अहमियत – मोहम्मद उरूज खान : Moral stories in hindi

सुनो! तुम्हारा पसंदीदा रंग कौन सा है? नाश्ते की टेबल पर अख़बार पढ़ रहे शशांक जी ने पूछा।

इस तरह अपने पति के मुँह से इस तरह की बात सुन बराबर में बैठी नाश्ता कर रही उनकी पत्नि शिवानी जी ने हेरत से उनकी तरफ देखा और बोली ” क्या पूछा आपने?

ऐसे क्या देख रही हो? मैंने पूछा की तुम्हारा पसंदीदा रंग कौन सा है ? “शशांक जी ने कहा।

“आपकी तबीयत तो ठीक है आज़ क्या सूरज किसी और दिशा से निकला है ज़रा देखू तो बहार जाकर ” शिवानी जी ने कहा।

“अब भला मैंने ऐसा भी क्या पूछ लिया? बस इतना ही तो पूछा है कि तुम्हारा पसंदीदा कलर कौन सा है हर किसी का कोई ना कोई पसंदीदा कलर होता है तुम तो इस तरह बर्ताव कर रही हो मानो मैंने कुछ और पूछ लिया हो ” शशांक जी ने कहा।

“नही, नही मैं आपके सवाल पर आश्चर्य नही कर रही मैं तो इस बात पर आश्चर्य चकित हूँ कि शादी के 20 साल गुज़र गए आपको मेरा पसंदीदा रंग भी नही मालूम ” शिवानी जी ने कहा।

“तुमने कभी बताया ही नही तो फिर मुझे पता कैसे चलता ” शशांक जी ने अपना पक्ष भारी करते हुए कहा।

“आपने कभी पूछना भी जरूरी कब समझा ” शिवानी जी ने कहा.

“मैं क्या पूछता? मेरे सर पर पहले से ही इतनी सारी ज़िम्मेदारियां थी  मैं उन्हें देखता या फिर तुमसे पूछता वो तो कल रात ज़ब मैं अमन के साथ आ रहा था तो उसने कुछ साडिया खरीदी थी तुम्हारे लिए और बहु के लिए तब उसने बताया की उसकी पत्नि और हमारी बहु को परपल रंग अच्छा लगता है इसलिए उसने दो उस रंग की साडिया खरीद ली, मुझसे भी पूछ रहा था मैंने तो कह दिया कुछ भी खरीद लो तुम्हारी माँ को पसंद आ जाएगा, उसकी क्या पसंद ना पसंद इस ढलती उम्र में,

बस इसी लिए अख़बार पढ़ते पढ़ते ध्यान आया तो पूछ लिया” शशांक जी ने कहा।

इसका मतलब, मेरी बहु मुझसे लाख गुना बेहतर है, जो उसके पति को उसकी पसंद ना पसंद का ख्याल है, मुझे एक तरफ दुख भी हो रहा है और एक तरफ ख़ुशी भी, ख़ुशी इस लिए की चलो इस बदलते वक़्त में पति पत्नि के रिश्ते में इतना तो सुधार आया की पति को उसकी पसंद ना पसंद भी पता होने लगी है और दुख इस बात का है, कि मेरे पति को अब भी यही लगता है कि उनकी पत्नि जो अब बुढ़ापे की और बढ़ चली है, उसकी कोई पसंद ना पसंद है ही नही,वो तो खूटे से बँधी गाय है जिसे जहाँ चाहो बांध दो और जहाँ चाहा बैठा दो और दिन भर कोल्हू का बेल बना कर जुतवाने के बाद उसे रूखा सूखा चारा डाल कर चले जाओ

बताया तो आपने भी कभी नही कि आपको क्या पसंद है और क्या नही? बस इतना ही कहा कि आज़ तो हो गया है लेकिन आइंदा नही होना चाहिए, ये पूछे बिना की जो आपको पसंद नही तो क्या सामने वाले को भी पसंद नही?

आप पूछ रहे थे ना कि मेरा पसंदीदा रंग कोनसा है, तो सुनिए हर लड़की की भांति मेरा भी एक पसंदीदा रंग था, जिसे मैं पहनना ओढ़ना पसंद करती थी, वो रंग था मेहरून रंग, आपको शायद याद हो एक बार ज़ब आप दफ्तर से आये थे, और मैं मेहरून रंग की साड़ी पहने हुयी थी, मुझे मेहरून रंग में देख जो आपने मुझपर गुस्सा किया था, मुझे दोबारा उस रंग को ना पहनने की हिदायत दी थी, क्यूंकि वो रंग आपको पसंद नही था, इसलिए मुझे भी उस रंग की आहुति देना पड़ी नही देती तो शायद आपके साथ घर बसा नही पाती, क्यूंकि  घर को तोड़ने से बचाने की सारी ज़िम्मेदारी औरत के कंधो पर ही तो होती है, वरना ये समाज उसे सूलही पर लटकाने में देर नही करता

