अलार्म – कंचन श्रीवास्तव

आज जाने क्यों नींद आंखों से कोशों दूर है , कुर्सी पर बैठा बैठा पनामा की कितनी डिब्बियां खाली कर चुका हूं पर यादें है कि ठहरने का नाम नहीं ले रही , बिस्तर में जाऊं भी तो जाऊं कैसे ये तो जैसे काट खाने को दौड़ रहा।

इससे पहले कभी इतनी बेचैनी महसूस नहीं हुई पर आज………..।

क्या अकेलापन महसूस हो रहा सुमित को जबकि रेखा (मां) और माधवी (पत्नी) को गए उसके जीवन से वर्षों हो गए।

पर आज ही क्यों? दिव्या को आए तो साल के आस पास हो रहा।

फिर आखिर इसने ऐसा क्या कर दिया जो उन दोनों की यादों ने मुझे झकझोर के रख दिया। इतना

कि मेरी रूह तक बेचैन हो गई और नींद आंखों से उड़ गई ।और अब तो पौ फटने वाली होगी


इतने में पानी गिरने की आवाज़ आई। तो ये समझ गया कि भोर मुस्कुरा दी।

भले वो आज की आधुनिक लड़की  नौकरी पेशा , पर रहन सहन अपनी सास और मेरी मां जैसा है ,सुबह जल्दी उठना पूजा पाठ करना ,सबको समय से चाय के साथ उठाना और भले नाश्ता नौकर बनाते हो पर सबको हाथों से देना फिर लंच में मेरा खाना मेज पर लगाके जाना , बीच बीच में जरूरतें पूछना  और फिर शाम की चाय और रात का खाना एक साथ खाना उसके दिनचर्या में शामिल हैं। तारीफी ये कि कभी कुछ भी मिस नहीं करती सच कभी कभी लगता है इसने घर को संभाल लिया।

इसी तरह तो मां ने (रेखा) संभाला था और जब वो हाथ पैर से मजबूर हुई तो  माधवी मेरी धर्म पत्नी ने हां धर्म पत्नी ,इस तरह हम सबको कभी जिम्मेदारियों का अहसास ही नहीं हुआ।

अरे ऐसा नहीं जिम्मेदार नहीं रहा , रहा हूं जहां तक मैं समझता हूं पुरुषों की जिम्मेदारी बाहर की होती है तो बस वही उठाया पर और सारी  तो स्त्री ही उठाती है जिसे मैं तीन पीढ़ियों से देख रहा हूं पहले मां को फिर पत्नी को और अब बहू को ।

सच ही कहा गया है कि स्त्री  किसी घर का चलता फिरता वो अलार्म है जिससे भले लोग कहें न पर महसूस करते हैं कि उसी से सबकी दिनचर्या सही रहती है  अगर किसी दिन देर हो जाए तो कैसे भी करके अपनी ही देह को रोज से ज्यादा फुर्तीली बना  सही समय पर काम निपटाती है देर से उठने का भान तक नहीं होने देती ,रोज़ की तरह उस रोज़ भी सबके बिस्तर पर बेड टी ,समय से नाश्ता और टिफीन देती है।

हां वो बात अलग है कि रात बिस्तर में पड़ते ही बदन में खिंचाव ज़रूर महसूस करती है पर दूसरे ही पल पति का सानिध्य पाकर सारी थकान उतर जाती है।

अब रविवार का दिन ही ले लो  जानबूझकर देर से उठती है , तो सबकी दिनचर्या खराब हो जाती है और जब सबकी दिनचर्या खराब होती है तो लोग आंख न खुलने का बहाना बनाते हैं सीधे सीधे कभी ये नहीं कहते कि तुम्हारी वजह से हम सबकी भी दिनचर्या सही रहती है


पर मैं संपूर्ण स्त्री जाति को नमन करता हूं , शुक्रगुजार हूं कि

इनका वजह से  सब कुछ व्यवस्थित रहता है।

सच

हे ! नारी

गर तुम हो तो सब अस्त व्यस्त हो जाए ,तुम्हीं से घर है अरे घर ही नहीं बल्कि हम सबकी व्यवस्थित दिनचर्या है ।सच तुम तो बिना आवाज़ के चलता फिरता अलार्म हो आज दिव्या को रसोई में खटर पटर करते देख  ऐसा महसूस हो रहा है।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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