधि गुमसुम अपने में खोई, उदास ।

नितीन बोला में क्या  करुं ,यह मुसीबत  उसने  हाथ कर मोल  ली है बच्चों की खुद ही परवरिश करने का शौक चर्राया था सो नौकरी छोड दी । बच्चों की परवरिश,मेरा ध्यान रखना घर सम्हालना उसमें इतनी खो गई कि स्वयं को ही भूल गई।न खाने का ध्यान न आराम का ।न रहने सहने का शौक, कहीं बाहर जाने को तैयार नहीं। मैंने कई बार समझाया कि अपना भी ध्यान रखो। यदि काम ज्यादा है तो मैड रख लो पर उस पर कोई असर होता ही नहीं सो अब  मैंने भी कहना छोड दिया ।

जीजू  आज शाम को मैंने निधि को लेकर बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया  है आपको कोई परेशानी तो नहीं है। 

अरे नहीं आराम से जाओ। मैं सब मैनेज कर लूंगा।

 उसने निधि को फोन मिलाया – तू तैयार है । चाय बाय के चक्कर  में मत पड़ना बाहर ही पी लेंगे ।

 पर दीपीका  नितिन । 

अरे जीजू मैनेज कर लेंगे। किन्तु मैं तो चाप बना चुकी  हूँ।

घर आते ही फूर्ति से दीपीका ने चाय पी और उसे लेकर निकल गई । बच्चे भी अपनी मम्मी को सजा संवरा देख खुश थे। वे बोले मम्मी  आप आराम से जाओ हम पापा के साथ रह लेंगे।

वेअपने पसंदीदा स्थानों पर गईं। थोडा घूमने फिरने के  बाद वे एक पार्क में बैठ कर बतियाने लगीं।  तभी दीपीका ने उसे कुरेद कर मनकी बात जाननी चाही। बह बोली दीपीका में सबके लिए इतना परिश्रम करती हूं फिर भी मुझे कोई सम्मान नहीं देता। अपने साथ घटित हुई सारी बातें उसे बताई ।दीपीका बोली किसी की जरूरतों,खुशी का इतना ध्यान भी मत रखो कि वह बन्धन लगने लगे। किसी भी रिश्ते में थोड़ा स्पेस चाहिए चाहे छोटा बच्चा हो, पति हो  या परिवार। इतना मत करो कि तुम अपना आस्तित्व ही भूल जाओ और दूसरे तुम्हारी कीमत ही नहीं समझें। देख में भी तो अपने दोनों बच्चों को प्रबल के पास छोड़ कर आई हूं चाहती तो मना भी कर सकती थी। किन्तु 

जब नौकरी कर रही हूं तो ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना भी जरूरी होता है।चार दिन  यदि थोड़ी अव्यवस्था  हो जायेगी तो क्या फर्क पड़ता है। बच्चों को इसकी भी आदत होनी चाहिए। उन्हें इतना भी आराम मत दो कि  वे पंगु बन जाएं और जीवन में कुछ करने लायक ही न रहें ।चल छोड ये सब अब मैं तुझे बताती हूँ क्या करना है। सबसे पहले तो नौकरी करने को तैयार हो जा। 

अब मुझे नौकरी कौन देगा ।

दीपीका ये निराशा जनक बातें छोड और जीवन में आगे बढ़ने की सोच ।कल अपना रिजूमे मुझे दे। मेरी कम्पनी में देकर  तुझे  नौकरी दिलवाऊँगी। यहीं बैंगलौर बाली ब्रांच में तेरी पोस्टिंग करवा दूंगी। सौ तू मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो जा। फिर अपनी शक्ल पर ध्यान देकर इसे सम्हाल , कैसी  तो बुझी-बुझी सी लगने लगी है। एक मैड ढूंढ जो तेरे कामों में सहायता करेगी । अभी तीन  दिन में यहाँ हूं तो तू अपनी कायापलट कर ले। दीपीका की बातों से निधि के मन में आशा का कुछ संचार हुआ।

 अब वह भी खुश थी बच्चे,ट नितिन उसका बदला रूप देख कर खुश थे।

रोहित बड़े भोलेपन से बोला मौसी मम्मी इतनी पढ़ी लिखी थीं यह तो हमें पता ही नहीं था।

हां बेटा मम्मी आपके जन्म से पहले नौकरी भी करतीं थीं , आपकी सार सम्हाल करने के  लिए नौकरी छोड़ दी थी पर उनके मन में इस बात का दुःख था जो अब नहीं रहेगा।

दीपीका तो चली गई निधी में भी बदलाव आया।  वह भी अपनी पहचान बनाने में जुट गई । कुछ दिनों में उसकी पोस्टींग हो गईं और उसने ऑफिस जाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसका खोया आत्मविश्वास वापस लौटने लगा।

शिव कुमारी शुक्ला 

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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