इसलिए मैंने भी अपने रंग, अपने मन को मार दिया और रंग गयी आपके रंग में, आपने एक बार भी जानने की कोशिश नही की, कि आखिर इस औरत की भी तो कुछ अपनी मर्ज़ी होगी, चलो आज़ कुछ इसकी मर्ज़ी का भी करके देखते है, कुछ उसकी पसंद का भी खा कर देखते है, कुछ खुद को उसके रंग में भी रंग के देखते है, ऐसा तो कही नही लिखा है कि सिर्फ औरत को ही आदमी के रंग में ढलना होता है जहाँ प्रेम हो वहाँ क्या छोटा और क्या बड़ा, सूरज भी तो हर रोज ढल जाता है, चाँद के खातिर आप भी अपनी थोड़ी मर्दानगी, अपनी अना को एक तरफ रख कर कभी एक हमदर्द हमसफ़र कि भांति मुझसे मिलने आते, कितना अच्छा होता कि कभी सिर्फ मेरी ज़रूरत न होने पर भी आप मुझे पुकारते, मेरी भी सुनते, सिर्फ अपना हुक्म चलाने के बजाये मेरी दिल से निकली फरयाद को भी एहमियत देते तो शायद आपको पता होता की मेरा पसंदीदा रंग कोनसा है, यूं आज़ उम्र के इस पड़ाव में आकर  अपने ही बेटे से सबक लेकर इस तरह ना पूछते कि तुम्हारा पसंदीदा रंग कोनसा है

मुझे खुशी है, कि मेरा बेटा आप जैसा नही है, उसे ज़िम्मेदारी का असल मतलब पता है, उसके लिए ज़िम्मेदारी सिर्फ अपनी पत्नि और बच्चों को दो वक़्त की रोटी देना नही, बल्कि उनकी पसंद ना पसंद का ख्याल भी रखना है, ताकि उसे अपने पिता की तरह उम्र के इस पढ़ाव में आकर अपनी पत्नि से पूछना ना पड़े ” कि उसका पसंदीदा रंग कोनसा है ” क्यूंकि उसने तो कभी उसे बताया ही नही और उसने कभी उससे पूछना ज़रूरी ही नही समझा क्यूंकि उसकी मर्दानगी और अना को ठेस पहुंच जाती अगर वो अपनी पत्नि की पसंद ना पसंद पूछ लेता,

चलिए अब चाय ख़त्म कर लीजिये, उसके बाद आपको दवाई भी लेनी है, वो भी फीके दूध के साथ, मीठे दूध से आपको उलटी आ जाती है  ” शिवानी जी ने कहा और वहाँ से उठने लगी

तभी शशांक जी ने उनका हाथ पकड़ा और बोले ” क्या मैं अच्छा पति नही हूँ? “

“ये आप अपने आप से पूछिए, आपका मन बेहतर जवाब देगा, इस सवाल का, अगर थोड़ा मुश्किल लगे तो मेरी जगह खुद को और अपनी जगह मुझे रख कर सोचियेगा, आपको जवाब ढूंढ़ने में आसानी हो जाएगी ” शिवानी जी ने कहा और वहाँ से चली गयी

शशांक जी सोच में पड़ गए और अब तक की अपनी जिंदगी जो उन्होंने शिवानी जी के साथ गुज़ारी थी एक चलचित्र की भांति अपने दिमाग़ में चलाने लगे जिसके हर एक पहलू पर उन्होंने खुद ही कसूरवार जाना, उस उस बात पर उन्होंने अपनी मर्दानगी और अना के चलते शिवानी जी को शांत करा दिया था जहाँ वो अगर एक अच्छे पति, अच्छे हमसफर की भांति उनके पास खड़े होते उनकी बात को तरजी देते, उनकी भी सुनते उनकी पसंद ना पसंद जानने की कोशिश करते, अपनी ही बात को सिद्ध करवाने का हरदम प्रयास ना करते तो शायद आज़ वो एक अच्छे पति, एक अच्छे जीवन साथी की भांति उनकी पत्नि के दिलो दिमाग़ में बसते, और वो रिश्ता जो बरसों से निभाती आ रही थी वो समझौते का और ज़रुरत का ना होकर प्रेम का होता।

“”””””””””””””””””””

मोहम्मद उरूज खान

जिला रामपुर

उत्तर प्रदेश

तहसील बिलासपुर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!