ख्वाब जो बिखर गये (भाग 1)  – रीमा महेंद्र ठाकुर 

बहुत  चाहा तुम्हें , अब  नही बस तुमने  दिया ही क्या मुझे, 

  बेबसी”  तुम आये ही क्यू मेरी  जिन्दगी मे ,कुछ भी  तो न चाहा था  तुमसे  ,मैने सिवाय थोडी सी इज्जत और अपनेपन के  अलावा ” अब छोड गये न मुझे  अकेला”  अब कभी वापस मत आना  !

मै अकेली ही अच्छी  हूँ बन्द  अन्धेरे कमरे में फफक कर रोये जा रही थी निहारिका।     निहारिका  अरे  वो निहारिका ऐ लडकी जाने  क्या  कर रही हैं ! लडके वाले आते ही होगे माँ की आवाज़ बहुत पास आ गई थी ! शायद  दरवाजे तक फिर दरवाजे पर ठक ठक  भारी कदमो से निहारिका ने दरवाजा खोला ” और वापस  मुड गई  , माँ ” उसे रोक कर उसके सामने आ गई  ,,उसके चेहरे पर नजर पडते ही , क्या हालत बना ली है नीरू तूने ” माँ वो मेरे साथ ऐसा नही कर सकता  !

बेटा वो  अब कभी वापस  नही आयेगा ! 

तेरे पापा को उसने  वचन दिया है , 

पर माँ  इसमें  मेरा क्या कुसूर है!   मैने तो सच्चा प्यार किया था !माँ अपने ही  अपनो के  दुश्मन  क्यूं बन जाते हैं  !

माँ बस एक मौका दे दो, 

  मै फिर जो आप  बोलोगी वही करूगी ,ठीक है ! 

समीर की ट्रैन चार की  है !

वो  निकलने वाला ही होगा,,,  पाँच बजे लडके वाले  आ जायेगे ,उससे पहले तुम्हें वापस आना होगा ! 

इसके आगे मै “कुछ सम्भाल नही पाऊंगी ,,मेरा भरोसा  मत तोडना,,

कभी नहीं  तोडूगी” और निहारिका  तेज कदमो से  बाहर  चली गई , 


समीर उसी के  घर  के पीछे  कमरे में  रहता था  !

वो कमरा घर से जुडा था! पर रास्ता  बाहर से  था,   कमरे में पहुचते ही  उसका दिल धक से  हो गया ! 

समीर जा चुका था  !उसके  कदम वही ठिठक गये  ! 

उसने बुझे मन से घर की  ओर कदम बढा लिए , कमरे के  पीछे  बालकनी  से आँसूओ  से भरी दो आँखे बस उसी को देखे जा रही  थी  !

जब तक  वो आँखो से ओझल न हो गई , 

वो  समीर था  जो अभी तक जा नही पाया  ,उसके दिल  ने चीत्कार  की ” एक बार और कोशिश , करके देखे, अभी  कदम बढाया ही  था की  गाड़ी की आवाज़  से वही ठिठक गया !

लडके वाले  आ गये थे ! वो वही खडा बेबसी से  उन्हें  देखता रहा ! 

काफी अच्छा  घर सजाया हैं  विनय जी। “

जी सत्यपाल जी निहारिका  बेटी को  बहुत  शौक है  साज सज्जा की , अच्छा  अब निहारिका  को बुलवा दीजिए,   बडे उतावले पन से बोली शोभा जी  ,जाओ निहाल बेटा दीदी को लेकर  आओ,   कुछ ही पलो  मे निहाल निहारिका  को लेकर आ गया! अतुल  उसे  अपलक देखता रहा , 

पर निहारिका  कही और ही खोई थी ! सब एक दूसरे का मुह मीठा कर रहे थे ! 

रिश्ता  पक्का हो गया था  ! 

लडके वाले  जा चुके थे ! निहारिका पलंग पर निढाल सी पडी थी ,

उसके पास अब  सोचने समझने के लिए कुछ न बचा था ! 

थके कदमो से समीर अपने ही उधेड़बुन  मे चला जा रहा था ! 

उस दिन  गाडी  लेट ही आयी थी!ज्यादा  भीड न थी  सीट पर बैग रखकर बैठ गया ,गाडी सुबह अलीगढ पहुंच  जायेगी  ,सोचते सोचते अतीत में  खो गया !

अलीगढ से पापा ने पढाई के लिए  इलाहाबाद (प्रयागराज) भेजा था , पापा के  दोस्त थे विनय अंकल बहुत  प्यार करते थे समीर को ,कभी उसे  महसूस  नहीं होने दिया  की वो  बाहर का बच्चा है ! निहारिका  से जब उसकी दोस्ती  हुई  तब उसकी उमर  तकरीबन  सोलहा साल रही होगी ! निहारिका  अपने  मामा के  घर  रहती थी पर अब  आगे की  पढाई यही  घर पर रहकर पूरी करनी थी  ।उन  दोनों  को पता ही  न चला  की  दोस्ती  प्यार  मे कब बदल  गई , समय तेजी से आगे  बढ रहा था  !  ग्रैजुएट होते होते  उस को घर के पीछे  हिस्से में बने  कमरे में  शिफ्ट कर दिया गया  ! 

अब  निहारिका  और वो खाने  के टेबल पर  ही मिल पाते  पढने मे कुछ  समझ  नहीं  आता  तो निहारिका  उसके  कमरे में  आ जाती  ,और  वो  उसे  अच्छे  से समझा देता ! 

कभी कभी निहाल  घर  मे आ जाता , निहारिका  नही आती तो वो  बेचैन हो जाता ् किसी न किसी बहाने घर  आ जाता ्

 उस दिन बारिश  बहुत  तेज थी   गँगा मईया उफान पर थी  विनय अंकल  निहाल को लेने स्कूल  गये थे ! 

साथ मे अन्टी को भी  कुछ काम था  इसीलिए  वो भी  साथ गई थी ,

तेज बारिश की  वजह से  वो फंस गये थे  ,काफी देर  हो गई  थी वो  आये  नहीं  थे  !

अगला भाग

ख्वाब जो बिखर गये (भाग 2)  – रीमा महेंद्र ठाकुर 

रीमा महेंद्र ठाकुर

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